Wednesday, April 30, 2008

30 th april closing poem

मेरा सांस लेना और तेरा साथ होना एक ही तो बात हैं
मेरा सांस लेना और तेरा साथ होना एक ही तो बात हैं
तु हैं ज़िंदगी मे शामिल कि हर जगह तेरा होना ना होना एक ही तो बात हैं
रोशनी मेरी तुम ही हो बिन तेरे बस ये काली रात हैं
मेरी इन थकी आंखों को तुम चुम लो

(कमबख्त किसी ने हमारी आंखों के लिए कहा ना कि वो बहुत लाल रहती हैं & उसकी वजह भी क्या बताई ये भी आपको तो पता हैं तो बस जाने दीजिये )
मेरी इन थकी आंखों को तुम चुम लो तसल्ली का होना बस तेरे पास हैं
मेरा खिलखिलाके हँसाना हज़ार सपने तेरे लिए तकना
तुझे हर जगह महसूस करना यही तो अब मेरा हाल हैं
इंतज़ार पूरे साल मे करना बारिश का
तेरे इंतज़ार मे बस तेरा होना ना होना बस एक ही तो बात हैं
लिखना ख़त मुझे पर कभी दे ना पाना
(कई बार हुआ हैं ऐसा मेरे साथ )
कि लिखना ख़त तुझे पर कभी दे ना पाना
उन खातो कि अस्थिया रोज़ अपने हाथ से जलाना
प्यार तुझे मुझसे या मुझे तुझसे बस एक ही तो बात हैं

30 th april opening poem

मेरा सांस लेना और तेरा साथ होना एक ही तो बात हैं
मेरा सांस लेना और तेरा साथ होना एक ही तो बात हैं
तु हैं अगर ज़िंदगी मे शामिल तो फिर मेरा होना ना होना ये एक ही बात हैं
रोशनी मेरी तुम ही हो
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
कि रोशनी मेरी तुम ही हो बिन तेरे बस काली रात हैं
मेरा होना ना होना तेरे बाद ये एक ही बात हैं

मेरी इन थकी आंखों को तुम चुम लो
(कहते हैं सब लोग कि मेरी आंखें लाल रहती हैं कई कमबख्त तो इसके लाल रहने कि वजह भी बताते हैं )
मेरी इन थकी आंखों को तुम चुम ल
तसल्ली का होना बस तेरे पास हैं
मेरा खिलखिलाके हंसना हज़ार सपने तेरे लिए तकना
मेरा खिलखिलाके हंसना हज़ार सपने तेरे लिए तकना
तुझे हर जगह महसूस करना यही अब मेरा हाल हैं
इंतज़ार पूरे साल मे करना बारिश का
(ये मौसम कमल ही होता हैं ना जी )
इंतज़ार पूरे साल मे करना बारिश का
तेरे इंतज़ार मे बस तेरा ना होना
मेरी तरह तेरा भी यही हाल हैं
लिखना ख़त तुझे पर कभी दे ना पाना
(हैं जी !! ऐसा कई बार आपके साथ भी हुआ होगा smile करना बंद करिये हाँ जी )
लिखना ख़त तुझे पर कभी दे ना पाना
उन खातो कि अस्थिया रोज़ अपने हाथ से जलाना
प्यार तुझे मुझसे या मुझे तुझसे
ये एक ही बात हैं
मेरा तेरे लिए कभी भूले भटके ही कुछ ले लेना
मेरा तेरे लिए कभी भूले भटके ही कुछ ले लेना
तेरा भूले भटके ही मुझे कभी कुछ कह देना
ये प्यार हैं थोड़ा इधर भी हैं थोड़ा उधर भी
प्यार का होना ज़िंदगी मे बड़ी बात हैं
मेरा होना ना होना ये एक ही बात हैं

29 th april closing poem

........

29 th april opening poem

........

29 th april opening poem

........

28 th april closing poem

.......

28 th april opening poem

.......

27 th april - sundayyyyyyyyyyy

fundayyyyyyyyyyyy

26 th april closing poem

.......

26th april opening poem

.....

25th april closing poem

एक प्यार से भरा दिल था
जिसके अरमानों को मैं पलको पर सजाया करता था
एक लड़की हैं शहर की चुप चुप सी
जिससे मैं दिल लगाया करता था
एक लड़की हैं शहर कि चुप चुप सी जिससे मैं दिल लगाया करता था
एक चेहरा बनकर ख्यालो मे आता था
फिर मैं उस चेहरे को भीड़ मे dhundha करता था
वो अक्सर बनती रेत के महल साहिलो पर
(याद हैं ना वो दिन जब किसी के साथ कोई सागर किनारे पर हम लोगो ने महल बनाये होंगे )
वो अक्सर बनती रेत के महल सहिलो पर
फिर मैं उन महलो मे अपना घर dhundha करता था
कई बार देखा उसे फूलों से बात करते

(वाह री मोहब्बत हर चीज़ बात करने लगती हैं )
कई बार देखा उसे फूलों से बात करते
उनके कानो मे कुछ कहते कुछ करते
मैं उसकी हर बात अपने उन फूलों से पूछा करता था

(ऐसा ही हैं जब कोई कुछ ना बताये तो क्या करे )
मैं उसकी हर बात अपने उन फूलों से पूछा करता था

लिख कर हथेली पर वो क्यों हमेशा मेरा नाम काटती थी
ये बात मे किसी से नही पूछा करता था
लिख कर हथेली पर वो मेरा नाम हमेशा काटती थी
और मैं अपने हाथो कि लकीरों मे उसको dhundha करता था
शायद रेडियो पे कान लगाकर

(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
शायद रेडियो पे कान लगाकर या kitchan मे खड़े खड़े
सुनती होगी मेरी आवाज़ बस मेरा नाम लेते लेते
बस मोहब्बत ने ही जोड़ दिया अब दिल का हर अरमान
वो खुश रहे हमेशा
बस हमारी खुशी से रही अब यही पहचान

एक प्यार भरा दिल था

25th april opening poem

एक प्यार से भरा दिल था
जिसके अरमानों को मैं पलको पर सजाया करता था
एक लड़की हैं शहर कि चुप चुप सी
जिससे मैं दिल लगाया करता था
एक प्यार से भरा दिल था
जिसके अरमानों को मैं पलको पर सजाया करता था
एक लड़की हैं शहर कि चुप चुप सी
जिससे मैं दिल लगाया करता था

एक चेहरा बनकर ख्यालो मे आता था
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर गर्दन हिलाना बंद करिये जी )
एक चेहरा बनकर खयालो मे आता था
फिर मैं उस चेहरे को भीड़ मे धुंधा करता था
वो अक्सर बनती रेत के महल साहिलो पर
(aapane भी तो कभी कहीं किसी किनारे पर बैठकर बहुत रेत के महल बनाये होंगे )
वो अक्सर बनती रेत के महल सहिलो पर
फिर मैं उसको उन महलो मे dhundha करता था
एक प्यार से भरा दिल था जिसके अरमानों को मैं पलको पर सजाया करता था
कई बार देखा उसे फूलों से बात करते
कई बार देखा उसे फूलों से बात करते
उनके कानो मे कुछ कहते कुछ करते
मैं उसकी हर बात अपने उन फूलों से पूछ लिया करता था
(बहुत बदमाश था मैं )
मैं उसकी हर बात अपने फूलों से पूछ लिया करता था
लिख कर हथेली पर वो नाम हमेशा मेरा काटती थी
(हथेली पर नाम लिखकर काटना मतलब हम बताना भी चाहते हैं और बता भी नही पाते )
कि लिख कर हथेली पर वो नाम हमेशा मेरा काटती thi
मैं अपनी लकीरों मे बस उसी को dhundha करता था
(अब ज़रा ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
शायद रेडियो पे कान लगाकर
या नींद मे लेते लेते
शायद रेडियो पे कान लगाकर
या नींद मे लेते लेते

सुनती होगी मेरी आवाज़ बस मेरा नाम लेते लेते
बस मोहब्बत ने ही जोड़ दिया अब दिल का हर अरमान
वो खुश रहे हमेशा
हमारी खुशी यही हमारी पहचान

24th april closing poem

opening and closing poem was same today
यूं तो मैं खुश होता हूँ
पर जब जिक्र होता हैं
तेरा मेरे शहर से दूर जाने का
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
हैं जी
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
पर जब कोई तेरी तस्वीर मांगता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
जब कोई तुझे देखकर कहता हैं
बहुत खूबसूरत हो तुम
तो मैं खुश होता हूँ
पर जब कोई तेरी मुझसे ज्यादा तारीफ करता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
पर मुझसे बात करते करते तेरा फ़ोन अपने आप कट जाए
तो मैं चुप होता हूँ
(ऐसा होता हैं ना कभी कभी )
मेरी खुशी जब तु नया सूट बाज़ार से खरीद कर लाती हैं
पर मुझसे पहले तुझे उस सूट मे कोई और देखे
तो मैं चुप होता हूँ
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
(फतह सागर की पाल का जिक्र हो रहा हैं )
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
तो मैं खुश होता हूँ
पर यही हवाए जब तुझे छूने की कोशिश करे
तो मैं चुप होता हूँ
तुझे जब मैं अपने जोड़े पैसो से teddy bear गिफ्ट करू
तो खुश होता हूँ
पर कमबख्त वो जब हर रात तेरी बाहों मे रहे
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं जब तु खुश होती हैं
बस उसी एक पल मैं कहाँ चुप होता हूँ

24 th april opening poem

यूं तो मैं खुश होता हूँ
पर जब जिक्र होता हैं
तेरा मेरे शहर से दूर जाने का
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
हैं जी
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
पर जब कोई तेरी तस्वीर मांगता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
जब कोई तुझे देखकर कहता हैं
बहुत खूबसूरत हो तुम
तो मैं खुश होता हूँ
पर जब कोई तेरी मुझसे ज्यादा तारीफ करता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
पर मुझसे बात करते करते तेरा फ़ोन अपने आप कट जाए
तो मैं चुप होता हूँ
(ऐसा होता हैं ना कभी कभी )
मेरी खुशी जब तु नया सूट बाज़ार से खरीद कर लाती हैं
पर मुझसे पहले तुझे उस सूट मे कोई और देखे
तो मैं चुप होता हूँ
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
(फतह सागर की पाल का जिक्र हो रहा हैं )
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
तो मैं खुश होता हूँ
पर यही हवाए जब तुझे छूने की कोशिश करे
तो मैं चुप होता हूँ
तुझे जब मैं अपने जोड़े पैसो से teddy bear गिफ्ट करू
तो खुश होता हूँ
पर कमबख्त वो जब हर रात तेरी बाहों मे रहे
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं जब तु खुश होती हैं
बस उसी एक पल मैं कहाँ चुप होता हूँ


Saturday, April 26, 2008

23rd april closing poem

अभी इस तरफ ना निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलके संवार लू
अभी इस तरफ ना निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलके संवार लू
तेरा हर लफ्ज़ आईने सा
तुझे आईने मे उतार लू
मैं तमाम दिन का थका हुआ
तु तमाम शब का जगा हुआ
(थकान के बाद कभी कोई ऐसी बात करता हैं )
मैं तमाम दिन का थका हुआ
तु तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा तु इसी मोड़ पर
कि तेरे साथ आज एक शाम गुजार लू
अगर आसमान की नुमाइश हो
अगर आसमान की नुमाइश हो
तो तुझे रुकना होगा

23rd april opening poem

सर झुकाओगे तो पथ्थर भी देवता हो जायेगा
सर झुकाओगे तो पथ्थर भी देवता हो जायेगा
इतना ना चाहो उसे वो भी एक दिन बेवफा हो जायेगा
हम भी दरिया हैं हमे अपना हुनर मालूम हैं
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
कि हम भी दरिया हैं हमे अपना हुनर मालूम हैं
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे उस तरफ रास्ता हो जायेगा
कितनी सच्चाई से
(ऐसा होता हैं कभी कभी कि मोहब्बत कभी कुछ कह देती हैं तो बहुत बुरा लगता हैं )
कि कितनी सच्चाई से मुझसे मोहब्बत ने कह दिया
कितनी सच्चाई से मुझसे मोहब्बत ने कह दिया
कि तु नही मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा
मैं तो अब तक मोहब्बत तेरा नाम लेकर जी रहा हूँ
मैं तो अब तक मोहब्बत तेरा नाम लेकर जी रहा हूँ
शायद तेरी बद्दुआओं का असर थोडा काम हो जायेगा

सब कुछ उसी का हैं
सब उसी के हैं
हवा खुशबु ज़मीं आस्मान और हम भी
मैं कैसे उससे कैसे कोई बात छुपाऊ
उसे एक पल मे पता हो जायेगा
हमने तो मोहब्बत कि मोहब्बत से भी ज्यादा
(हर प्यार करने वाले को ऐसा ही महसूस होता हैं )
कि हमने तो मोहब्बत कि मोहब्बत से भी ज्यादा
उसने रुसवा किया हमे रुसवाई से ज्यादा
अब ज्यादा कुछ ना बोलू मैं
इस ज़माने को मेरी आंखों से सब पता चल जायेगा
सर झुकाओगे तो पत्थर भी देवता हो जायेगा

22nd april opening and closing poem

चाँद हाथ मे भरकर जुगनुओ को मेरे पास रख दो
चाँद हाथ मे भरकर जुगनुओ को मेरे पास रख दो
मोमबत्ती भी तेरा अक्स बनाती हैं
आज उसे भी मुझसे तोडा सा दूर रख दो
मैं घना अँधेरा हूँ
(ये मोहब्बत हैं महबूब की कही हर बात सच लगने लगती हैं चाहे गुस्से मे कही हो )
कि मैं घना अँधेरा हूँ
आज मेरी पलको पर कोई तो रौशनी रख दो
खुशबुओ से नहला दो मेरे सपनो को
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
खुशाबुओ से नहला दो मेरे सपनो को
तितलियों की आँखों पर आज तुम हाथ रख दो
मैं भी एक छोटा मोटा शायर हूँ
मैं भी एक छोटा मोटा शायर हूँ
मुझे भी अपने दिल की बात कहने का बस एक मौका दे दो
मेरी भी बंद हथेली पर तुम अपनी यादो की बर्फ रख दो
(गर्मी बहुत हैं ना उदयपुर )
मेरी भी बंद हथेली पर तुम अपनी यादो की बर्फ रख दो
धुप का हरा बाजरा आग के हवाले कर दो
चाहे कोई मौसम हो
(मोहब्बत मे मौसम नही देखे जाते क्यूंकि ऐसा कहते हैं कि ये मोहब्बत भी बारिश की तरह बेमौसम हो जाती हैं )
कि चाहे कोई मौसम हो हम लौट ही आएंगे
बस एक फूल की पत्ती अपने होठो से मेरे होठो पे रख दो

रोज़ तार कटने से मेरे शहर कि बत्ती चली जाती हैं
(सुनियेगा उदयपुर )
रोज़ तार कटने से मेरे शहर कि बत्ती चली जाती हैं
तुम बस एक प्यार का दीया जलाकर मेरे घर के आँगन मे रख दो
क्या करना हैं मुझे चाँद सितारों से
(हैं जी )
कि क्या करना हैं मुझे चाँद सितारों से
तुम बस पूरे दिन का कोई एक पल सिर्फ मेरे नाम कर दो
चाँद हाथ मे भरकर जुगनुओ को मेरे पास रख दो

Monday, April 21, 2008

21st april opening and closing poem

हम चले जायेंगे रह जाएँगी हमारी यादें
हम चले जायेंगे रह जाएँगी हमारी यादें
तुम याद करो ना करो
फिर भी हर पल आएगी ये हमारी यादे
याद करो मन से तो प्यारी सी याद बन कर आयेगी
कि याद करो मन से तो प्यारी सी याद बन कर आयेगी
आपकी उस प्यारी हँसी मे थोड़ा सा हम भी मुस्कुराएंगे
ये यादें जो मिटाई नही जा सकती
(बड़ी कमाल की होती हैं ये यादें )
ये यादें जो मिटाई नही जा सकती
जो कभी भुलाई नही जा सकती
जो इस दिल के करीब हैं उसके पास दौड़कर
ना जाने कहाँ से चली जाती हैं ये हमारी यादें
ये तो वो हवा का झोंका हैं
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
कि ये तो वो हवा का झोंका हैं
जो छुते ही आंखें नम कर जाए
बहे पास पास से पर नज़र एक पल को ना आए
आप भूल जाओ
आप भूल जाओ हमे गैर समझ कर
मगर आपको वफ़ा समझाएगी मेरी याद
कहती हैं दुनिया बहुत बेपरवाह हूँ मैं
(ऐसा सब कहते हैं कि थोड़े बेपरवाह हो आप अंकित कुछ याद नही रहता कोई वादा नही निभाते बस क्यों )
कि कहती हैं दुनिया बहुत बेपरवाह हूँ मैं
पर मेरी परवाह करना तुमको सिखायेगी मेरी याद
तेरे हर अच्छे बुरे पल मे तो मैं साथ रह नही सकता
तेरे हर अच्छे बुरे पल मे तो मैं साथ रह नही सकता
पर मेरे हर पल तेरे पास होने का अहसास कराएगी मेरी याद

20h april - sundayyyyyyyyyyyyy

sundayyyyyyyyyyyyy

19th april closing poem

ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
तु जब सामने बैठे तो बस मैं तुझे देखता जाऊ
तेरी चुन्नी

(आय हाय !! )
तेरी चुन्नी मे दिल को तो चैन आ ही जाता हैं
मैं तुझे देखने के बाद ये चैन भला कहाँ से लाऊ
तेरा घंटो तक लेटे लेटे किताब को पढ़ते रहना
तेरा घंटो तक लेटे लेटे किताब को पढ़ते रहना
मेरा बैठे बैठे घंटो तक बस तेरी किताब से जलते रहना
रात मे तो दिए मैं लगता हूँ पर
तेरी रौशनी के आगे उन दियो मे वो चमक ना आये
दुआ करू खुदा से कि वो तुझे उम्म्हू वो मुझे
दुआ करू खुदा से कि वो मुझे तेरी कलम बना दे
कुछ देर के लिए ही सही तेरे हाथ मे मुझे थमा दे
लिखती जाये तु मेरा हाथ थामकर अपने exam का हर उत्तर
कितनी होती हैं दिशा दुनिया मे
बस इसी का ना दे पाए तु कोई उत्तर
दिशा चार कहते हैं लोग
फिर मोहब्बत की क्यों कोई दिशा क्यों नही होती
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हर दिशा मे बस तु ही तु क्यों हैं होती
ना पलके झपकाऊ बस तुझे देखता जाऊ


19 th april opening poem

ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
(आज ज़रा ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
तु जब सामने बैठे तो बस मैं तुझे देखता जाऊ
तेरी चुन्नी मे
(महबूब कि चुन्नी का ज़िक्र हो रहा हैं उदयपुर )
तेरी चुन्नी मे दिल को तो चैन आ ही जाता हैं
मैं तुझे देखने के बाद बता ये चैन भला कहाँ से लाऊं
तेरा लेते लेते घंटो तक किताब को पढ़ते रहना
तेरा लेते लेते घंटो तक किताब को पढ़ते रहना
मेरा बैठे बैठे घंटो तक बस तेरी किताब से जलते रहना
रात होते ही दिए सब मैं हर जगह लगाऊ
(जब रात हो जाती हैं तो चाँद की रोशनी मे महबूब और भी खूबसूरत नज़र आता हैं )
रात होते ही ये दिए मैं सब जगह जलाऊ
पर तेरी रोशनी के आगे
पर तेरी रोशनी के आगे उनकी चमक को फीका फीका सा पाऊ
दुआ करू खुदा से
(देखिये दुआ सुनियेगा )
कि दुआ करू खुदा से की वो मुझे तेरी कलम बना दे
दुआ करू खुदा से की वो मुझे तेरी कलम बना दे
कुछ देर के लिए ही सही मुझे तेरे हाथ मे थमा दे
लिखती जाये तु मेरा हाथ थामकर
अपने exam का हर उत्तर
कि लिखती जाये तु मेरा हाथ थामकर
अपने exam का हर उत्तर

कितनी दिशा होती हैं दुनिया मे
बस इसी का ना दे पाए कोई उत्तर
दिशा चार कहते हैं लोग
दिशा चार कहते हैं लोग
फिर मोहब्बत कि क्यों कोई दिशा नही होती
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
हर दिशा मे क्यों आजकल बस तेरी ही बात होती हैं
ना पलके झपकाऊना कुछ और सोचु
बस तुझे देखता जाऊ देखता जाऊ देखता जाऊ



18 th april closing poem

शायद मेरे आंसू से
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
शायद मेरे आंसू से उसका कोई गहरा रिश्ता हैं
तपते हुए रेगिस्तान मे वो जो फूल अकेला हैं
सन्नाटे कि शाखों पर कुछ ज़ख्मी परिंदे हैं
(ये ज़ख्मी परिंदे बहोत खतरनाक होते हैं जब तक ये कुछ ना करे तब तक जब तक ये शांत रहे तब तक सब अच्छा लगता हैं और जहाँ इन्होने कुछ करना शुरू कर दीया वह ज़ख्म सम्हालने मुश्किल हो जाते हैं )
कि सन्नाटे कि शाखों पर कुछ ज़ख्मी परिंदे हैं
खामोशी बजाते बजाते
बस उन पर आवाज़ का पहरा हैं
कब जाने हवा उसको बिखरा दे हवाओ मे
खामोश दरख्तों पर जो सहमा सहमा सा हैं
अब रोये कहाँ सावन अब तडपे कहाँ बादल
अब रोये कहाँ सावन अब तडपे कहाँ बादल
ना आँगन हैं ना बगीचा हैं
मेरा तो बस एक छोटा सा कमरा हैं
कोई हल ना कोई जवाब हैं
ये सवाल कैसा गहरा हैं
जिसे भूल जाने का हुक्म हैं उसे भूल जाना मुहाल हैं
(मुहाल यानी मुश्किल )
जिसे भूल जाने का हुक्म हैं उसे भूल जाना मुहाल हैं
कभी वो भी आसमां की बुलंदियों से उतर कर खाक पर आये
यही मुझे ना चाहने वालो के दिल का हाल हैं

Sunday, April 20, 2008

18th april opening poem

मेरे सीने पर वो सर रखकर सोता रहा
जाने क्या बात थी मैं जागता रहा वो सोता रहा
घटाओ मे कभी उतरा और कभी पर्वत के ऊपर
वो एक बादल का टुकडा कब तक उड़ता रहा
शायद बोझ एक दिल पर रखा था
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
शायद बोझ एक दिल पर रखा था
जिसे मैं ढोता रहा
कभी पानी कभी आंसू कभी सपने से

(हाय !! )
एक वो ही तो था जिसे मैं सीने से लगाकर घंटो रोता रहा
हवाओ के साथ वो देखते ही देखते बदल गया
(जब मोहब्बत मे कोई बदल जाता हैं तब ऐसा होता हैं )
कि हवाओ के साथ वो देखते ही देखते बदल गया
जो जिंदगी भर मोहब्बत का नाम लेकर यूँही जीता रहा
रोने वालो ने उठा रखा था घर सर पर
कि रोने वालो ने उठा रखा था घर सर पर
मगर उम्र भर जागने का वादा करने वाला
मेरी परेशानी मे कहीं तान कर सोता
रहा
रात की पलको पे तारो ने किसी को जगा दिया
(तारे जगा देते हैं ना ये आती रौशनी )
कि रात कि पलको ने तारो को जगा दिया
ओस बूंद पर जो ओस बनकर फूलों पर बैठा रहा
बस मैं आज भी जागता हूँ जागता हूँ जागता हूँ
कोई कहीं रात चैन से लेता सोता रहा
मेरे सीने पर सर रख कर वो सोता रहा
जाने क्या बात थी मैं जागता रहा और वो सोता रहा

17th april opening and closing poem

जो तु मुझे देखना छोड़ दे मैं तेरा ये शहर छोड़ दु
जो तु मुझे सोचना छोड़ दे मैं तेरा साथ छोड़ दु
जो तु छोड़ दे बात करना आईने से मैं आईने सरे शहर के तोड़ दु
जो तु छोड़ दे अपनी जुल्फों से खेलना मैं शहर के सारे फूल देखना छोड़ दु
जो तु छोड़ दे मुझे बार बार फोन करना
जो तु छोड़ दे मुझे बार बार फोन करना
रोज़ मुझसे गुस्सा करना
तु जो कल से बात नही करने का वादा लेना छोड़ दे
जो तु छोड़ दे मेरी poems को रेकॉर्ड करना
मेरी आवाज़ को अपनी रिंग टोन बनाना
जो तु छोड़ दे मेरी poems को रेकॉर्ड करना
मेरी आवाज़ को अपनी रिंग टोन बनाना

जो छोड़ दे शहर भर के लोगो को सिर्फ और सिर्फ मेरे किस्से सुनाना
साथ मेरे हंसते रहना बाकी अकेले बैठ के तु रोना छोड़ दे
जो छोड़ दे मुझसे मिलने के बहाने बनाना
जो छोड़ दे मुझसे मिलने के बहाने बनाना
छोड़ दे अगर तु अपने हाथ से खाना खिलाना
मेरी हर बात को अपने दिल से लगाना छोड़ दे
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
जो तु मेरी हर बात को दिल से लगाना छोड़ दे
फिर कौन जीना चाहता हैं
कौन तुझसे दूर होना चाहता हैं
तु ना छोड़ मेरा शहर किसी भी बहाने से
मैं रहूंगा तेरे इसी शहर मे
बस तु ना दूर जाना एक बात के फसाने से
प्यार करना करते रहना
(बड़ी कमाल की चीज़ होती हैं ये मोहब्बत )
कि प्यार करना करते रहना
बस मेरा ख्याल ना छोड़ देना
कि प्यार करना करते रहना
बस मेरा ख्याल ना छोड़ देना

तुम बात करना करते रहना
पर मुझे ना छेड़ देना किसी बहाने से
जो तु मुझे देखना छोड़ दे

16th april closing poem

आंखों से जागते हैं सपने

आंखों से जागते हैं सपने

ये आंखें सदा को बंद होती क्यों नही

हम जी रहे हैं बिना सहारे

तलाश मेरी आंखों की कभी ख़त्म होती क्यों नही

(जब हम किसी को तलाश करते हैं तो कभी तो वो मिल जाता हैं मगर कभी ना जाने वो कहाँ चला जाता हैं )

कहते हैं इस प्यार से ना देखा करो

(हाय !! बडा कहते हैं वो )

कहते हैं इस प्यार से ना देखा करो

ना प्यार से प्यार को सोचा करो

हमसे बर्दाश्त होती नही उनकी बेवफाई

बस एक बार हमे भी उतने ही प्यार से देखा करो

जितने प्यार से करती हो तुम बेवफाई

आंखों मे तेरा काजल और होठो पर वो लाली

कि आंखों मे तेरा काजल और होठो पे वो लाली

हाथो मे बजते तेरे वो कंगन

और कानो कि तेरी वो बाली

(हाय !!)

सजकर यूं निकालो जब घर से

देखने वालो का जीवन ठहर जाये

रात मे जैसे बिजली एक बार चमके

रात मे जैसे बिजली एक बार चमके

और आकाश मे कहीं खो जाये

तु आये मेरे सामने करार आये

बाकि दिल को मेरे बार बार बस यही ख्याल आये

कि आंखों से झांकते हैं सपने

ये आँखें सदा को बंद होती क्यों नही

16 th april opening poem

समंदर की लहरें रेत के निशान मिटा देती हैं
हम नही कहते पर वो सागर की भीगी आंखें हमे सब बता देती हैं
कई आशिक आते हैं रुठी तन्हाइयो मे
(ये समंदर के दिल का दर्द हैं दोस्तो )
कि कई आशिक आते हैं रुठी तन्हाइयो मे
दर्द को अपनी बाहों मे समेटे हुए
कुछ यादों के घर उस रेत पर बनाते हुए
कुछ यादों से अपना घर सजाते हुए
कभी मंजिल समझलेते हैं हम उस किनारे को
(कभी कभी हम किसी ऐसी चीज़ को अपनी मंजिल समझ लेते हैं जो हमारी नही होती )
कभी मंजिल समझ लेते हैं हम दूर उस किनारे को
तो कभी दूर तैरती एक नांव हमे मंजिल नज़र आती हैं
पर हम प्यार करने वालो को अपनी मंजिल कब मिल पाती हैं
कभी मजिल समझ लेते हैं हम हर उस किनारे को
कभी दूर तैरती एक नांव हमे मंजिल नज़र आती हैं
पर हम प्यार करने वालो को कहाँ अपनी मंजिल मिल पाती हैं
हम तो बस लहरों की तरह आते हैं जाते हैं
उस किनारे को एक बार छूने के लिए ऐसे ही छटपटाते हैं
करो प्यार सबसे ना करना उस किनारे से
कमबख्त मैं सागर होकर भी वह तक कहाँ पहुंच पाता हूँ
और उस पर टहलने वाले हर प्यार करने वाले को उसके पास पाता हूँ
शायद मोहब्बत मे सब मिलता नही सबको
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
शायद मोहब्बत मे सब मिलता नही सबको
इसीलिए मैं अपनी भीगी पलको से आज भी मुस्कुराता हूँ
सागर की लहरे रेत के निशान मिटा देती हैं
हम नही वो भीगी पलके किसी की हमे उसके दिल का हाल बता देती हैं







Monday, April 14, 2008

15th April closing poem

कल कई दिनों बाद तेरा मुझसे मिलने आना
कल कई दिनों बाद तेरा मुझसे मिलने आना
सबको छोड़कर मुझे देखने को तेरा घर की गली मे चक्कर लगाना
कोई और तुझे ना देख ले मेरे साथ
कोई और तुझे ना देख ले मेरे साथ
बस हर पल दिल को अपने बार बार यही समझाना
कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
(ऐसा कहते हैं प्यार करने वाले हैं जी )
कि कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
बस कब आऊंगा मैं आऊंगा मैं
घडी देखते देखते बार बार तेरा यही सोचना
जो याद आ जाए मेरी तो समझना दूर नही हूँ मैं
अपने सीने मे धड़कता सिर्फ मुझको पाओगे तुम
वक्त की गर्मी
(ये वक्त की गर्मी ध्यान से सुनियेगा )
ये वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे तेरा वजूद
उस पल मेरी चाहत की नमी को महसूस करना
उस पल बस मेरी चाहत की नमी को महसूस करना
सब थपेडो से अब मुझको लड़ता पाओगे तुम
हाँ....तुम सब कर लोगे
(महबूब का दिल अपने आप से बात कर रहा हैं कि )
हाँ....तुम सब कर लोगे
पर वक्त पर ना पाओगे तुम
हमेशा की तरह मैं वक्त से थोडा लेट पहुंचा
तुझे देख हाय ना पूछ मेरे दिल को क्या हुआ
हम कल रात एक परी से मिल गए
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई
मुझे अपना सब कुछ मानती हुई
कल कई दिनो बाद तेरा मुझसे मिलने आना

15th April opening poem

कल कई दिनों बाद तेरा मुझसे मिलने आना
सबको छोड़कर मुझे देखने को वो गली मे चक्कर लगाना
कहीं ज़माना ना देख ले तुझे मेरे साथ
बस हर पल अपने दिल को यही एक बात समझाना
कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
बस आऊंगा मैं कब आऊंगा मैं
घड़ी देखते देखते हर पल तेरा बस यही सोचना
जो याद आ जाए मेरी तो समझना दूर नही हूँ मैं
(कहते हैं ना कि इन यादो का कोई मौसम नही होता वक्त बेवक्त बस चली आती हैं )
जो याद आ जाए मेरी तो समझना दूर नही हूँ मैं
अपने सीने मे धड़कता मुझको पाओगे तुम
वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे तेरा वजूद
ये वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे तेरा वजूद
उस पल मेरी चाहत कि नमी को महसूस करना
उस पल बस मेरी चाहत कि नमी को महसूस करना
सब thapedo से अब मुझको लड़ता पाओगी तुम
हर पल बस बहुत याद आओगी तुम
हाँ पता हैं कि तुम ये सब कर लोगे
(मन की बात सुनियेगा महबूब के मन की बात )
हाँ पता हैं कि तुम ये सब कर लोगे
पर वक्त पर ना आओगे तुम
(आदत ही वक्त से लेट पहुँचने की हैं )
कि हाँ पता हैं ये सब कर लोगे
पर वक्त पर ना आओगे तुम

हमेशा की तरह मैं वक्त से थोडा लेट पहुंचा
तुझे देखा होश से करीब से देखा तो हाय
हम कल रात एक परी से मिल गए
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें
इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें
इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई

मुझको सिर्फ मुझको अपना सब कुछ मानती हुई
कल कई दिनो बाद तेरा मुझसे मिलने आना
सबको छोड़कर मुझे देखने को वो गली मे तेरा चक्कर लगाना

14th April closing poem

Link :-
Lyric :-
तेरे प्यार ने वो राग छेड़ा दिल के सुने तारो पर
तेरे प्यार ने वो राग छेड़ा दिल के सुने तारो पर
ज़िंदगी लगे हैं खूबसूरत फिर क्यों ना गुनगुनाऊ मैं
ज़िंदगी लगे हैं खूबसूरत फिर क्यों ना गुनगुनाऊ मैं
मस्त भरी निगाहे तेरी
मस्त भरी निगाहे तेरी
जाने क्या क्या इशारे करती हैं
समझु मैं तेरे हर इशारे को फिर क्यों ना मुस्कुराऊ मैं

(महबूब जब इशारे करता हैं तो ... हाय !! )
फिर क्यों ना मुस्कुराऊ मैं
देखी हैं वो दीवानगी तेरे इश्क के हर अंदाज़ मैं
हमने देखी हैं वो दीवानगी तेरे इश्क के हर अंदाज़ मैं
आज मेरे भी नखरे उठाने वाला हैं कोई
फिर क्यों ना इतराऊ मैं
ये शोखियाँ तेरी उस पर तेरा वो क़यामत की तरह देखना
ये शोखियाँ तेरी उस पर तेरा मुझे यूं क़यामत की तरह देखना
बेबाक निगाहें
(हाय !!!! )
तेरी वो बेबाक निगाहें
झुक कर उठती हैं बार बार
फिर क्यों ना शर्माऊ मैं
साथी मेरा हमदम हैं
साथी मेरा हमदम हैं हमराज़ हैं
आज हैं कोई मेरा भी हमसफ़र
सच तुम सा ना कोई इस दुनिया मैं
फिर क्यों फिर क्यों ना खुश हो जाऊ मैं
कई
महीनों पहले ये शहर बडा अनजान था मेरे लिए
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर ये लाइन सिर्फ आपके लिए )
कई महीनों पहले ये शहर बडा अनजान था मेरे लिए
पर हर दिन हर पल इस शहर से जब इतना प्यार पाऊ
तो बताइए क्यों ना खुश रहूँ मैं
क्यों ना अपने इस प्यार पर
इस दोस्ती पर इस रिश्ते पर इतना इतराऊ मैं

14 th April opening poem

Link :-
Lyric :-
ये तेरी मायूसी मेरी बैचैनी का सबब बन जाती हैं
ये तेरी मायूसी मेरी बैचैनी का सबब बन जाती हैं
ज़िंदगी मे तेरा खफा होना मेरे खफा होने का कारण बन जाती हैं

(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
तेरी साँसों मे मैं सांस लेता हूँ
तेरी साँसों मे मैं सांस लेता हूँ पर
तेरे इस उदास चेहरे से मेरी हर खुशी
ना जाने कहाँ काफूर हो जाती हैं
मेरे लिए क्या चाँद क्या सूरज और क्या तारे

(मोहब्बत मे महबूब ही सब कुछ लगता हैं )
मेरे लिए क्या चाँद क्या सूरज क्या तारे
तु साथ हो तो लगते हैं सब बडे प्यारे
पर तु रूठा हैं इस कदर खुद से
पर तु रूठा हैं इस कदर खुद से
कि खुदा भी डर जाये

(महबूब जब रूठ जाता हैं तो बडा कमल हो जाता हैं )
पर तु रूठा हैं इस कदर खुद से
कि खुदा भी डर जाये
तु हंस दे इक बार प्यार से
तु हंस दे इक बार प्यार से
खुदा का भी अपने काम मे मन लग जाये
मैं तेरी हंसी पे घायल
मैं तेरी हंसी पे घायल
निराली तेरी हर अदा
तेरी मोहब्बत को मैं अपना समझा
मैं सिर्फ तुझपे फ़िदा
अगर होती मोहब्बत मे किसी की भी हस्ती

(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
अगर होती मोहब्बत मे किसी की भी हस्ती
तो मैं मोहब्बत के दरबार का दरबान होता
अगर होती मोहब्बत मे किसी की भी हस्ती
तो मैं मोहब्बत के दरबार का दरबान होता
तु जो मेरे पास से गुज़रती
सर झुकेगा सबका इस दरबान का बस यही फरमान होता
सच तुम जैसा प्यार करने वाला नसीब वालो को नसीब होता हैं
बस तेरी ये मायूसी मेरी हर बैचैनी का सबब बन जाती हैं
ज़िंदगी मे तेरा खफा होना मेरे खफा होने का कारण बन जाती हैं

Sunday, April 13, 2008

13th april closing

although sunday but a sher was there in closing so here it is :-
Link :-
Sher :-
शब्दों मे कहाँ इतनी ताकत कि हर बात का मुझे मतलब समझा सके
शब्दों मे कहाँ इतनी ताकत कि मुझे हर बात का मतलब समझा सके
इस नासमझ को तो वैसे ही कुछ समझ नही आता
पर उदयपुर ये आपका इन्ना सारा प्यार शायद अब मुझे कुछ समझा सके

Saturday, April 12, 2008

12th April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106902878/12_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
आज ये किसका पैगाम मेरे नाम आया हैं
( ज़रा ध्यान से सुनियेगा )
आज ये किसका पैगाम मेरे नाम आया हैं
एक ख़त बेनाम सा मेरे नाम आया हैं
लिखावट भी जानी सी हैं
बहुत पहचानी सी हैं
शायद ये किसी के दिल की हसरत का
एक जाम मेरे नाम आया हैं
तेरे हर अंदाज़ को सितम समझा
तेरे हर अंदाज़ को सितम समझा
तेरे हर सितम को जीतना जानता हूँ मैं
मुझे सताने के लिए तेरा ये नया बहाना
मेरे घर आया हैं
इंतज़ार मे काट दी जिनके हमने अपनी ज़िंदगी
देखिये वो मुझे मनाने भी किस वक्त आया हैं
वो आना मेरे पास उनका आना
वो आना और मेरे पास उनका आना
एक बंद लिफाफे मे
वाह ! दिल लुभाने का एक पुराना अंदाज़ लाया हैं
तुम्हारे ख़त मे वो आखिरी नाम किसका था
तुम्हारे ख़त मे वो आखिरी नाम किसका था
बेरुखी से कट गया था जो बस उस नाम का इल्जाम हम पर आया हैं
तुम्हारे शब्दों ने बयां कर दी तुम्हारी हकीक़त
बस यही की आज मोहब्बत को मोहब्बत का नाम याद आया हैं

12th April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106896781/12_april_opening_poem.wav.html
Lyric :-
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगाना मुझको
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगाना मुझको
अपनी नज़रों मे बसकर कभी ना गिरना मुझको
तुमको अपनी आंखों मे सपने की तरह रखता हूँ

(जब किसी से बहुत प्यार होता हैं और जब वो शख्स सामने होता हैं ये आंखें झपकती हैं तो भी बुरा लगता हैं )
कि तुमको अपनी आंखों मे सपने की तरह रखता हूँ
दिल मे धड़कन की तरह तुम भी बसाना मुझको
बात करने मे जो मुश्किल हो
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
कि बात करने मे जो मुश्किल हो तुम्हे महफिल मे
मैं समझ जाऊंगा नज़रों से बताना मुझको
वादा उतना ही करो जितना निभा सकते हो
वादा उतना ही करो जितना निभा सकते हो
ख्वाब पूरा जो ना हो वो ना दिखाना मुझको
अपने रिश्ते की नज़ाकात का इक अहसास रख लेना
(हर रिश्ते मे बहुत अहसास होते हैं तब तक जब तक वो रहता हैं )
अपने रिश्ते की नज़ाकात का इक अहसास रख लेना
मैं तो दीवाना हूँ और दीवाना ना बना मुझको
कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
की मैं कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
ग़ज़ल , कविता ,गीत सब तू ही मेरा
कोई और ग़ज़ल ना सुना मुझको
आवाज़ देती हैं ज़िंदगी मेरी हर मोड़ से
(बड़ी आवाजे देती हैं ज़िंदगी कभी अच्छी कभी बुरी )
कि आवाज़ देती हैं ज़िंदगी मेरी हर मोड़ से
तू साथ हैं तो चल बस इशारों से ना समझा मुझको
मैं प्यार करूं तो रुसवाई हो जाये
मैं प्यार करूं तो रुसवाई हो जाये
तू कम से कम प्यार ना सीखा मुझको
(hmmm)
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगा मुझको
अपनी नज़रों मे बसाके ना गिरा मुझको

11th April baato-baato me

OPENING POEM :-
तेरी आंखों के आँसुओ की क्या कीमत वसूल करू मैं
(ज़रा ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
कि तेरी आंखों के आँसुओ की क्या कीमत वसूल करू मैं
तुझे रुलाने वाले के साथ क्या सलूक करू मैं
हैं तेरे अपने ही तेरे दुश्मन
वरना तेरा नाम लेने वालो कि हालत बुरी करू मैं
क्यों तेरे आंसू देख नही पता मैं
क्यों तेरे आंसू देख नही पता मैं
तू जो रो दे तो दुनिया को रुला दु मैं
तेरे ज़ख्म क्या मेरे ज़ख्म नही हैं
(महबूब कि हर चीज़ अपनी लगाती हैं उसके ज़ख्म भी )
कि तेरे ज़ख्म क्या मेरे ज़ख्म नही हैं
दिल करे तेरे हर ज़ख्म को अपने आँसुओ से पी लूँ मैं
दिल चाहे तुझे हर खुशी दिया करू मैं
दुनिया कि सारी नफरत को मोहब्बत मे बदल दु मैं
तेरी आंखों से आंसू निकले तो ना पूछ दिल पे क्या गुज़रती हैं
तेरी आंखों से आंसू निकले तो ना पूछ दिल पे क्या गुज़रती हैं
गुज़रती हैं गुज़रती हैं
ये साँसे बड़ी मुश्किल से निकलती हैं
LINK 1 :-
mp3 link :- http://rapidshare.com/files/106888873/tere_ye_aansu_link_2.wav.html
मेरे पहलू मे जो बैठे
बैठते ही निकल जाये तुम्हारे आंसू
बन गए शाम-ए-मुलाक़ात के
ना जाने कितने सितारे तुम्हारे आंसू
देख सकता हैं भला कौन ये पराये आंसू
मेरी आंखों मे ना आ जाये
तुम्हे याद करते करते कहीं ये आंसू
अपना चेहरा मेरे गिरेबान मे छुपाती क्यों हो

(जब महबूब गले लगकर रोता हैं हाय मत पूछिये क्या होता हैं )
अपना चेहरा मेरे गिरेबान मे छुपाती क्यों हो
दिल की धड़कन कोई सुन ना ले इसलिए रोती जाती हो

शमा का अक्स झलकता हैं
तेरे हर आंसू मे और रोते रोते सितारे बन गए तेरे आंसू
साफ इनकार ही कर देती
(hmmm...)
तू साफ इनकार ही कर देती अगर मोहब्बत नही थी
क्यों चुप रहकर बहाए तुने ये तेरे आंसू
हिज्र अभी दूर हैं मैं पास ह तेरे तो क्या हुआ
कि हिज्र अभी दूर हैं मैं पास हूँ तेरे तो क्या हुआ
क्यों मेरा चैन ले जाते हैं तेरी आँख से आते आंसू
सुबह दम देख ना ले कोई ये भीगा आँचल
(ज़रा ध्यान से सुनिएगा उदयपुर )
कि सुबह दम देख ना ले कोई ये भीगा आँचल
बहोत चुगली करते हैं कमबख्त ये तुम्हारे आंसू

Link 3 :-
ना जाने तुमपे इतना यकीं क्यों हैं

(ज़रा ध्यान से सुनियेगा )

ना जाने तुमपे इतना यकीं क्यों हैं

तेरा ख्याल भी कमबख्त इतना हसीं क्यों हैं

सुना हैं प्यार का दर्द मीठा होता हैं

सुना हैं कि प्यार का दर्द मीठा होता हैं

तो आँख से निकले मेरे ये आंसूं नमकीन क्यों हैं

Link :4

सभी को सबकुछ नही मिलता

सभी को सबकुछ नही मिलता

नदी कि हर लहर को ये साहिल नही मिलता

ये दिल वालो कि दुनिया हैं दोस्त

ये दिल वालो कि दुनिया हैं दोस्त

किसी से दिल लगाने से हर समय आंसू नही मिलता

Link - 5

शायद जिंदगी के सितम अभी और बाकी थे

(ज़रा ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )

शायद जिंदगी के सितम अभी और बाकी थे

जो मुझे तु नसीब ना हुआ

शायद किसी की मोहब्बत के वादे अभी बाकी थे

जो मुझे खुशी नसीब ना हुई

शायद किसी के पास मेरे लिए शिकायते बहुत थी

(महबूब को हर पल शिकायत रहती हैं भाई )

कि शायद किसी के पास मेरे लिए शिकायते बहुत थी

शायद इसीलिए मुझे किसी की शिकायते मालूम ना हुई

सोचा मैंने कि जब मैं उदास होऊ तो तुझे गले लगाकर फफक फफक के रो पडू

सोचा मैंने जब मैं उदास हूँ तो तुझे गले से लगाके फफक फफक के रो पडू

मगर शायद उस पल वक्त को हमारी हालत मंजूर ना हुई

Link - 6

दुखो से मैंने ज़िंदगी गुजारी

फिर भी खुश रहने की हर सज़ा कुबूल की मैंने

दुखो से मैंने ज़िंदगी गुजारी

फिर भी खुश रहने की सजा कुबूल की मैंने

दिल्लगी तो ना मुमकिन थी हमसे

फिर भी ज़िंदगी मे खुशियों को पनाह दी मैंने

दुख सहने कि आदत सी हो गयी थी मुझको

(ध्यान से सुनियेगा )

कि दुख सहने कि आदत सी हो गयी थी मुझको

इस दुख से फिर भी दोस्ती की मैंने

मेरे प्यार को दिल्लगी ही समझा कोई

(कि भाई हमने किसी से प्यार किया तो वो इसे दिल्लगी समझ बैठा )

कि मेरे प्यार को दिल्लगी ही समझा कोई

फिर भी एक उम्मीद से उम्मीद को मोहब्बत की मैंने

मेरी मोहब्बत कोई ना समझा

मेरे दुखो को वो शख्स सिर्फ बहाना समझा

मेरी मोहब्बत कोई ना समझा
मेरे दुखो को वो शख्स सिर्फ बहाना समझा

पर मेरी मोहब्बत हर दीवाना

सिर्फ दीवाना समझा

Closing poem :-

रात आधी खींच कर मेरी हथेली की उंगली

(ध्यान से सुनियेगा )

रात आधी खींच कर मेरी हथेली की उंगली

कहती हैं....सो गए क्या ??

फासला कुछ था हमारे बरिस्तो मे

और चारो और दुनिया सो रही थी

बस बातें ये मेरी आकाश से हो रही थी

(आकाश यानि बादलों की बात हो रही हैं )

बातें ये मेरी आकाश उस से हो रही थी

बातें दिल की दिल से हो रही थी

मैं तुम्हारे पास होकर भी दूर हुआ तो क्या

बस दूर हुआ जा रहा हूँ

तुझे शायद मेरी मोहब्बत इस पल भी बहुत याद आ रहा हूँ

तुम हो ऐसा लगा मुझे जब बाहर बिजली चमकी

तुम हो ऐसा लगा मुझे जब बाहर बिजली चमकी

मैं तुम्हे देखने बाहर भागा

तुम करवट कहीं बदलती रही

मैं सारी रात जागा

मैं लगा तुमको खोजने तुमको सोचने

पर कहाँ सपने सच होते हैं

पर कहाँ ये सपने सच होते हैं

तुम मुझे नज़र ना आई

बस बरबस ही मेरी ये आंखें उन बादलों पे ठहर आई

जब तुम्हें वहाँ देखा तो पाया तुमको

उन बादलों के पार

तब जाके मेरे दिल को चैन आया

आया आकर करवट बदली चादर तानी अपनी

आंखें बंद की तो तेरा चेहरा नज़र आया

अपने प्यार को अपनी बांहों मे जब लिया सच तु

बहुत याद आया

11th april closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106869873/11_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
(ध्यान से सुनियेगा ज़रा प्यार की बात हैं )
एक दो मुलाक़ात मे प्यार नही हो जाता
एक दो मुलाक़ात मे प्यार नही हो जाता
ये तो यारो प्यार हैं
मेरे लिए बस खेल तमाशा हैं कहना
आजकल प्यार क्या हैं
आजकल प्यार क्या हैं
एक जाता हैं दूजा चला आता हैं
आजकल प्यार क्या हैं
एक जाता हैं तो दूजा चला आता हैं
दूजे के जाने के बाद फिर से प्यार हो जाता हैं
यारो प्यार कोई खेल नही जो बार बार हो जाता हैं
(कुछ लोगो ने प्यार को जाने क्यों मजाक और खेल सा बना रखा हैं )
यारो प्यार कोई खेल नही जो बार बार हो जाता हैं
दिल के घर मे तो मेरे एक ही दिलबर आता जाता हैं
(आप smile कर ले फिर मैं आगे बोलता हूँ , सब पता चलता हें मुझे , हाँ जी )
कि दिल के घर मे तो मेरे एक ही दिलबर आता हैं
अपना जीवन गुज़र जाता हैं
पर ये प्यार कहाँ समझ आता हैं
प्यार तो यारो वो दीपक हैं
प्यार तो यारो वो दीपक हैं जो अँधेरे मे राह दिखाता हैं
प्यार हैं वो क्या हैं ये
कि प्यार हैं वो अहसास जो बारिश को बरसना बताता हैं
कि प्यार हैं वो अहसास जो बारिश को बरसना बताता हैं
जो कुछ लेता नही तुमसे बस अपना सब कुछ तुमको देकर जाता हैं
प्यार हैं वो जज्बा जो पूजा की तरह पूजा जाता हैं
पर आजकल का प्यार क्या हैं
एक जाता हैं दूजा चला अत हैं
बहोत तमन्ना थी प्यार मे एक आशियाना बनाने की
(आशियाना घर को कहते हैं )
बहोत तमन्ना थी प्यार मे आशियाना बनाने की
बना तो चुके थे एक आशियाना
ना जाने क्यों नज़र लग गयी ज़माने की
उसी के कारण कभी आंखों से आंसू चले आते हैं
उसी के कारण कभी आंखों से आंसू चले आते हैं
लगता हैं बहोत बड़ी सजा मिली हमे किसी का दिल दुखाने की
एक दो मुलाक़ात मे प्यार नही हो जाता

11 th April opening poem

I am sorry for this poem . I had my exam from 7 to 10 and like other exam days i left it on recording mode but got some error and missed this poem
just request Ankit to repeat this poem for all

10 th April closing poem

Link:- http://rapidshare.com/files/106851343/10_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी जब तू मुझे याद आया
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी जब तू मुझे याद आया
आज मुश्किल था संभालना दिल को
की बस तभी मेरे दिल मे एक ख्याल आया
बहोत टटोला मैंने बहोत ढूँढा मैंने मेरे दिल को
पर दिल की जगह कोई खूबसूरत परी सा नज़र आया
(ज़रा ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
बहोत टटोला मैंने बहोत ढूँढा मैंने अपने दिल को
पर दिल की जगह कोई खूबसूरत परी सा नज़र आया
हाल-ए-दिल हम भी सुनते लेकिन
हाल-ए-दिल हम भी सुनते लेकिन
जब वो रुखसत हुए हमे तब याद आया
दिन तो गुज़रा था बड़ी मुश्किल से जैसे ही सूरज ढला शाम आई
मुझे वो तेरा वादा याद आया
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
देखा जब किसी मासूम को मैंने तो मुझे न जाने कौन सा शेर याद आया
घर आजकल बहोत सुना सुना सा लगता हैं किसी के बिन
पर जब स्टूडियो और माइक को देखा
तो भैया भाभी , मानसी , प्रवीणजी, किरणजी, मनोजजी , नीलिमा ,केशवजी , देवेन्द्रजी
और आप सारे दोस्तो को याद करने का नया बहाना याद याद आया
मुझे अपना घर भी भरा भरा सा नज़र आया
जब उदयपुर आपका एक इन्ना सा पैगाम आया
मेरी बातो को तो अपने अपना बना लिया
मेरी टेंशंस में भी अब अपने माथे पर एक सल आया
मोहब्बत ने हमारी शायद घर बसा लिया होगा
शायद तभी इस अंकित पे सारे उदयपुर को अब इतना प्यार आया
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी जब तू मुझे याद आया


10 th April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106851210/10_april_opening_poem.wav.html
Lyric :-
अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो फिर चले जाना
अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो फिर चले जाना
अभी सूरज का ढलना बाकि हैं
इन्हें रौशनी का मतलब बता दो तुम फिर चले जाना
जो मेरा और तुम्हारा ये वक्त हंसने रोने मे गुज़रा हैं
जो मेरा और तुम्हारा ये वक्त जो हंसने रोने मे गुज़रा हैं
उसे पूरी तरह भुला दो फिर चले जाना
ये सारे पेड़ पौधे तुम्हारे लिए एक रुत से जागे हुए
ये सारे पेड़ पौधे तुम्हारे लिए एक रुत से जागे हुए
तुम आके एक बार इनको प्यार से सुला दो फिर चले जाना
किसी को चाहना और किसी से चाहने का
किसी को चाहना और किसी से चाहने का
जो होता हैं अहसास
हमको भी थोड़ा सा सीखा दो फिर चले जाना
वो जो इंतज़ार हैं जुदा हैं जो आपके इंतज़ार से
(कि भाई जब महबूब का इंतज़ार करते हैं तो वक्त रुक सा जाता हैं )
वो जो इंतज़ार हैं जुदा हैं जो आपके इंतज़ार से
उसे इंतज़ार का मतलब सीखा दो फिर चले जाना
बस एक हँसी से अपने अश्कों को छुपाने का
बस एक हँसी से अपने अश्कों को छुपाने का
जो फन आता हैं तुमको वो हमे भी सिखा दो तुम फिर चले जाना
जो कहते कहते रुक गए
(अक्सर ऐसा होता हैं की जब हम महबूब से मिलते हैं तो बातें हमेशा पूरी नही हो पाती )
कि जो कहते कहते रुक गए
उन सारी बातो की शमा को एक बार अपनी साँसों से बुझा दो तुम फिर चले जाना
ना जाने क्यों हैं
ना जाने क्यों हैं लेकिन देखने की तुमको आदत हैं
कि ना जाने क्यों हैं लेकिन देखने की तुमको आदत हैं
मेरी इस बेवजह की आदत को छुडा दो तुम फिर चले जाना
मेरी हर सुबह का मतलब सिर्फ तुम हो
मेरी हर सुबह का मतलब सिर्फ तुम हो
मुझे अपना बना लो फिर चले जाना
हाँ अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो तुम फिर चले जाना

Friday, April 11, 2008

9 th April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106647183/9_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
सर से पाँव तक एक दिन एक सिरहन सी हुई
( आह ह ह !!!!!! ऐसी सी कुछ )
सर से पाँव तक दिन एक एक सिरहन सी हुई
आईने पर जो दिखी बिंदी तेरी चिपकी हुई
एक पल मे जी लिया मैं पूरे पच्चीस बरस
एक पल मे जी लिया मैं पूरे पच्चीस बरस
जब देखा किसी को तेरे रंग की सारी पहनी हुई
अब छुअन मे वो तपन आग मे वो बैचैनी कहाँ
(ऐसा होता हैं जब जिससे हम बहुत सारा प्यार करते हैं वो थोड़ा सा भी दूर हो जाए तो फिर हर बात मे उसकी बात याद आती हैं मगर होता ये हैं कि )
अब छुअनमे वो तपन आग मे वो बैचैनी कहाँ
तू ना घर हो तो काँहे का घर
तू घर हो तो बस उसी पल वो घर लगे
मेरे कुरते का बटन टुटा तो ये जाना हैं क्यों
मेरे कुरते का बटन टुटा तो ये जाना हैं क्यों
तू मुझे हमेशा दिखती हैं काम मे उलझी हुई
ज़िंदगी का मतलब बस यही
वो प्यारी सी दो आंखें
कहीं ना कहीं बस पूरे दिन प्यार से
मेरी राह तकती हुई
सौ सवाल सौ सपने
बस ना सोती हुई पूरी रात मैं चैन से सो जाऊँ इसीलिए जगती हुई
तेरी चुडिया खनके तो जान जाती हैं सब
तेरी जब चुडिया खनके तो जान जाती हैं वो सब
कि क्यों चलती हवाए तेरा नाम गुनगुनाती हैं
कहानी वो अधूरी काश पूरी हो जाती
कहानी वो अधूरी काश पूरी हो जाती
तू रोज़ मुझे तेरे हाथ से दाल चावल खिलाती
और वही कहीं पेड़ की छाँव मे इस कमबख्त को
थोडी देर के लिए ही सही बस नींद आ जाती
सर से पाँव तक एक सिरहन हुई

9th April opening poem

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
हमने शायद मोहब्बत से दोस्ती कर ली
भल शायद हमने बहुत बड़ी कर ली
हमने शायद मोहब्बत से दोस्ती कर ली
वो मोहब्बत को खेल कहते रहे
(ज़रा ध्यान से सुनिएगा उदयपुर )
वो मोहब्बत को खेल कहते रहे
हमने ज़िंदगी मोहब्बत से बर्बाद कर ली
सबकी नज़रे बचके देख लिया
कि सबकी नज़रे बचके देख लिया
आंखों आंखों मे बात कर ली
आशिकी मे बहुत ज़रूरी हैं बेवफाई
कि आशिकी मे बहुत ज़रूरी हैं बेवफाई
तो बेवफाई से भी मोहब्बत करके देख ली
हम नही जानते
हम नही जानते चिरागों ने क्यों
अंधेरो से दोस्ती कर ली
(हम नही जानते कि क्यों चिराग अँधेरे से दोस्ती कर लेते हैं )
कि हम नही जानते चिरागों ने क्यों
अंधेरो से दोस्ती कर ली

धड़कने भी हमारी दफन सी हो गयी
ना जाने उसने कब दिल ही दिल मे एक दीवार खड़ी कर ली
ओस को भी ओस का कतरा ना समझना
कि ओस को भी ओस का कतरा ना समझना
हमने तो तेरी चाहत मे उस समंदर से दोस्ती कर ली
इस ख्वाब के माहौल मे बड़ी बेख्वाब हैं आंखें
इस ख्वाब के माहौल मे बड़ी बेख्वाब हैं ये आंखें
ना जाने कब नींद आयेगी ये सोचकर हमने रात से दोस्ती कर ली
इसी उम्मीद मे कि ये दिल अब कभी नही टूटेगा
इसी उम्मीद मे कि ये दिल अब कभी नही टूटेगा
हमने सिर्फ आपसे मोहब्बत कर ली
भूल शायद हमने बहुत बड़ी कर ली

8th April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106639714/8_april_closing.wav.html
Lyric :-
खामोश बातों की बस्ती मे घुमे मोहब्बत अकेली
अनकही अनसुलझी बनी हैं ये कैसी पहेली
खामोश बातों की बस्ती मे घुमे मोहब्बत अकेली
अनकही अनसुलझी बनी हैं ये कैसी पहेली
तेरा रूठना मेरा मनाना
तेरा रूठना मेरा मनाना
पर तेरा रूठना कुछ पल का सही
लगता हैं जैसे उस पल ज़िंदगी का हमसे रूठ जाना
तुझे मनाने मेरा ठंड मे भी चले आना
तू तो सोयी होती हैं अपनी रजाई मे
मेरा घंटो तेरी गली के चक्कर लगाना
(किसने कहा .... आय हाय !! ok )
किसी से डाँट ना पड़ने तक बाइक का हार्न बजाना
(मैं बहुत हार्न बजके अपनी गाड़ी चलता हूँ )
कि किसी से डाँट ना पड़ने तक बाइक का हार्न बजाना
ना रूठना बुरा हैं ना
रूठे सनम को बुरा लगता हैं मेरा मनाना
पर तेरा पायल चंककर क्यों
एक दीवाने को और दीवाना बनाना
नाज़ हैं मुझे तेरे हुस्न पर
(बहुत खूबसूरत हैं वो यार ना पूछो कैसी हैं )
कि नाज़ हैं मुझे तेरे हुस्न पर
पर दीवानों सी बात करते करते
इस दीवाने को दीवाना बुलाना थोड़ा सा बुरा लगता हैं
कि दीवानों सी बात करते करते
इस दीवाने को दीवाना बनाना इन्ना सा बुरा लगता हैं
चलो अच्छा हैं कि तू हफ्ते मे दो तीन बार रूठ जाती हैं
चलो अच्छा हैं कि तू हमसे हफ्ते मे दो तीन बार रूठ जाती हैं
इसी बहाने ही सही वो कुछ गुलाब लाने कि
ताकत तो हममे ना जाने कहाँ से आती हैं
खामोश बातो कि बस्ती मे घुमे ये मोहब्बत अकेली
अनकही अनसुलझी जाने ये ज़िंदगी तेरे बिना कैसी पहेली

8 April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106638095/8_april_opening.wav.html
Lyric :-
बीते लम्हे क्यों हर पल याद आते हैं
ये बीते लम्हे क्यों हर पल याद आते हैं
याद आकर फिर हमे क्यों इस तरह सताते हैं
क्यों एक इंसान ऐसी छाप छोड़ जाता हैं
क्यों एक इंसान ऐसी छाप छोड़ जाता हैं
जो चाहकर भी ये दिल कहाँ मिटा पता हैं
क्यों ये आंसू थामने का नाम नही लेते
(जब कोई बहुत याद अत हैं तब ऐसा होता हैं )
कि क्यों ये आंसू थामने का नाम नही लेते
एक अजनबी की राह को ना जाने क्यों तकते रहते हैं
क्यों ये दिल बस एक जिद करे बैठा हैं
क्यों ये दिल बाद एक जिद करे बैठा हैं
उस बेवफा से प्यार कि आस लगाये बैठा हैं
ये मौसम क्यों इतना हसीं होता जा रहा हैं
(जब किसी कि याद आती हैं तो अचानक ये मौसम बदलने लगता हैं )
ये मौसम क्यों इतना हसीं होता जा रहा हैं
क्यों दर्द से हर पला ये प्यार मेरी अब जान लेता जा रहा हैं
हर धड़कन एक फरियाद कर जाती हैं
हर धड़कन एक फरियाद कर जाती हैं
आंखें बंद हो तो जन्नत
खुलने पर ये सौ सवाल दे जाती हैं
ये बीते लम्हे सबकी ज़िंदगी मे आते हैं
कभी अच्छी कभी बुरी यादें दे जाते हैं
पर आप मुझे आज भी क्यों मेरे घर की सीढियों मे नज़र आते हैं
पर आप मुझे आज भी ना जाने क्यों मेरे घर की सीढियों मे नज़र आते हैं
हाँ ये प्यार ही हैं शायद
हाँ ये प्यार ही हैं शायद
कि हम चाहकर भी तुझसे कुछ ना कह पाते
बस ये बीते लम्हे याद आते हैं

7th April baato-baato me

unfortunatelu RJ Jeet met an accident so RJ Ankit was hosting baato-baato me so here are few links he read on the show :-
opening poem :-
Link :- http://rapidshare.com/files/106613622/7_april_baato_baato_me_opening.wav.html
Lyric :-
हमने प्यार से मोहब्बत करके देखा
हमने प्यार से मोहब्बत करके देखा
प्यार को चाहत की नज़रों से देखा
कभी प्यार को उलफत बना कर देखा
कभी प्यार को रुसवा करके देखा
पर प्यार ना तो दोस्ती हैं
वो शायद मोहबात हैं
वो ना तो चाहत हैं
पर शायद वो उलफत हैं
प्यार को दिलो की धड़कन कहते हैं
(कहते हैं ना ? कि जब दिल धड़कता भी हैं तो बस किसी और के लिए )
प्यार को दिलो की धड़कन कहते हैं
शायर की शायरी कहते हैं
प्यार को प्यार की दीवानगी कहते हैं
और हम प्यार की बात करने वाले
प्यार को बस इबादत कहते हैं
प्यार सचमुच इबादत हैं
प्यार हैं तो सचमुच इनायत हैं
प्यार से बंधा हैं हर एक इंसान
(हर कोई कहीं ना कहीं प्यार कई डोर से बंधा रहता हैं )
कि प्यार से बंधा हैं हर एक इंसान
और प्यार से ही महफूज़ ये जहाँ
(ये प्यार हाय !!!!!! )
प्यार जिसका ना कोई रंग ना कोई रूप
प्यार जिसकी ना कोई शक्ल ना वजूद
प्यार का ना कोई सपना ना कोई अपना
प्यार तो बस प्यार होता हैं
फिर भी हम जानते नही कि ये प्यार क्या होता हैं
link 2:- aankhein band karke bhi
आंखें बंद करहे भी हम तेरा दीदार करते हैं
आये सनम हम तो सिर्फ तुझसे प्यार करते हैं
लाख चाह कर भी मैं तुझे भुला नही सकता
(उम्महह !!!!)
कि लाख चाहकर भी मैं तुझे भुला नही सकता
सांस रहते तेरी तस्वीर आंखों के सामने से हटा नही सकता
आखिरी पल तक तू हो जा बेवफा
कि आखिरी पल तक तू हो जा बेवफा
तुझे याद करता हूँ
तेरी यादों मे किसी और को बसा नही सकता
link 3 :- aye kash kahin
ए काश कहीं ऐसा होता
ए काश कहीं ऐसा होता
मेरा घर तेरे घर के करीब होता
ए काश कहीं ऐसा होता
मेरा घर तेरे घर के करीब होता
तुझसे मिलने की आस तो नही होती
पर ये इंतज़ार का फासला थोडा सा काम होता !
link 4 :- dil mera suna suna
दिल मेरा सुना सुना
सुना लगे मुझे अपना प्यार
आंखों मे भी एक सूनापन
किसका हैं ये इंतज़ार
अध्लेते हम लिखते हैं
दिल कि बातें कागज़ पर
लिखते हैं तेरा नाम
फिर क्यों ख़त्म नही होता
ये किसका इंतज़ार
link 5 :- pyaar

वो लम्हे हमे याद ना रहे तो क्या होगा

(जब किसी के साथ कोई वक्त बहुत अच्छा सा बीत जाता हैं तो उस वक्त के दूर जाने का डर लगा रहता हैं )

कि वो लम्हे हमे याद ना राहे तो क्या होगा

तेरे सिवा हमारे पास कोई बात ना राहे तो क्या होगा

ऐसी हैं ये मेरे दिल कि धड़कने कि तुझे क्या बताऊ

कि ऐसी हैं ये मेरे दिल कि धड़कने कि तुझे क्या बताऊ

हर साँसों के बाद बस मेरी सांस तेरा ही नाम रहे तो क्या होगा

दुआओं कई भीड़ मे एक दुआ हमारी भी

(हम बहुत दुआएं करते हैं सबके लिए )

कि दुआओं कई भीड़ मे एक दुआ हमारी भी

जिसने जो माँगा खुदा से

ए खुद मुझे कुछ दे ना दे उनको वो सब दे दे

जो वो चाहते हैं जो वो माँगते हैं

जो वो पाना चाहते हैं

शायद यही प्यार होता हैं

Link 6 :- Intezaar

बिस्तर की सलवटे कह रही हैं

मेरी बैचैनियो की कहानी

बिस्तर की सलवटे कह रही

मेरी बैचैनियो की कहानी

तकिये कि नमी से लगता हैं

रात भर रोती रही दीवानी

तन्हाँ रातें तन्हाँ जीवन

चारो और तन्हाई

उजली तकती आंखें

कह रही अपनी व्यथा कि कहानी

(ऐसा होता हैं जब हम किसी का इंतज़ार करते हैं कमबख्त ये वक्त कटता ही नही )

तीन महीने पहले शायद

थोडी सी मुस्कुरायी थी

जब पड़ोस की एक चिठ्ठी

गलती से उसके घर चली आई थी

हालांकि लिफाफे पर पता देखते ही

मुस्कराहट उड़ गयी

फिर चिठ्ठी के इंतज़ार मे उसके बाद

वो कुछ दिन कहाँ चैन से सो सकी थी

दिन भर आँगन मे बैठकर सड़क को तकते रहना

(ये महबूब का इंतज़ार कमाल होता हैं )

कि दिन भर आँगन मे बैठकर सड़क को तकते रहना

और रात भर आंखों से आंसुओं का बहते रहना

अगर कभी नींद जग जाये तो अचानक घबरा कर उठ जाना

अगर कभी ये नींद जग जाये तो अचानक घबरा कर उठ जाना

और दौड़कर खिड़की से बाहर सड़क को देखकर आना

(ऐसा होता हैं जब हम अपने महबूब का इंतज़ार करते हैं वक्त कटता ही नही कटता ही नही यूं तो इस संसार मे किसी को जीते जी चैन नही मिलाता पर काश इस संसार मे किसी को ये ऐसा इंतज़ार ना मिलता )

पत्थर की सड़क को तकते तकते आंखें पथरा जाना

पत्थर की सड़क को तकते तकते ये आंखें पथरा जाना

ये ऐसा इंतज़ार मेरे खुदा किसी कि ज़िंदगी मे ना लाना

Link 7 :-

लहरों को ये पता हैं कि किनारे से मिलकर वो बह जाएँगी

(सब पता हैं लहरों को .... )

लहरों को ये पता हैं कि किनारे से मिलकर वो बह जाएँगी

जानती हैं वो समंदर मे जाने के बाद खो जायेंगी

अपने अस्तित्व को दांव पर लगाकर

क्यों लहरों को फिर भी वो किनारा भाता हैं

क्या पता क्या यही प्यार कहलाता हैं

परवाना क्यों शमा के चारो और मंडराता हैं

उसको शमा मे ऐसा क्या भाता हैं

कि जानता हैं आग हैं सामने फिर भी

उसी कीऔर बस खिंचा चला जाता हैं

क्या यही प्यार कहलाता हैं

मोम सबकुछ जानकर भी बाती को

अपने दिल मे बसा लेता हैं

और बाती के साथ वो खुद बस

पिघलती जाती हैं , जलती जाती हैं

कोई नहीं जानता उसका उस बाती से क्या नाता हैं

क्या यही प्यार कहलाता हैं

अंकित को तो हर प्यार करने वाला

बडा प्यारा नज़र अत हैं

और ये अंकित कहाँ आजकल प्यार की बातें समझ पाता हैं

क्या यही प्यार कहलाता हैं ?

Link 8 :-

प्यार के नाम कोई दवा ना दुआ काम आये

कि प्यार के नाम कोई दवा ना दुआ काम आये

ऐसी आग लग जाये पानी मे कि कमबख्त कोई ना बुझा पाए

हम आज भी रोते हुए हंसने लगते हैं तुझे याद करके

हम आज भी रोते हुए हंसने लगते हैं तुझे याद करके

शहर बदल दीजिये सच हम आपको फिर भी पल पल याद आये

Link 9 :-

उनकी याद के बिना एक सांस भी अब तो हमे गुनाह सी लगती हैं

(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )

उनकी याद के बिना एक सांस भी अब तो हमे गुनाह सी लगती हैं

उनके गमो को हमारी आंखों मे पनाह मिलती हैं

उनके बिना जब ज़िंदगी को

कि उनके बिना जब ज़िंदगी को कोई बेनाम ही बताता हैं

सच उदयपुर यही प्यार कहलाता हैं

Link 10 :-

तुम बिन ज़िंदगी सजा सी हो गयी हैं

तेरे इंतज़ार मे इस कदर खो गयी हैं

तुम आ जाओ वापिस ये गुज़ारिश हैं मेरी

तुम आ जाओ वापिस ये गुज़ारिश हैं मेरी

मुझे तुम्हारी अब आदत सी हो गयी हैं

Link 11 :-

वैसे ये दिल बेकरार नहीं पर हमारे दिल को करार नही

(पता नही क्यों नहीं )

वैसे ये दिल बेकरार नही पर हमारे दिल को करार नही

चाहा हैं आपको अपनी जान से ज्यादा

कि चाहा हैं आपको हमने अपनी जान से ज्यादा

पर हमे आपका इंतज़ार

(महबूब जब रूठ जाता हैं तो हम ऐसा ही कहते हैं )

इस दिल कि आग को बुझाये कैसे

नींद नही चैन नही ये हमारी आंखों का कसूर नही

नींद नही चैन नही ये हमारी आंखों का कसूर नही

धड़कने हर धड़कन के साथ

तेरा नाम ना सुझाये तो क्या सुझाये

ये इंतज़ार कि बात क्यों मेरी हर सांस के साथ

मेरी वफ़ा का इम्तिहान लेती जाये

आये खुदा मेरे कुछ ऐसा कर दे

आये खुदा मेरे कुछ ऐसा कर दे

वो कहीं हो मेरा इंतज़ार सिर्फ उसके नाम कर दे

Link-12

क्यों बारिश कि ये बूंदे धरती को मिलने की चाह मे इतना इतराती हैं

(जब महबूब किसी के लिए तैयार होता हैं तो बहुत इतराता हैं )

क्यों बारिश कि ये बूंदे धरती को मिलने की चाह मे इतना इतराती हैं

खुद को मिटा के वो बस धरती मे बस जाती हैं

खुद को धरती का हवाला देकर

खुद को धरती का हवाला देकर

ये सावन भी ना जाने क्या पता हैं

क्या यही प्यार कहलाता हैं

पता नही उदयपुर प्यार की बात होते ही

ना जाने मेरा चेहरा क्यों खिल जाता हैं



closing poem of baato-baato me:-

link :- http://rapidshare.com/files/106637164/Ye_tere_hath_me.wav.html

Lyric :-

ये तेरे हाथ मे पत्थर हैं या फूल हैं

ये तेरे हाथ मे पत्थर हैं या फूल हैं

जब तू मुझे कुबूल तो तेरा हर अंदाज़ भी कुबूल हैं

तू दिल पे बोझ लेके मुझसे मिलने तो आ

(महबूब परेशान होता हैं तो मिलता नही की किसी की आंखें किसी को सब कुछ कह देगी)

कि तू दिल पे बोझ लेके ही सही हमसे मिलने तो आ

मिलना हैं कुछ देर का

हमे तेरा बिछड़ना भी कुबूल हैं

मैं नही जानता की ये मुलाक़ात क्यों इतनी सी होती हैं

रोज़ वक्त से लड़ना चाहता हूँ

पर फिर भी दूरी सी होती हैं

तु आ तो सही एक बार अपनी सूरत तो दिखा जा तु

चल मेरा दिल ना लौटा अपना दिल तो दिखा जा

7th April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106612112/7_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मे
कि लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मे
और तुम तरस भी नही खाते किसी का दिल दुखाने मे
हर धड़कते दिल को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने मे
उसकी मज़बूरी ये कह भी नही सकती
उसकी मज़बूरी ये कह भी नही सकती
आज भी पूरा दिन लगाया मैंने सूखे फूल सजाने मे
तमाम रिश्तो को तो मैं रोज़ घर छोड़ आता हूँ
पर इन चार घंटो मे आपसे इतना प्यार पाता हूँ
कि कूच और याद नही कर पाता हूँ
बहुत अजीब हैं ये नजदीकीयो की दूरी
कि बहुत अजीब हैं ये नजदीकीयो की दूरी
कि आप मेरे पास भी रहते हैं
आप मुझे सुनाई भी देते हैं
पर आप मुझे दिखाई नही देते

7th april opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106610213/7_april_opening.wav.html
Lyric :-
मुझको आँगन में दिखा एक अहसास
वो तुही यह आया था या कल रात मुझे धोखा हुआ
मेरे घर में ज़िंदगी की उम्र बस उतनी ही थी
जब तलक था तेरा नाम हर कोने में बिखरा हुआ
मेरे घर में ज़िंदगी की उम्र बस उतनी ही थी
जब तलक था तेरा नाम हर कोने में बिखरा हुआ
अब नज़र इस रूप पर भला ठहरे भी तो कैसे
मेरी नज़र में तू ही तू जहाँ तक देखु फैला हुआ
क्या करू कैसे करू बयां
क्या करू कैसे करू बयां
तू वो अहसास मेरे दिल के अंदर तक उतरा हुआ
बात में दर्द भी होगा
ऐसा तुने उस दिन इशारो मे कहा होगा
बात में दर्द भी होगा
ऐसा तुने उस दिन इशारो मे कहा होगा
जिसने कभी खोली ना उम्र भर आंखें
उसकी आंखों में कुछ ना कुछ तो छुपा होगा
वो मेरा घर हो या कोई सपना तेरा
वो मेरा घर हो या कोई सपना तेरा
तेरी आंखों में कोई रात भर सोते सोते जागता होगा
ये ग़ज़ल हैं की कोई हिचकी
सच शहर में कहीं ना कहीं कोई मेरी बात कर रहा होगा
दिल में कहीं एक टीस सी उभरे
कि दिल में कहीं एक टीस सी उभरे
तो ग़ज़ल होती हैं
ज़ख्म पुराने नयी यादों के साथ गहरे हो उठे तो ग़ज़ल होती हैं
आती जाती तो ये रेल सभी जगह से हैं
पर तेरे गाँव से गुज़रे तो ग़ज़ल होती हैं
तेरा पैगाम भी आजकल रोज़ कहाँ आता हैं
पर जिस दिन किसी से तेरे आने कि खबर हो तो ग़ज़ल होती हैं
ज़िंदगी तेरे इंतज़ार में इंतज़ार करते करते ही बसर होगी
ज़िंदगी तेरे इंतज़ार में इंतज़ार करते करते ही बसर होगी
हम मोहब्बत तो करते हैं
पर कहाँ अपने दिल को खबर होगी

Saturday, April 5, 2008

5th april closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106609071/5_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
तेरी आँखें क्या बोलती हैं
मेरे दिल के कितने राज़ खोलती हैं
कही अनकही सुनी अनसुनी बातों कि ना जाने क्या परते खोलती हैं
तुने उस दिन हमसे आँखें क्या मिलायी
दिल की बात जो कहीं छुपी हुयी थी
मेरी आँखों मे उतर आये
नीची आँखों से तुने इश्क के बहुत से अश्क सजाये
कि नीची आँखों से तुने इश्क के बहुत से अश्क सजाये
उन अश्को पर बैठकर मैंने ख्वाबो के ना जाने कितने माकन बनाये
फिर एक दिन आँखों ने दिल से बेवफाई कि
एक पानी की परत हमने दिल से उधर लेकर अश्को ने बदलो को दी
बस उसी दिन दिल ने तेरी उन काजल लगी आँखों से बात कि
तुने कुछ नहीं कहा पर तेरी झुकी आँखों ने
दिल का हर राज़ बताया
आँखों को ये समझा दे दोस्त कि ये दिल को ऐसे ना देखा करे
इश्क के राज़ ना बोला करे
जब ये देखे तो दिन निकले
जब ना झुके तो शायद दिन ही ना निकले
दिल कि बाते अधूरी रह जायेगी
हाय ये ज़िन्दगी अपनी एक नाव जैसी हैं
क्या पता कब किनारे का साथ छोड़ जायेगी
पता हैं इश्क कि किस्मत क्या होती हैं
वो अंगारे कि तरह चुपके चुपके सुलगती हैं
मुलाक़ात तो होती हैं सिर्फ चार पालो कि
पर वो सुलगती हैं इश्क कि तरह
पानी डालो तो और भड़कती हैं
मैं चाहता हु कभी ऐसी ही एक राख का धुआ मेरी आँखों पर
बहाना हो धुए का और तेरी याद मे मेरी ये आँखें भर जाये

5th April opening poem

tujhe dekha to jana mohabbat kya hain
khuda kya hain
tujhe dekha to jana mohabbat kya hain
khuda kya hain
tumhari aankhon me dekh kar jana
hay ye haya kya hain
mili jab nigahe tumase humane baichaini ka matlab jana
mili jab ye nigahe tumase humane baichaini ka matlab jana
tum zamane bhar se sunder ho zamane bhar se achchi ho
humane is baat ka matlab jana
tumhe achcha kahu jo main bhala isame bura kya hain
ki tumhe achcha kahu jo main bhala isame bura kya hain
suna tha ek khuda hain par humako vo nazar na aye
suna tha humane ek khuda hain par humako vo nazar na aya
tumhe dekha to jana mohabbat kya hain
khuda kya hain
jo tum ruthe ho humase to hum samajhe ki zindagi ruthi
jo tum ruthe ho humase to hum samajhe ki zindagi ruthi
manaya tumako to jana humane manane me maza kya hain
tera ghas par nange panv chalna jab dekha
ki tera ghas par nange panv chalna jab dekha
kyu har bagh hara bhara ho jata hain
humane tab jana
phool khilate to lagta tha pehale ki khuda ki inayat hain
ki phool khilte the to lagta tha ki ye khuda ki inayat hain
magar jab phoolo ko khilkhila ke hansata dekha
to jana maine ki ye kisaki shiqayat hain
barish ko bhi kahan tune apani mohabbat se deewana nahi banaya
ki barish ko bhi kahan tune apani mohabbat se deewana nahi banaya
ye barish bhi aajkal tujhe dekhane ke bahane se bemausam me chali ati hain
ki bhai yun kahe ki barish ka bhi tujhe dekhane ane ke liye bemausam me sau bahane banana
aur tera har baat par bas yunhi ke kahna
aur tera har baat par bas yunhi muskurake kahna
mera deewana kaun deewana
aur bas chupchupkar angadayi leta dekhata tujhe ye tera deewana
hay tera deewana dekha tujhe to jana
mohabbat kya hain khuda kya hain

Thursday, April 3, 2008

4th April closing poem

Closing and opening poem was same today as usual just wd few changes closing poem is here
Link :- http://rapidshare.com/files/104728100/4_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
ek tera sath humako do jahan se pyara hain
ek tera sath humako do jahan se pyara hain
tu ho sath to sab kuch hamara
tu na ho to jaise dur koi kinara hain
hum akele jab bhi hote hain
teri yaado se us pal vasta hamara hota hain
hum akele jab bhi hote hain
teri yaado se us pal vasta hamara hota hain
aaj vo shehnai chup chup si hain
tujhe dekhane ke baad vo kangana na jane kya bolata hain
tu palke jhukake jab chalti hain
tu palke jhukake jab chalti hain
to mera bhi dil dolata hain
mere ghar ke chote se aangan me
mere ghar ke chote se aangan me
na jane kiska saya
aajkal mohabbat ke sher bolata hain
aaj agar tu humase milane ki soche
aaj agar tu humase milane ki soche
to lagta hain jaise savera hain
baki roz ki tarah hamari zindagi me to andhera hi andhera hain
kal tera sagar kinare mere paas baithna
kal tera sagar kinare mere paas baithna
baatein karna idhar udhar ki
par meri aankhon ke siwa kuch na dekhna
laga jaise teri pink dress me tere aanchal me
koi chandani kahin se aa gayi thi
laga jaise teri pink dress me tere aanchal me
koi chandani kahin se aa gayi thi
nazare dekhne ayi thi sagar kinare
par sirf tujhe dekhne ko vahi kahi cha gayi thi
aankhon me teri na jane kaise khubsurat sitare bhar gaye the
ki aankhon me teri na jane kaise khubsurat se sitare bhar gaye the
tujhe mere paas baitha dekh
kambakht ye tare bhi humase jhal gaye the
par hum to na jane kaise do hi mulaqato me
tujhase pyaar kar baithe
hum to na jane kaise bas do hi mulaqato me
tujhase pyaar kar baithe
ki hum to na jane kaise do mulaqato me
tujhase pyaar kar baithe
hum pehale se hi tere intezaar me mare ja rahe the
hum pehale hi tere intezaar me bas mare ja rahe the
ab deewane aashiq isi naam se sare shehar me charche-hisse ho gaye
kya kare ek tera sath humko do jahan se pyara
tu ho mere sath to sab kuch hamara
nahi dur ek kinara

4 April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/104728011/4_April_opening_poem.wav.html
Lyric :-
ek tera sath humako do jahan se pyara hain
ek tera sath humako do jahan se pyara hain
tu ho sath to sab kuch hamara
na ho to jaise dur koi kinara hain
hum akele jab bhi hote hain
teri yaado se us pal hamara vasta hota hain
hum akele jab bhi hote hain
teri yaado se us pal hamara vasta hota hain
kabhi vo shehnai gati rahti hain
kabhi vo tera kangana bolata jata hain
tu jab palke jhuka kar chalti hain
tu jab palke jhuka kar chalti hain
to mera bhi dil dolata hain
mere ghar ke chote se aangan me
mere ghar ke chote se aangan me
na jane mohabbat ka kaisa saya aajkal sher bolata hain
aaj agar tu humase milane ka soche to savera hain
aaj agar tu humase milane ka soche to savera hain
baki roz ki tarah hamari zindagi me to andhera hi andhera hain
kal tera sagar kinare mere paas baithna
kal tera sagar kinare mere paas baithna
baatein karna idhar udhar ki
par meri aankhon ke siwa kuch na dekhna
laga jaise teri pink dress me tere aanchal me
kahin chandani chup ho gayi hain
nazare dekhne ayi thi sagar kinare
par phir tujhe dekhne ke baad chup si ho gayi
aankhon me teri na jane kaise khubsurat sitare bhar gaye the
aankhon me teri na jane kaise khubsurat se sitare bhar gaye the
tujhe mere paas baitha dekh
vo sare tare humase jhal gaye the
par hum to na jane kaise do mulaqato hi me
tujhase pyaar kar baithe
par hum to na jane kaise do mulaqato me
tujhase pyaar kar baithe
janate hain hum jawab tera phir bhi tujhase
na chahte hue bhi
aankhon hi aankhon me iqrar kar baithe
hum pehale se hi tere intezaar me mare ja rahe the
hum pehale se hi tere intezaar me mare ja rahe the
deewana aashiq sirf tera aajkal isi naam se
sare shehar me badnaam ho gaye
ek tera sath humko do jahan se bhi pyara hain
tu ho mere sath to sab kuch hamara
nahi to bas dur jaise koi kinara

3rd April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/104727570/3_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
Jo humase milte hain bhai hum bhi aajkal sirf unhi se milte hain
Jo humase milte hain bhai hum bhi aajkal sirf unhi se milte hain
varna hum to vo shaqs the
jo khwabo me bhi badi mushqil se mila karte the
chandani raato me to sara jahan sota hain
ki chandani raato me to sara jahan sota hain
lekin kisi ki mohabbat me aaj bhi koi hansate hansate rota hain
hay ! ye khuda kisi ko mohabbt me fida na kare
ye khuda kisi ko mohabbt me fida na kare
kare khuda aisa to phir kisi ko kisi se juda na kare
tanhayee me jab hum tujhe yaad karte hain
ki tanhayee me jab hum tujhe yaad karte hain
log kehate hain ki hum apna waqt barbad karte hain
main nahi janta ab ye mere ghar wale kahte hain
hum neend me bhi jana bas tera naam liya karte hain
kadam kadam par hawao se talluk rakhna
mohabbat ke is daur me apani mohabbat par bharosa rakhna
tumhari yaado ki khushbu zarur ayegi
hume tumhari yaado ki khushbu zarur ayegi
bas purane jale hue khato ke tukade
tum zara sambhal ke rakhna
vo purani baatein vo barish ki mulaqate
vo sard raato me tera thithurate mujhase milane ana
mujhe dekhte jana kuch nahi kehna bas
aankon se har baat puchate jana

3rd April opening poem

Link:- http://rapidshare.com/files/104727325/3_april_opening_poem.wav.html
Lyric :-
vo sard raatein vo chand ki roshni me dubi tumhari baatein
vo sard raatein vo chand ki roshni me dubi tumhari baatein
vo duriyo ko samajhti hui tumhari vo garm si saanse
vo pyaar ko jagane wali
vo har pal meri har khwahisho ko badhane wali
tumhari chahat ke rang me bheegi
na jane kyun roz tum mere sapno me ane wali
vo sard raatein vo chand ki roshni me dubi tumhari baatein
tumhari aankhon se jhankata koi
tumhari aankhon se jhankata koi
tumhare zazbaato se gahra koi
sawal mere bahot se jawab tumhare ek bhi nahi
sawal mere bahot se jawab tumhare ek bhi nahi
tumharo hotho me daba
daba daba sa vo ek rumal koi
tumharo hotho me daba
daba daba sa vo rumal mera
vo dur tairati jheel me ek kashti me
vo is kinare par sath tera aur vo us kinare par sirf awaz teri
chand ki baatein vo sard raatein
vo sukhe patto se sanwara tera daman
hay vo sukhe patto se sanwara tera daman
aur sab hawao se tez chalti kambakht ye mere dil ki dhadkan
har dhadkan me ek apanapan
aur har dhadkan bas mujhase ye puche mujhase ye mange
ki mujhase mere halat le lo
ki mujhase mere halat le lo
meri sabhi kaynat le lo
magar bas tere deedar ka ek inna sa waqt
mera dil bhi le lo meri jaan bhi le lo
mera dil bhi le lo meri jaan bhi le lo
tamanna meri mohabbat ke saj sanwar le ane ki
chalo mujhse mera ye khyal bhi le lo
par mujhe apana ek sapna sitaro sa roshan sada rahne wala
ek ek vo pyara sa haseen khwab de do
mujhe tere takiye par girte aansuo ka bas ek inna sa kona de do
mujhe har subah bolate bolate tujhe bas dekhne ka ek mauka de do
vo sard raatein vo chand ki baatein

2nd April closing poem

Link :- http://rapidshare.com/files/104719217/2_april_closing.wav.html
Lyric :-
mujhe aya hi nahi kisi ko rokana
ya kisi ke paas se yun ahista se guzar jana
mujhe aya hi nahi kisi ko rokana
ya kisi ke paas se yun ahista se guzar jana
ye sheeshe ka muqaddar bhi kamal hain
ye sheeshe ka muqaddar bhi kamal hain
bas ek din kisi se takrana
takrakar bikhar jana
taaro ki tarah raat ke seen me utar jana
taaro ki tarah raat ke seen me utar jana
ahat na ho kadmo ki bas tera mere paas se yun guzar jana
hume girkar samhalane ka fan yun hi nahi aya
hume girkar samhalane ka fan yun hi nahi aya
humane to teri julfo se seekha
hay kaise lahrake sanwar jana
bhar jayenge aankhon me aanchal se bandhe badal
ki bhar jayenge aankhon me aanchal se bandhe badal
yaad ayega jab kisi phool par ek aus ki bund ka
janbujh kar girna aur achanak se bikhar jana
har mod par do aankhein humase bas yahi kahti hain
har mod par vo do aankhein humase bas yahi kahti hain
ki jis tarah bhi mumkin ho jaldi hamare ghar ana
humane kaha koi rishta nahi hamara apase
humane kaha koi rishta nahi hamara apase
phir kyu us mitti ka ek diye me badal jana
sochna kisi aur ko bolana kisi aur ke bare me
magar bolate bolate aankhon ke samane tera chale ana
aaj bhi rukh moda hawao ne
aaj bhi ye rukh moda hwao ne
pata diya humane apake dil ka
pata diya humane apake dil ka
vo dil jahan teri yaadon ka hain aajkal ana jana
mujhe aya hi nahi kisi ko rokana
ya kisi ke paas se ahista se guzar jana

2nd April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/104718977/2_april_opening_poem.wav.html
Lyirc :-
Teri aankhein kya bolati hain
mere dil ke kitne raaz kholati hain
kahi ankahi suni ansuni baaton ki parte kholati hain
Teri aankhein kya bolati hain
tune us din kya humase aankhein milayi
tune us din kya humase aankhein milayi
jo baat din me kai saalo se shupi thi
kambakht teri aankhon me nazar ayi
neechi aankhon se tune ishq ke bahut se ashq sazaye
ki neechi aankhon se tune ishq ke bahut se ashq sazaye
un aankhon par un ashqo par baithkar
humane na jane khwabo ke kitne makan banaye
phir ek din aankhon ne din se bewafai ki
phir ek din aankhon ne din se bewafai ki
ek pani ki parat humane apane din se dhar li
ashqo ke badal chant dale
baat koi bhi ho humane dil ke tukade kar
bas tujhe bant dale
bas usi din dil ne teri un kajal lagi aankhon se baat ki
hay vo kajal
bas phir usi din dil ne teri un kajal lagi aankhon se baat ki
tune to kuch kaha nahi bas teri un jhuki aankhon ne hume
tere dil ka raaz bataya
aankhon ne ye samjhaya dost ki kyu dil pareshaan hain
aankhon ne ye jana dost ki kyu dil pareshaan hain
dil ki baatein palko se khol de
ishq hain ishq se to ishq ke har raaz bol de
kya pata kab ye subah ho na ho
aur ye ishq ki baatein hamesha ki tarah adhuri rah jaye
zindagi apani naav jaisi
kya pata ye kab kinare ka sath chhod kisi aur ho jaye
pata hain ki ishq ki kismat kya hoti hain
hume pata hain ki ishq ki kismat kya hoti hain
vo angare ki tarah chupke chupke sulagti hain
mulaqat to hoti hain sirf sirf chaar palo ki
par vo sulagti hain ishq ki tarah
aur pani dalo jitna kambakht utna bhadakti hain
main chahta hu kabhi aisi hi ek rakh ka dhua meri aankhon me bhi aye
main chahta hu kabhi ek aisi hi rakh ka dhua meri aankhon me bhi aye
bahana ho dhue ka aur tujhe yaad karte karte meri aankhein bhar jaye
ye thoda pani yaad ka hi sahi ek din mere jane ke baad teri aankhon me zarur aye
ek tamanna milane ki jo har pal zinda rakhe mujhako
ek tamanna milane ki jo har pal zinda rakhe mujhako
teri aankhein jab jhapake to Ankit ka dil dhadke
haan mere dil ke raaz sirf tujhase bolti hain ye aankhein
na jane kyu dekhati hain kabhi chuo kabhi natkhat si khelti hain ye aankhein

1st April closing poem

1st april closing poem
aaj opening and closing poem same hi thi
Link :- http://rapidshare.com/files/104718607/1_april_closing_poem.wav.html
Lyric :-
aaj main dur hu sabase par sabki yaadon ke sath hu
bhula chuka hu main khud ko par apane saye ke paas hu
jab main tanha tha bhari mehafil me
jab main tanha tha bhari mehafil me
koi kehane na aya main tere sath hu
aaj jab dil dukha hain tumhara
tabhi hua dard ka ahsaas tumako
ab phir se fariyaad karte ho
ab phir se fariyaad karte ho
kyu meri tarah kisi ko yaad karte ho
kya main apake jakhmo ka ilaaz hu
haan hu haan hu main apake har zakhmo ka ilaaz
main sirf apaki awaz hu
haqiqat main na sahi tum mere
bas khwabo me tum mere sath ho
haqiqat main na sahi tum mere
haan khwabo me tum mere sath ho
waqt ka ek daur vo bhi tha jab tere bina jeena mushqil tha
ab bhi hawaye to chalti hain
ki ab bhi hawaye to chalti hain
rukh na jane ye ab kahan ka karti hain
tu hi hain ek humnavapar jab milati hain to chup si rahti hain
apas me baithate hain bhale hi chup chup
hum apas me baithate hain bhale hi chup chup
par chup rahkar bhi na jane ti kitni baatein karti hain
par aisa kyu hota hain hamesha
baatein chahe kitani bhi kar le
baatein phir bhi baki rah jati hain
haan vo ek baat ek baat bas vo ek baat hamesha rah jati hain
pata nahi kyu aisa hota hain
ki agarbatti to tu jalati hain
pata nahi kyu aisa hota hainki agarbatti to tu jalati hain
aur rakh mere pujaghar me rah jati hain
main bhagwan ke mandir kabhi jata nahi
par pata nahi kyu unaki inayat ab har din mujh par badati jati hain
rishto ke mamle me shuru se hi main kachcha tha
par pata nahi kyu ab meri awaz apake sath
dosti ka mohabbat ka zindagi bhar sath rahenge
is rishte ko har pal badhati jati hain
aaj main dur hu sabase dur hu bas apaki yaado ke sath