Sunday, April 20, 2008

18th april opening poem

मेरे सीने पर वो सर रखकर सोता रहा
जाने क्या बात थी मैं जागता रहा वो सोता रहा
घटाओ मे कभी उतरा और कभी पर्वत के ऊपर
वो एक बादल का टुकडा कब तक उड़ता रहा
शायद बोझ एक दिल पर रखा था
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
शायद बोझ एक दिल पर रखा था
जिसे मैं ढोता रहा
कभी पानी कभी आंसू कभी सपने से

(हाय !! )
एक वो ही तो था जिसे मैं सीने से लगाकर घंटो रोता रहा
हवाओ के साथ वो देखते ही देखते बदल गया
(जब मोहब्बत मे कोई बदल जाता हैं तब ऐसा होता हैं )
कि हवाओ के साथ वो देखते ही देखते बदल गया
जो जिंदगी भर मोहब्बत का नाम लेकर यूँही जीता रहा
रोने वालो ने उठा रखा था घर सर पर
कि रोने वालो ने उठा रखा था घर सर पर
मगर उम्र भर जागने का वादा करने वाला
मेरी परेशानी मे कहीं तान कर सोता
रहा
रात की पलको पे तारो ने किसी को जगा दिया
(तारे जगा देते हैं ना ये आती रौशनी )
कि रात कि पलको ने तारो को जगा दिया
ओस बूंद पर जो ओस बनकर फूलों पर बैठा रहा
बस मैं आज भी जागता हूँ जागता हूँ जागता हूँ
कोई कहीं रात चैन से लेता सोता रहा
मेरे सीने पर सर रख कर वो सोता रहा
जाने क्या बात थी मैं जागता रहा और वो सोता रहा

No comments: