Saturday, April 12, 2008

12th April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106896781/12_april_opening_poem.wav.html
Lyric :-
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगाना मुझको
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगाना मुझको
अपनी नज़रों मे बसकर कभी ना गिरना मुझको
तुमको अपनी आंखों मे सपने की तरह रखता हूँ

(जब किसी से बहुत प्यार होता हैं और जब वो शख्स सामने होता हैं ये आंखें झपकती हैं तो भी बुरा लगता हैं )
कि तुमको अपनी आंखों मे सपने की तरह रखता हूँ
दिल मे धड़कन की तरह तुम भी बसाना मुझको
बात करने मे जो मुश्किल हो
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
कि बात करने मे जो मुश्किल हो तुम्हे महफिल मे
मैं समझ जाऊंगा नज़रों से बताना मुझको
वादा उतना ही करो जितना निभा सकते हो
वादा उतना ही करो जितना निभा सकते हो
ख्वाब पूरा जो ना हो वो ना दिखाना मुझको
अपने रिश्ते की नज़ाकात का इक अहसास रख लेना
(हर रिश्ते मे बहुत अहसास होते हैं तब तक जब तक वो रहता हैं )
अपने रिश्ते की नज़ाकात का इक अहसास रख लेना
मैं तो दीवाना हूँ और दीवाना ना बना मुझको
कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
की मैं कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
ग़ज़ल , कविता ,गीत सब तू ही मेरा
कोई और ग़ज़ल ना सुना मुझको
आवाज़ देती हैं ज़िंदगी मेरी हर मोड़ से
(बड़ी आवाजे देती हैं ज़िंदगी कभी अच्छी कभी बुरी )
कि आवाज़ देती हैं ज़िंदगी मेरी हर मोड़ से
तू साथ हैं तो चल बस इशारों से ना समझा मुझको
मैं प्यार करूं तो रुसवाई हो जाये
मैं प्यार करूं तो रुसवाई हो जाये
तू कम से कम प्यार ना सीखा मुझको
(hmmm)
कच्ची दीवार हूँ ठोकर ना लगा मुझको
अपनी नज़रों मे बसाके ना गिरा मुझको

1 comment:

Unknown said...

Bhai ek dam dhin chaak
bole too eekdam ghach......


ALL THE BEST