Sunday, April 20, 2008

16th april closing poem

आंखों से जागते हैं सपने

आंखों से जागते हैं सपने

ये आंखें सदा को बंद होती क्यों नही

हम जी रहे हैं बिना सहारे

तलाश मेरी आंखों की कभी ख़त्म होती क्यों नही

(जब हम किसी को तलाश करते हैं तो कभी तो वो मिल जाता हैं मगर कभी ना जाने वो कहाँ चला जाता हैं )

कहते हैं इस प्यार से ना देखा करो

(हाय !! बडा कहते हैं वो )

कहते हैं इस प्यार से ना देखा करो

ना प्यार से प्यार को सोचा करो

हमसे बर्दाश्त होती नही उनकी बेवफाई

बस एक बार हमे भी उतने ही प्यार से देखा करो

जितने प्यार से करती हो तुम बेवफाई

आंखों मे तेरा काजल और होठो पर वो लाली

कि आंखों मे तेरा काजल और होठो पे वो लाली

हाथो मे बजते तेरे वो कंगन

और कानो कि तेरी वो बाली

(हाय !!)

सजकर यूं निकालो जब घर से

देखने वालो का जीवन ठहर जाये

रात मे जैसे बिजली एक बार चमके

रात मे जैसे बिजली एक बार चमके

और आकाश मे कहीं खो जाये

तु आये मेरे सामने करार आये

बाकि दिल को मेरे बार बार बस यही ख्याल आये

कि आंखों से झांकते हैं सपने

ये आँखें सदा को बंद होती क्यों नही

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