Saturday, April 26, 2008

23rd april closing poem

अभी इस तरफ ना निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलके संवार लू
अभी इस तरफ ना निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलके संवार लू
तेरा हर लफ्ज़ आईने सा
तुझे आईने मे उतार लू
मैं तमाम दिन का थका हुआ
तु तमाम शब का जगा हुआ
(थकान के बाद कभी कोई ऐसी बात करता हैं )
मैं तमाम दिन का थका हुआ
तु तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा तु इसी मोड़ पर
कि तेरे साथ आज एक शाम गुजार लू
अगर आसमान की नुमाइश हो
अगर आसमान की नुमाइश हो
तो तुझे रुकना होगा

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