Monday, April 14, 2008

15th April opening poem

कल कई दिनों बाद तेरा मुझसे मिलने आना
सबको छोड़कर मुझे देखने को वो गली मे चक्कर लगाना
कहीं ज़माना ना देख ले तुझे मेरे साथ
बस हर पल अपने दिल को यही एक बात समझाना
कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
कहते हैं इश्क नाम तो नही हैं मिलने का दीदार का
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
ऐसा कहने वालो को मन ही मन तेरा रोज़ कोसना
बस आऊंगा मैं कब आऊंगा मैं
घड़ी देखते देखते हर पल तेरा बस यही सोचना
जो याद आ जाए मेरी तो समझना दूर नही हूँ मैं
(कहते हैं ना कि इन यादो का कोई मौसम नही होता वक्त बेवक्त बस चली आती हैं )
जो याद आ जाए मेरी तो समझना दूर नही हूँ मैं
अपने सीने मे धड़कता मुझको पाओगे तुम
वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे तेरा वजूद
ये वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे तेरा वजूद
उस पल मेरी चाहत कि नमी को महसूस करना
उस पल बस मेरी चाहत कि नमी को महसूस करना
सब thapedo से अब मुझको लड़ता पाओगी तुम
हर पल बस बहुत याद आओगी तुम
हाँ पता हैं कि तुम ये सब कर लोगे
(मन की बात सुनियेगा महबूब के मन की बात )
हाँ पता हैं कि तुम ये सब कर लोगे
पर वक्त पर ना आओगे तुम
(आदत ही वक्त से लेट पहुँचने की हैं )
कि हाँ पता हैं ये सब कर लोगे
पर वक्त पर ना आओगे तुम

हमेशा की तरह मैं वक्त से थोडा लेट पहुंचा
तुझे देखा होश से करीब से देखा तो हाय
हम कल रात एक परी से मिल गए
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें
इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई
खूबसूरत अदाए कातिल आंखें
इंतज़ार और सच का मतलब जानती हुई

मुझको सिर्फ मुझको अपना सब कुछ मानती हुई
कल कई दिनो बाद तेरा मुझसे मिलने आना
सबको छोड़कर मुझे देखने को वो गली मे तेरा चक्कर लगाना

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