Friday, April 11, 2008

7th april opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106610213/7_april_opening.wav.html
Lyric :-
मुझको आँगन में दिखा एक अहसास
वो तुही यह आया था या कल रात मुझे धोखा हुआ
मेरे घर में ज़िंदगी की उम्र बस उतनी ही थी
जब तलक था तेरा नाम हर कोने में बिखरा हुआ
मेरे घर में ज़िंदगी की उम्र बस उतनी ही थी
जब तलक था तेरा नाम हर कोने में बिखरा हुआ
अब नज़र इस रूप पर भला ठहरे भी तो कैसे
मेरी नज़र में तू ही तू जहाँ तक देखु फैला हुआ
क्या करू कैसे करू बयां
क्या करू कैसे करू बयां
तू वो अहसास मेरे दिल के अंदर तक उतरा हुआ
बात में दर्द भी होगा
ऐसा तुने उस दिन इशारो मे कहा होगा
बात में दर्द भी होगा
ऐसा तुने उस दिन इशारो मे कहा होगा
जिसने कभी खोली ना उम्र भर आंखें
उसकी आंखों में कुछ ना कुछ तो छुपा होगा
वो मेरा घर हो या कोई सपना तेरा
वो मेरा घर हो या कोई सपना तेरा
तेरी आंखों में कोई रात भर सोते सोते जागता होगा
ये ग़ज़ल हैं की कोई हिचकी
सच शहर में कहीं ना कहीं कोई मेरी बात कर रहा होगा
दिल में कहीं एक टीस सी उभरे
कि दिल में कहीं एक टीस सी उभरे
तो ग़ज़ल होती हैं
ज़ख्म पुराने नयी यादों के साथ गहरे हो उठे तो ग़ज़ल होती हैं
आती जाती तो ये रेल सभी जगह से हैं
पर तेरे गाँव से गुज़रे तो ग़ज़ल होती हैं
तेरा पैगाम भी आजकल रोज़ कहाँ आता हैं
पर जिस दिन किसी से तेरे आने कि खबर हो तो ग़ज़ल होती हैं
ज़िंदगी तेरे इंतज़ार में इंतज़ार करते करते ही बसर होगी
ज़िंदगी तेरे इंतज़ार में इंतज़ार करते करते ही बसर होगी
हम मोहब्बत तो करते हैं
पर कहाँ अपने दिल को खबर होगी

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