Monday, April 21, 2008

19th april closing poem

ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
ना पलके झपकाऊ ना कुछ और सोचता जाऊ
तु जब सामने बैठे तो बस मैं तुझे देखता जाऊ
तेरी चुन्नी

(आय हाय !! )
तेरी चुन्नी मे दिल को तो चैन आ ही जाता हैं
मैं तुझे देखने के बाद ये चैन भला कहाँ से लाऊ
तेरा घंटो तक लेटे लेटे किताब को पढ़ते रहना
तेरा घंटो तक लेटे लेटे किताब को पढ़ते रहना
मेरा बैठे बैठे घंटो तक बस तेरी किताब से जलते रहना
रात मे तो दिए मैं लगता हूँ पर
तेरी रौशनी के आगे उन दियो मे वो चमक ना आये
दुआ करू खुदा से कि वो तुझे उम्म्हू वो मुझे
दुआ करू खुदा से कि वो मुझे तेरी कलम बना दे
कुछ देर के लिए ही सही तेरे हाथ मे मुझे थमा दे
लिखती जाये तु मेरा हाथ थामकर अपने exam का हर उत्तर
कितनी होती हैं दिशा दुनिया मे
बस इसी का ना दे पाए तु कोई उत्तर
दिशा चार कहते हैं लोग
फिर मोहब्बत की क्यों कोई दिशा क्यों नही होती
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हर दिशा मे बस तु ही तु क्यों हैं होती
ना पलके झपकाऊ बस तुझे देखता जाऊ


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