Monday, April 14, 2008

14th April closing poem

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Lyric :-
तेरे प्यार ने वो राग छेड़ा दिल के सुने तारो पर
तेरे प्यार ने वो राग छेड़ा दिल के सुने तारो पर
ज़िंदगी लगे हैं खूबसूरत फिर क्यों ना गुनगुनाऊ मैं
ज़िंदगी लगे हैं खूबसूरत फिर क्यों ना गुनगुनाऊ मैं
मस्त भरी निगाहे तेरी
मस्त भरी निगाहे तेरी
जाने क्या क्या इशारे करती हैं
समझु मैं तेरे हर इशारे को फिर क्यों ना मुस्कुराऊ मैं

(महबूब जब इशारे करता हैं तो ... हाय !! )
फिर क्यों ना मुस्कुराऊ मैं
देखी हैं वो दीवानगी तेरे इश्क के हर अंदाज़ मैं
हमने देखी हैं वो दीवानगी तेरे इश्क के हर अंदाज़ मैं
आज मेरे भी नखरे उठाने वाला हैं कोई
फिर क्यों ना इतराऊ मैं
ये शोखियाँ तेरी उस पर तेरा वो क़यामत की तरह देखना
ये शोखियाँ तेरी उस पर तेरा मुझे यूं क़यामत की तरह देखना
बेबाक निगाहें
(हाय !!!! )
तेरी वो बेबाक निगाहें
झुक कर उठती हैं बार बार
फिर क्यों ना शर्माऊ मैं
साथी मेरा हमदम हैं
साथी मेरा हमदम हैं हमराज़ हैं
आज हैं कोई मेरा भी हमसफ़र
सच तुम सा ना कोई इस दुनिया मैं
फिर क्यों फिर क्यों ना खुश हो जाऊ मैं
कई
महीनों पहले ये शहर बडा अनजान था मेरे लिए
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर ये लाइन सिर्फ आपके लिए )
कई महीनों पहले ये शहर बडा अनजान था मेरे लिए
पर हर दिन हर पल इस शहर से जब इतना प्यार पाऊ
तो बताइए क्यों ना खुश रहूँ मैं
क्यों ना अपने इस प्यार पर
इस दोस्ती पर इस रिश्ते पर इतना इतराऊ मैं

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