Saturday, April 12, 2008

10 th April opening poem

Link :- http://rapidshare.com/files/106851210/10_april_opening_poem.wav.html
Lyric :-
अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो फिर चले जाना
अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो फिर चले जाना
अभी सूरज का ढलना बाकि हैं
इन्हें रौशनी का मतलब बता दो तुम फिर चले जाना
जो मेरा और तुम्हारा ये वक्त हंसने रोने मे गुज़रा हैं
जो मेरा और तुम्हारा ये वक्त जो हंसने रोने मे गुज़रा हैं
उसे पूरी तरह भुला दो फिर चले जाना
ये सारे पेड़ पौधे तुम्हारे लिए एक रुत से जागे हुए
ये सारे पेड़ पौधे तुम्हारे लिए एक रुत से जागे हुए
तुम आके एक बार इनको प्यार से सुला दो फिर चले जाना
किसी को चाहना और किसी से चाहने का
किसी को चाहना और किसी से चाहने का
जो होता हैं अहसास
हमको भी थोड़ा सा सीखा दो फिर चले जाना
वो जो इंतज़ार हैं जुदा हैं जो आपके इंतज़ार से
(कि भाई जब महबूब का इंतज़ार करते हैं तो वक्त रुक सा जाता हैं )
वो जो इंतज़ार हैं जुदा हैं जो आपके इंतज़ार से
उसे इंतज़ार का मतलब सीखा दो फिर चले जाना
बस एक हँसी से अपने अश्कों को छुपाने का
बस एक हँसी से अपने अश्कों को छुपाने का
जो फन आता हैं तुमको वो हमे भी सिखा दो तुम फिर चले जाना
जो कहते कहते रुक गए
(अक्सर ऐसा होता हैं की जब हम महबूब से मिलते हैं तो बातें हमेशा पूरी नही हो पाती )
कि जो कहते कहते रुक गए
उन सारी बातो की शमा को एक बार अपनी साँसों से बुझा दो तुम फिर चले जाना
ना जाने क्यों हैं
ना जाने क्यों हैं लेकिन देखने की तुमको आदत हैं
कि ना जाने क्यों हैं लेकिन देखने की तुमको आदत हैं
मेरी इस बेवजह की आदत को छुडा दो तुम फिर चले जाना
मेरी हर सुबह का मतलब सिर्फ तुम हो
मेरी हर सुबह का मतलब सिर्फ तुम हो
मुझे अपना बना लो फिर चले जाना
हाँ अभी कुछ साँसे बाकि हैं इन्हें गुज़र जाने दो तुम फिर चले जाना

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