Sunday, April 20, 2008

17th april opening and closing poem

जो तु मुझे देखना छोड़ दे मैं तेरा ये शहर छोड़ दु
जो तु मुझे सोचना छोड़ दे मैं तेरा साथ छोड़ दु
जो तु छोड़ दे बात करना आईने से मैं आईने सरे शहर के तोड़ दु
जो तु छोड़ दे अपनी जुल्फों से खेलना मैं शहर के सारे फूल देखना छोड़ दु
जो तु छोड़ दे मुझे बार बार फोन करना
जो तु छोड़ दे मुझे बार बार फोन करना
रोज़ मुझसे गुस्सा करना
तु जो कल से बात नही करने का वादा लेना छोड़ दे
जो तु छोड़ दे मेरी poems को रेकॉर्ड करना
मेरी आवाज़ को अपनी रिंग टोन बनाना
जो तु छोड़ दे मेरी poems को रेकॉर्ड करना
मेरी आवाज़ को अपनी रिंग टोन बनाना

जो छोड़ दे शहर भर के लोगो को सिर्फ और सिर्फ मेरे किस्से सुनाना
साथ मेरे हंसते रहना बाकी अकेले बैठ के तु रोना छोड़ दे
जो छोड़ दे मुझसे मिलने के बहाने बनाना
जो छोड़ दे मुझसे मिलने के बहाने बनाना
छोड़ दे अगर तु अपने हाथ से खाना खिलाना
मेरी हर बात को अपने दिल से लगाना छोड़ दे
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
जो तु मेरी हर बात को दिल से लगाना छोड़ दे
फिर कौन जीना चाहता हैं
कौन तुझसे दूर होना चाहता हैं
तु ना छोड़ मेरा शहर किसी भी बहाने से
मैं रहूंगा तेरे इसी शहर मे
बस तु ना दूर जाना एक बात के फसाने से
प्यार करना करते रहना
(बड़ी कमाल की चीज़ होती हैं ये मोहब्बत )
कि प्यार करना करते रहना
बस मेरा ख्याल ना छोड़ देना
कि प्यार करना करते रहना
बस मेरा ख्याल ना छोड़ देना

तुम बात करना करते रहना
पर मुझे ना छेड़ देना किसी बहाने से
जो तु मुझे देखना छोड़ दे

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