Wednesday, April 30, 2008

24 th april opening poem

यूं तो मैं खुश होता हूँ
पर जब जिक्र होता हैं
तेरा मेरे शहर से दूर जाने का
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
हैं जी
खुश होता हूँ मैं
जब कोई तेरी बात करता हैं
पर जब कोई तेरी तस्वीर मांगता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
जब कोई तुझे देखकर कहता हैं
बहुत खूबसूरत हो तुम
तो मैं खुश होता हूँ
पर जब कोई तेरी मुझसे ज्यादा तारीफ करता हैं
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
खुश होता हूँ जब मेरे cell पर तेरा फ़ोन आता हैं
पर मुझसे बात करते करते तेरा फ़ोन अपने आप कट जाए
तो मैं चुप होता हूँ
(ऐसा होता हैं ना कभी कभी )
मेरी खुशी जब तु नया सूट बाज़ार से खरीद कर लाती हैं
पर मुझसे पहले तुझे उस सूट मे कोई और देखे
तो मैं चुप होता हूँ
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
(फतह सागर की पाल का जिक्र हो रहा हैं )
ठंडी हवाए रोज़ पाल से होकर आये
तो मैं खुश होता हूँ
पर यही हवाए जब तुझे छूने की कोशिश करे
तो मैं चुप होता हूँ
तुझे जब मैं अपने जोड़े पैसो से teddy bear गिफ्ट करू
तो खुश होता हूँ
पर कमबख्त वो जब हर रात तेरी बाहों मे रहे
तो मैं चुप होता हूँ
खुश होता हूँ मैं जब तु खुश होती हैं
बस उसी एक पल मैं कहाँ चुप होता हूँ


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