शायद मेरे आंसू से
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर)
शायद मेरे आंसू से उसका कोई गहरा रिश्ता हैं
तपते हुए रेगिस्तान मे वो जो फूल अकेला हैं
सन्नाटे कि शाखों पर कुछ ज़ख्मी परिंदे हैं
(ये ज़ख्मी परिंदे बहोत खतरनाक होते हैं जब तक ये कुछ ना करे तब तक जब तक ये शांत रहे तब तक सब अच्छा लगता हैं और जहाँ इन्होने कुछ करना शुरू कर दीया वह ज़ख्म सम्हालने मुश्किल हो जाते हैं )
कि सन्नाटे कि शाखों पर कुछ ज़ख्मी परिंदे हैं
खामोशी बजाते बजाते
बस उन पर आवाज़ का पहरा हैं
कब जाने हवा उसको बिखरा दे हवाओ मे
खामोश दरख्तों पर जो सहमा सहमा सा हैं
अब रोये कहाँ सावन अब तडपे कहाँ बादल
अब रोये कहाँ सावन अब तडपे कहाँ बादल
ना आँगन हैं ना बगीचा हैं
मेरा तो बस एक छोटा सा कमरा हैं
कोई हल ना कोई जवाब हैं
ये सवाल कैसा गहरा हैं
जिसे भूल जाने का हुक्म हैं उसे भूल जाना मुहाल हैं
(मुहाल यानी मुश्किल )
जिसे भूल जाने का हुक्म हैं उसे भूल जाना मुहाल हैं
कभी वो भी आसमां की बुलंदियों से उतर कर खाक पर आये
यही मुझे ना चाहने वालो के दिल का हाल हैं
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