Friday, September 12, 2008

12th september opening poem

जब कोई आता नही तब वो आता हैं
और हौले से मुझे किसी ख्वाब की दुनिया मे ले जाता हैं
भूल जाते हैं दर्द सारे , गिले शिकवे भी
(गिले शिकवे होते रहते हैं टाइम नही हैं फ़ोन नही करते )
कुछ खुशी कुछ लम्हे वो प्यार के ऐसे दे जाता हैं
वो कौन जिससे हैं चंद मुलाकातों का रिश्ता
और इस चंद मुलाकातों मे वो अपना दिल सम्हालकर
मेरा दिल ले जाता हैं
माना वक्त की भागदौड़ मे मैं उसे जानता नही
पर ये बताओ मोहब्बत मे मोहब्बत करने का वक्त किसे मिल पाया हैं
और वो मेरे ख्यालो मे मुझे भी इंतज़ार करवाता हैं
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
(अबके पूछने वाला हूँ )
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
प्यार मे क्या कोई दीवाना कहलाता हैं
आँखें उसकी बहुत बातें करती हैं
वो होठो से चुप रहने का दिखावा करती हैं
हाँ लगता हैं इस दीवाने को वो थोड़ा सा पसंद करती हैं
पर जुबां से कुछ कहती नही आंखों से सब कुछ कहती हैं

1 comment:

Anonymous said...

........ as usual brilliant poem .... but this was one of my favourite frm d previous week ......... every week i will hav one bst poem to rate for u .... its very difficult bt still i will do !!!!!! i dn know bt 11th opening poem is nt visible ven i open it !!!! plz do check !!!! thnx
gooog n very nice poem ..

regards