Sunday, September 14, 2008

15th september - opening poem

एक दिन अचानक ही फ़ोन आ गया उसका
लहजे की मालामात से हो रहा था सब ज़ाहिर
रो रही थी वो शिद्दत से
लडखडाते लफ्जों से कर रही थी बातें
तुम कहाँ थे इतने दिन
रोज़ फ़ोन करती थी
बात जो तुमसे करनी थी
जो बहुत ज़रूरी था
वो रह जाता हैं
प्यार मे हमेशा ऐसा ही हो जाता हैं
प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन तडपती थी
(गौर फरमाइयेगा )
कि प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन उलझती थी
तु बात करता नही मैं फ़ोन पर नम्बरों से उलझथी थी
(ये smile कैसी भाई )
चैन ही नही मिलता जागती हूँ सुबह भर मे
नींद ही नही आती
और ये बात किसी को बतायी नही जाती
जो नही कहा अब तक तुमसे अब ये कहती हूँ
सच मे तुमसे बहुत प्यार करती हूँ
सुनते ही इतना फ़ोन उसका कट गया
मैंने फ़िर से फ़ोन किया
पता चला हॉस्पिटल के किसी बूथ का नम्बर था
और अब उसकी साँसे थम चुकी थी

1 comment:

Unknown said...

realy touching....
...
thanx..