Tuesday, October 28, 2008

28th october closing poem

आज जब रात होगी
मेरी एक रौशनी से मुलाक़ात होगी
दिए तो हम सब जलाएंगे
मगर दियो के बीच आज शायद ये बात होगी
वो कैसे हमसे ज्यादा रौशनी देती हैं
हम पुरे साल इस दिन का इंतज़ार करते हैं
और वो खुबसूरत पुरे साल न जाने किसके दिल में रहती हैं
जानते नही वो दिए बेचारे
वो खुबसूरत मेरे दिल में रहती हैं
जहा बहुत अँधेरा रहता हैं
बहुत सारे लोगो की जगह तो नही
बस इस छोटे से कमरे में
किसी फुलछड़ी का एक बल्ब जला रहता हैं
पर उसकी मोहब्बत के बाद
इस अँधेरी कोठडी में बड़ी रौशनी रहती हैं
और वो खुबसूरत हर दिए से बस इतना कहती हैं
प्यार करो इतना करो कि कभी कम न हो
रौशनी रहे न रहे सदा बस
मुझे सुनाने वाले इस उदयपुर की आँख कभी नम न हो
वो हर दिए से कहती हैं
कि क्यों चंद पैसो के लालच में हम अपना ईमान बेचते हैं
क्यों मोहब्बत के नाम पर अपनी रोटिया सकते हैं
और किसी का हाथ थामकर क्यों दूर जाना चाहते हैं
और क्यों अंधेरे का बहाना बनाकर
रौशनी के मोड़ से मुड जाते हैं

28th october opening poem ------------- HAPPY DEEPAWALI

वो चांदनी का बदन खुशबुओ का साया हैं
बहुत अजीज हैं वो मगर हो गया वो पराया
उतर भी आओ कभी आसमा के रास्ते से
तुम्हे खुदा ने हमारे लिए बनाया
महक रही हैं ज़मी चांदनी के फूलो से
खुदा किसी की मोहब्बत पर मुस्कुराया
पर अब किसी की मोहब्बत का ऐतबार नही
ज़माने ने हमे बहुत सताया
तमाम उम्र मेरा दम भी उसी धुप में हारा
वो इक चिराग था जिसे मैंने बुझाया
बहुत मिन्नतों के बाद मिलने आया तेरा साया
मैंने लाख पूछा पर तेरा पता ना बताया

27th october closing poem

वो चेहरे पे बनावट का गुस्सा
वो उसकी आंखों मे छलकता प्यार भी
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी कभी इनकार भी
मुझे मिला वक्त तो तेरी जुल्फे सुलझा दूंगा

अभी तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ
एक दिन वक्त को उलझा दूंगा
दिल ये अब कुछ मानता नही उदयपुर
तेरे सिवा अब ये कुछ जानता नही
पहले मेरे पास होती थी हजारो बातें करने को
आजकल तेरे सिवा कोई बात हो
वो दिन कैलंडर मे आता नही
हर पल तुझे याद करना तुझे सोचना
तुझे बेंतेहा प्यार करना और
मेरे उदयपुर तेरे लिए वो सब कुछ करना
जो किसे ने कभी किया ना हो किसी ने कभी सोचा ना हो

27th october opening poem

बहारो में पले हैं कभी मोहब्बत का मौसम नही देखा
हम जुल्फों से खेले हैं कभी किसी बात का गम नही देखा
बिता कर रात सर्दी में मोहब्बत करने वालो को
कभी चाँद की गोदी में सर रखते नही देखा
चाँद ख़ुद तेरा दीवाना सा हो गया
शायद इसीलिए कई रातो से हमने चाँद न देखा
तारे सारे ख़ुद को तेरी बिंदी समझते हैं
इसीलिए हमने कभी तुझे बिंदी लगाते देखा नही
और शहर हो गया सारा तेरा दीवाना सा
हमने दीवानों को कभी सोते न देखा
देखा तो बस तुझे देखा
और बस तुझे सोचा

26th october - SUNDAYYYYYYYYY

KIDS DHAMAAL and MASTIIIIIIIII

25th october closing poem

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25th october opening poem

तेरे दीदार की क्या ख़ाक तमन्ना होगी
जिन्दगी भर तेरी तस्वीर से बातें की

हमने तन्हाई में तन्हाई से बातें की
अपनी सोयी तकदीर से बातें की
(बहुत बातें करते हैं हम रेडियो वाले )
खामोश हम भी रहते हैं कभी कभी
माना नही हम रांझा मगर हमने
हीर की हर बात से बातें की
रंग का रंग ज़माने ने बहुत देखा हैं
हमने तेरी हर बात से बातें की
पता नही किस मुहूर्त में दिन निकलता हैं
पता नही किस मोहरत में शाम होती हैं
जब तेरी याद आए तो न जाने
किस किस से बात होती हैं
हमने उस दिन उस बीती शाम से बातें की
दिल टुटा हो जिसका वो देर में सम्हलता हैं
हमने टूटे दिल वालो से सिर्फ़ तेरी ही बातें की

24th october closing poem

तुम सब पर लिखते हो मुझ पर कब कुछ लिखोगे
मैंने कहा उस दिन लिखूंगा
जिस दिन शब्द ख़ुद कतार बनकर मेरे पास आयेंगे
खुबसूरत तू सबसे ज्यादा ये
खुबसूरत शब्द को बतलायेंगे
बादल चाँद सितारे ये हो गए सारे पुराने
और गीतों में कहाँ ताकत जो गाये तुझपे तराने
इसीलिए मैं लिखता नही कोई कविता
न ग़ज़ल गुन्गुनानी आती हैं
पता नही उस बहते पानी में किसकी तस्वीर अचानक ही बन जाती हैं
और क्यों वो उड़ते पंछी तेरी बात सुनते सुनते रुक जाते हैं
लौटना होता हैं वक्त पे घर
और ख़ुद वक्त से पहले ठहर जाते हैं
वो कहती मुझ पर कुछ लिखते क्यों नही
कलम बेचारी चलती ही नही
ये कमबख्त आगे बढती ही नही
वजह सिर्फ़ इतनी
इस कलम की नज़र भी तुझसे हटती नही
उंगलिया ये कलम उठाये कैसे
इनकी कपकपाती कशिश
तेरी आंखों की कशिश के आगे बढती ही नही

24th october opening poem

कभी मुझको मनाओ तुम मैं तुम से
तो मैं तुमसे अगर मैं रूठ
कभी पलकों पर आंसुओ को रुकते देखा
कभी आंसुओ से पलकों को सजते देखा
पर कभी होता हैं ऐसा जैसा कभी

कभी होता वैसा ही जैसा होता ही
मैं सोचता नही अब चाँद
चाँद दूर रहता हैं कुछ कहता नही
नही मैं सोचता परियो की बात
वो चाँद पलोकी मुलाकात
तू सोच में क्यों चली आती हैं
इसीलिए रूठ जात हु मैं किसी से मैं

23rd october closing poem

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23rd october opening poem

थक कर शाम जहा हो जाए वही सवेरा होता हैं
दीवानों का कहाँ एक जगह रैन बसेरा होता हैं
मन फैले तो चाँद सितारे अपनी बाहों में भर ले
यदि सिमटे तो घर आँगन में भी तेरा मेरा होता हैं
गीली आंखों के पीछे का दुःख देखो तो पता चले
कोहरा क्यों तालाबो पर इतना घना होता हैं
सूरज डूब गया या निकल गया मुझे क्या करना
मेरे शहर में तेरे बिना अँधेरा ही होता हैं
लाख सम्हालो दिल के पागलखाने को
पर दिल जिसका होता हो उसी का होता हैं
दिल और रूह का रिश्ता कहे क्या होता हैं
माँ से लिपट कर कोई बच्चा रोते रोते सोता हैं

22nd october closing poem

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22nd october opening poem

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Monday, October 27, 2008

21st october closing poem

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21 st october opening poem

देखने में भोला भला था वो फरिश्तो की तरह
ये कहाँ सोचा था कि मुझको ही वो चुरा ले जायेगा
मुझको खुशफहमी में रखने का उसे शौक़ हैं
मुझको क्या पता था वो कमबख्त ख़त लिखेगा नही
बस मेरा दिल रखने को मुझसे पता ले जायेगा
हम दीवानों को कहाँ कुछ चाहिए पर देखना
मुझे वो अपना दिल देगा नही
और मुझे बिन बताये वो मेरा दिल ले जायेगा
दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
(हमेशा आपसे भी दोस्त पूछते होंगे न अरे पता नही कब प्यार करने वाला कोई होगा , कब कोई मिलेगा क्या होगा )
कि दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
मेरी मंजिल तक मुझे ख़ुद रास्ता ले जायेगा
वो तो शायद जी लेगा मेरे बिना
पर मुझसे अब न अकेले जिया जायेगा

2oth october closing poem

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20th october opening poem

अब किसे चाहे किसे ढूंढा करे
वो भी आख़िर मिल ही गया
बताओ बताओ अब हम क्या करे
हलकी हलकी बारिश होती रही
सोचा हमने भी की अब फूलो की तरह भीगा करे
आँखें मुंड कर इस गुनगुनी सी ठण्ड में बैठे रहे
और देर तक तुझे सोचा करे
दिल मोहब्बत ये दुनिया साड़ी
दिल के हर झरोखे से बस तुझे

19th october - SUNDAYYYYYYYYYYYYY

SUNDAYYYYYYYYYYYYYYYYY
kids dhamaal show

18th october closing poem

मैं इक बार रो लू लिपट के तुझसे
कि रोज़ मैं रोना नही चाहता
तू मुझ से दूर रहकर भी मेरी रूह में रहे
मैं सच मच तुझे खोना नही चाहता
तुझसे जुदा होकर मैं जिंदा रहू कभी
अपने ख्वाबो में भी इक पल मैं ऐसी नींद सोना नही चाहता
मेरी आंखों की नमी कभी तेरी पलकों को छुए
मैं गुनेहगार कभी ऐसा होना नही चाहता
तू चांदनी हैं मेरी काली रातो की
(क्या हैं तू)
तू चांदनी हैं मेरी काली रातो की
तुझे तो मैं धुप मैं भी खोना नही चाहता
मौसम चाहे कोई सा भी रहे
मौसम चाहे कोई सा दिन कोई सा भी हो
मैं तेरी yaado से अब दूर होना नही चाहता

18 th october opening poem

तेरी तस्वीर मेरी आंखों में बसी क्यों हैं
जिधर देखू उधर बस तू ही तू क्यों हैं
तेरी यादो से जुड़ी हैं मेरी तकदीर लेकिन
तुझे न पाकर मेरी तकदीर भला रूठी क्यों हैं
मुझको हैं ख़बर कि आसां नही तुझे हासिल करना
फ़िर भी कमबख्त ये इंतज़ार ये बेरुखी क्यों हैं
बरसो गुज़र गए मेरे इंतज़ार में लेकिन
मेरी इन बाहों को आज भी तेरा इंतज़ार क्यों हैं
तेरी चाहत की कसम खून के आंसू रोया हूँ
अब कुछ बाकी नही फ़िर जान जान करता हूँ
जान जान कर के क्यों न मैं क्यों कई रातो से हुआ
ख़त्म हुआ मेरा ये अफसाना
एक बात बता दू लेकिन
अंजाम न मुझे मालूम
फ़िर ये मोहब्बत क्यों हैं

17th october closing poem

(आज की ये पोएम ये creation special इसलिए हैं क्यूंकि ये हमने तब लिखी जब हम एक दिन रेलगाडी का सफर कर रहे थे वो कटे हैं न की ये रेल यूँ तो कई शेहरो से गुज़रती हैं मगर जब ये तेरे गाँव से गुज़रे तो ग़ज़ल होती हैं ट्रेन के अंदर आप जानते हैं न की ट्रेन हिलती रहती हैं पेन पकड़ना भी मुश्किल होता हैं न कोई टेबल होती हैं बस बहुत सारे ख्याल होते हैं वो ख्याल क्या थे जब कोई आपके आस पास होता हैं आपकी नज़र के सामने होता हैं )
जिसको दुनिया की नज़र से बचा के रखा
जिसको एक उम्र अपने सीने से लगा के रखा
बात कभी हो ना पायी उससे
चलिए रेलगाडी के एक सफर में ही सही उसको अपनी नज़र के सामने रखा
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17th october opening poem

मेरा ये फ़ैसला हैं कि

16th october closing poem

प्यास दरिया की निगाहों से बचा रखी हैं
एक बादल से हमने बड़ी आस लगा रखी हैं
खामोशी खामोश हैं
सन्नाटे चुपचाप हैं
तेरे जाने से ये आलम सारे अपने आप हैं
यूँ तो लगती हैं हर तरफ़ नमी नमी सी
तेरे जाने के बाद कोई कमी कमी सी
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
(कुछ सवाल होते हैं जिनके जवाब नही होते )
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
इक बदल का टुकडा
ये इक बदल का टुकडा
(आप जानते हैं न बादल के टुकड़े जब इकठ्ठे हो जाते हैं साथ साथ हो जाते हैं तो कैसा लगता हैं )
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे
ढूंढा देखा तो जाना
ये तमाम शहर हैं निगाहों से प्यासा
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे

16th october opening poem

मैंने सोचा कुछ ऐसा
शायद किसी ने सोचा न जैसा
मुझे सन्नाटे बोलते नज़र आते
(कई दिन से ऐसा होता हैं )
कि मुझे सन्नाटे बोलते नज़र आते
और कभी ये शोर भी चुप हो जाते
मैं तो बालकनी पर उस चाँद को देखने खड़ा होता
और न जाने क्यों मोहल्ले भर में किस्सा हो जाता
मैं तो ढलते सूरज से बात करने झील किनारे जाता
और शाम का मंज़र न जाने क्यों इतना हसीं हो जाता
शायद तू उस मंज़र की याद में बसी रहती हैं
तभी तो वो झील भी आजकल चुप चुप रहती हैं
बोलती वो तभी जब झरने से हैं मिलती
अब समझा क्यों मैं उस झरने की हँसी में तेरी आवाज़ हैं कितनी मिलती
ऐसे ही तू जाने अनजाने सोच में आना
ताकि मुझे मिले एक नई कविता लिखने का
एक और नया बहाना

15 th ocotober closing poem

कह रहा हूँ ये ग़ज़ल तुझको सुनाने के लिए
(आजकल अपनी हर बात तुझको सुनाने के लिए ही होती हैं )
तू मगर बेताब उठ कर जाने के लिए
इल्तजा हैं ये मेरी थोडी तो मेर क़द्र कर
कहते हैं लोग अब मैं भी बड़ा कीमती हूँ ज़माने के लिए
बारिश में बीमार होते हुए भी मैं भीगता रहा
तू बता और मैं क्या करू तुझको लुभाने के लिए
मेरे सब अहसास तेरे लिए
तू इसको ज़रा महसूस तो कर
प्यार कर सकता नही मैं यूँ जताने के लिए
लिखना विखना न मुझे पहले आता था
न मुझे अब आता हैं
बस शब्दों को जोड़ता रहता हूँ
तुझे सुनाने सुनाने के लिए

15th october opening poem

तुझे ढूंढने भी अब हम जाए कहाँ कहाँ
तेरा पता भी सिर्फ़ तुझको पता
ढूंढे हम तुझे कहाँ कहाँ
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14th october closing poem

दिन महीने कई साल फ़िर बदले
मगर घर के कुछ कोने कभी न बदले
आज सुबह मैंने मेरी अलमारी जब खोली
तेरे ख़त तेरे खातो की वो खुशबु मुझसे आकर बोली
अब याद नही आती न
पहले तो बड़ा कहते थे
मेरे हमजोली ओ मेरे हमजोली
मैं बस मुस्कुरा गया कुछ जवाब न दे पाया
ख़ुद से तो रोज़ करता हूँ बातें
पर उस बंद ख़त से कुछ न कह पाया
सबसे कहता हूँ तू सपनो में आकर मिलता हैं
पर सच अपनी किस्मत में तो सपने भी किस्मत जैसे
कभी मिलते कभी नाराज़ हो जाते
जब तकदीर में कुछ पाना होता हैं
ठीक उसी पल एक रात का आना होता हैं
रात सुबह में फ़िर बदल जाती
पर तेरी यादो को मेरे खातो में कैद होकर
मेरी बंद अलमारी से हर पल आना होता हैं

14 th october opening poem

नज़र में प्यार तो लहजे में सादगी रखना
हम अजनबी ही सही हमसे भी थोडी दोस्ती रखना
मिले दिल हमसे तो ठीक
नही तो बस अपनी आँखें हमसे भी मिलाये रखना
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
(ये कहू उससे ? उसे क्या लगेगा ? वो क्या सोचेगी )
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
(ऐसा कहते हैं कि वो मेरा दोस्त हैं वो मेरा दोस्त हैं हाथ मिलाने वाला हर शक्स दोस्त नही होता )
कि मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
बहुत ज़रूरी हैं जिंदगी में थोड़े फासले रखना
इस दीवाने की इस बात पर ज़रा गौर करना
तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे यारो से ऐसे शायरों से
शायरी को दूर रखना
कि तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे शायरों से शायरी को दूर रखना
नज़र से जब तुम्हे गिरा दे ये दुनिया वाले
इक दिल हैं इंतज़ार में तेरे
बस मेरी इस आखिरी बात पर यकीं रखना
नज़र में प्यार तो लहजे में सादगी रखना
चलो हम रेडियो वाले थोड़े अजनबी ही सही
थोडी सी दोस्ती तो हमसे भी रखना

13th october closing poem

आओ देखे हमने अब तक किस किस को क्या क्या बांटा
हमने कुछ दुःख बांटा और थोड़ा सन्नाटा बांटा
baant chunt कर रोटी जिसने हमे खाना सिखलाया
माँ वो किसके हिस्से आई जब हमने घर का दरवाज़ा बांटा
दिल बस एक ही था मेरे पास
फ़िर क्यों भला मैंने तेरे लिए
अपने घर वालो का प्यार बांटा
जब भारत एक ही हैं भला
तो फ़िर क्यों नक्शे में हमने उसको काटा
क्यों अलग अलग नाम देकर उस भारत को कई टुकडो में काटा
सपने सजाकर मोहब्बत डोली में आती हैं
फ़िर क्यों कभी किसी एक लड़की ने घर का चूल्हा बांटा
मैंने अहसासों के कागज़ लिखकर जिसके नाम कर दिए सारे
फ़िर क्यों उसने हिस्सा हिस्सा पुर्जा पुर्जा मेरे बांटा

मेरे दिल पर छाले हैं तेरी मोहब्बत के लेकिन
देखा हैं मैंने भी एक दिन तेरे पाँव में कोई काँटा
सिर्फ़ ये बता खुशिया तो तू सबके साथ बाँट आया
गम क्यों न तुने मेरे साथ बांटा

13th october opening poem

तेरी सूरत आंखों से कही गई नही
इसीलिए हमने ग़ज़ल कोई कभी गई नही
सोने की बहुत सी वजह थी मेरे पास
(थक जाते हैं न काम करते करते तो बहुत सारी वजह होती हैं )
सोने की बहुत सी वजह थी मेरे पास
पर पता नही क्यों कल रात नींद मुझे आई नही
निभ गई बस जब तलक निभ गई
(ऐसा आपके साथ भी होता होगा न कि किसी को जो कह दिया वो कह दिया )
निभ गई जब तलक बस निभ गई
इस दीवाने ने किसी के साथ पुरी जिंदगी निभाने की कसम खायी नही
जब मिले वो तो यूँ मिले कि बस वो ही वो हो हर तरफ़
हर जगह हमने मोहब्बत को ढूंढने की कोई कसम कभी खायी नही
बेबसी इंतज़ार और तेरा प्यार हर वक्त
शायद चौबीस घंटो में इसीलिए तेरी याद आई नही
बस सुन लो मेरे दिल की वो ख़बर ए उदयपुर
ये दिल की ख़बर अब किसी अखबार में आई नही
हमने उसे अपना दिल देने का वादा किया
और वो kambakht पिछले कई दिनों से नज़र हमे आई नही
हर वादे पर हम अपनी जान भी दे दे उसे
हर वादे पर वो निसार
मगर वो हमसे मिलने आई नही

12th october - sundayyyyyyyyy

sundayyyyyyyyyyyyyy
kidsdayyyyyyyyyyyyyyyy
fundayyyyyyyyyyyyyyy

11th october closing poem

इतने बड़े आसमान में से कोना एक हमे दे देती
कोई नाम हम तुम्हे देते
एक नाम तुम हमे दे देती
इतने खेल खेल लेती हो
खिलती हो तो खुशबु दे देती हो
कभी चुप चुप
कभी आंखों से सब कुछ कह देती हो
तुमसे कुछ पूछे तो पूछे कैसे
कैसे कहे कहो तो यारा
ये जुबां तुझे देख चिपक सी जाती हैं
ऐसा क्यों होता हैं यारा
तुझे शायद जब मैं जानता भी नही था
तभी से तू लगता हैं मुझे बहुत प्यारा
(ऐसा सिर्फ़ प्यार में होता हैं )
देखा तुझे जबसे
बस तबसे जीने की वजह मिल गई
तेरे साथ जिंदगी खुबसूरत होगी
ये वजह मिल गई
सभी कायदे और किताबे
अब छोड़ दिए पढने मैंने
बस तेरे अहसास के साथ
एक अहसास सी जिंदगी मिल गई


11th october opening poem

वो धुंधला सा चेहरा अब साफ़ होने लगा
कोहरा था कही पे पर धीरे धीरे वो कोहरा अब हटने लगा
इंतज़ार था ये कई सदियों का
सदियों के बाद अब शायद मुझे भी प्यार होने लगा
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
(बहुत नींद आती थी )
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
जाने अनजाने बस अपने ही खयालो में खो जाता था
हुआ ये अचानक किसी का ऐसा जादू
कि उस जादू ने सब बदल सा डाला
पहले ख्यालो में भी अकेला रहता था
और अब अकेलेपन में भी अपना बना डाला
कशिश उसकी मोहब्बत की लगती हैं
खुबसूरत होती हैं कई लड़किया
पर आंखों में सूरत किसी की न जचती हैं
शायद वो काला जादू जानती हैं
(उसकी आंखों से लगता हैं ऐसा )
कि शायद वो काला जादू जानती हैं
तभी काले रंग में कमाल लगती हैं
तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
(sun rahe hain na udaypur )
कि तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
कि उसके होने से ही वजह मुझे मेरे जीने की नज़र आती हैं

Saturday, October 18, 2008

10th october closing poem

तुम्हारा नूर हैं जो अब दीखता हैं मेरे चहरे पे
तभी तो लोग हैं जो मुझे देखते हैं आजकल
वरना कौन देखता था मुझे अंधेरे में
मुझे बारिश में अब भीगने की आदत नही रही
पर जब तू अपनी जुल्फे सुलझाती हैं
घंटो भीगने का मन करता हैं
कभी बादल को पैदल चलते देखा नही
मगर तू चले जब नंगे पाँव
तो वो भी पैदल चलने लगते हैं
एक बार तू उन्हें पलट कर देख ले
ऐसी गुजारिश वो करते हैं
कभी सूरज को दिन में ढलते देखा नही
क्यूंकि वो बस रात में रोती हैं
और कभी रात को सोते देखा नही
क्यूंकि वो रात में ही कहीं खोती हैं
कभी तितलिया एक जगह नही रहती टिककर
कभी तितलियों को एक जगह पर न टिककर बैठे देखा
ये तितलिया बड़ी कमबख्त होती हैं
रंग होते जितने उनके परो में
ये सपने उतने दिखाती हैं
सपने उतने दिखाती हैं और
और हर सपने में हर बात में
तू आजकल क्यों चली आती हैं
दूर की चीजे भी साफ़ नज़र आती है
और आजकल पास की चीजे भी धुंधली नज़र आती हैं

10th october opening poem

जो देखा न था दिखाया तेरे प्यार ने
जो पाया न था वो सब दिया तेरे प्यार ने
रोज़ बदलो में धुंधला सा एक चेहरा नज़र आता हैं
इस कदर प्यार सिखाया तेरे प्यार ने
माचिस जलाई रात अंधेरे में तेरा घर ढूंढने को
हाथ पे ये दाग लगाया तेरे प्यार ने सपने
तेरे सिमटे न मेरी आंखों में
न जाने कितने शहर फिराया तेरे प्यार ने
ना जाम याद हैं न अंजाम
डांडिया खेलते खेलते ये क्या बताया तेरे प्यार ने
दीवाने को न कपडे पहनने का ढंग था न आती थी जीने की अदा
(अपनी बात हो रही हैं उदयपुर )
कि दीवाने को न कपडे पहनने का ढंग था न आती थी जीने की अदा
बस उसे साँस लेना और जीना सिखाया तेरे प्यार ने

Tuesday, October 14, 2008

9th october closing poem

कुछ तुमको याद नही
कुछ हम भूल गए शायद
मगर फिर भी उन बीती यादो को
याद करना सुहाना लगता हैं
मिले थे कभी जिन गलियों में हम
उन राहो पर जाना मुश्किल बहुत मुश्किल लगता हैं
फ़िर भी न जाने क्यों उन राहो को पीछे से
बार बार पलट कर देखना अच्छा लगता हैं
तुम शायद खुश अपनी दुनिया में
मैं अपने काम में खुश रहने की कोशिश करता हूँ
ख़त वत तो लिखना मुझे आता नही
इसीलिए अपने मोबाइल पर messege लिखता हूँ
आलम तो ये हैं नींद को भी मैं अब रिश्वत देता हूँ
कि साथ तेरे उन सपनो में महीने में कम से कम एक बार तो रह ले

9th october opening poem

खोया हैं जिंदगी में और भी बहुत कुछ
हम तुझे खोकर भी जी लेंगे
बहुत बहाए हैं हमने आंसू
तेरे गम में भी जी लेंगे
तनहा थे हम पहले भी
हम अब भी तनहा हैं
हो सके तो याद न करना हमे
हम तेरी यादो के सहारे भी जी लेंगे
तू हमसफ़र नही तो क्या
(कभी कभी मोहब्बत मिल नही पाती )
कितू हमसफ़र नही तो क्या
तेरी खुबसूरत बातें ही सही
उन्हें अपना हमसफ़र बना कर बस जी लेंगे
तू सपना ही सही
(नही उसका नाम सपना वपना नही हैं )
कि तू एक सपना ही सही
जो एक दिन ज़रूर पुरा होगा
इस इरादे को तेरा समझ कर
तेरे इस इरादे के संग बस हम जी लेंगे
गलती मेरी बस इतनी कि चाहा हैं तुझे
और जब तक जीते रहेंगे
ताउम्र ये गलती करते रहेंगे
रहेंगे तो तेरे साथ
वरना जैसे तैसे बस जी लेंगे

8th october closing poem

वो मेरा तेरी आंखों के समंदर में उतर जाना
और तुझे बस अपनी साँस रोक कर एक तक देखते जाना
तेरी आवाज़ के सेहर से कभी न निकल पाना
और तू जब मुझसे बात करे तो
तुझे बस सुनते चले जाना
बहुत चाहा इन गुज़रे हुए लम्हों को न सोचना
न तेरी यादो में रहकर तेरी हर बात को महसूस करना
(मगर सारी बातें कहाँ वैसी होती हैं जैसा हम सोचते हैं zindagi vahi करती हैं vahi kahti हैं जो हम नही सोचते )
भुला du सारी yaado को जो दिल dukhaati हैं
(कई बार सोचा की क्या हैं यार रोज़ रोज़ की वही टेंशन वही झिकझिक छोडो यार )
भुला दू सारी यादो को जो दिल दुखाती हैं
पर क्या करू यार वो दिल दुखाये कितना भी
याद बहुत आती हैं
डरता नही मैं दिन से पर ये रात मुझे बहुत डराती हैं
ख्वाबो ने अब मेरी आंखों में आना छोड़ दिया
पर ये नींद मेरी पलकों से निकल कर
कमबख्त मेरी ही चप्पल पहनकर मेरी कालोनी से न जाने कहाँ चली जाती हैं
चाँद देखता हैं टकटकी लगाए खिड़की से
कमबख्त ख़ुद तो तारो से बतियाये और हमे जगाये रखता हैं

8th october opening poem

मुझे याद कोई दुआ नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
तू मेरे हाथो में लिखा नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
अभी रास्ता भी नही धूल में
अभी फिजा भी नही भूल में
अभी मुझको तुझसे गिला नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
मैं जनम जनम से बोला नही
(वैसे मैं बहुत बातें करता हूँ मगर जब तू सामने आती हैं तो कुछ बोला नही जाता )
कि मैं जनम जनम से बोला नही
राज़ दिल का किसी से खोला नही
मैं कभी खुल के हंसा नही
अभी तक कहीं खूबसूरती में फसा नही
न जाने तू कहाँ से पसंद आ गई
चंद मुलाकातों में दिल के इतना पास आ गई
अब आई हैं तो यही रहना
(ये धमकी हैं इस लाइन में )
कि अब आई हैं तो यही रहना
तेरे बिना मुझे कुछ नही कहना

7th october closing poem

कुछ दिनों से लिखना बंद सा हैं
कुछ दिनों से ये दिल का धडकना कुछ मंद सा हैं
तू मुझे रुलाकर जब मुझसे लिपटता हैं
(किसी के गले लगकर बहुत सुकून मिलता हैं )
तू मुझे रुलाकर जब मुझ से लिपटता हैं
सच कहू तेरा ये अंदाज़ न जाने क्यों मुझे बहुत पसंद सा हैं
कि शिकायत बादलो से
बादलो ने अब मेरे घर से गुज़रना छोड़ सा दिया
उनका मेरी छत पर टहलना कई दिनों से बंद सा हैं
बंद रखता हूँ मैं भी आजकल अपनी हथेली
जब से किसी ने कहा मेरी किस्मत में तेरा होना थोड़ा कम सा हैं
नज़र में अब किसी से किसी को देखता नही
(मैं अपनी नज़र में अब किसी और को नही देखता )
कि नज़र में अब किसी से ज्यादा मिलाता नही
मेरी नज़र में तू बसी रहती हैं
और तू नज़रे मिलाये किसी से
ये पसंद मुझे कुछ कम सा हैं
तू रहे मेरी और मैं करता जाऊ तुझे बेइंतेहा मोहब्बत
ये मोहब्बत भरा ख्याल मेरी नम आंखों में बस बंद सा हैं

Friday, October 10, 2008

7th october opening poem

तेरी दीवानगी का राज़ बनकर एक ओस की बूंद में बस जाऊ
कोई दीवार न हो जिसमे रह्बसर की
ऐसे घर की हर दीवार में मैं बस जाऊ
तेरी आरजू का अहसास बनकर
मिलूँगा मैं तुझे तेरी प्यास बनकर
तू गर न मिले तो मैं बिखर जाऊ
तेरे रंग में रंग कर अबके बरस मैं होली मनाऊ
तेरे ही नक्शे पर चलता चला जाऊ
न मोड़ का पता हो न फ़िर मैं कुछ गुनागुनाऊ

(जब किसी से बहोत सारी मोहब्बत हो जाती हैं तब ऐसा होता हैं )
न मोड़ का पता हो न मैं कुछ गुनागुनाऊ
तेरा ही साया जिधर नज़र आए
मैं रुख बस उधर का कर जाऊ
इतना प्यार मैं बस तुझे ही दे पाऊंगा
तुझसे दूर एक पल न जी पाऊंगा
मेरी जुबान से बोलू तेरे दिल की हर बोली
मेरी जिद से न खेलो तुम
ए खुबसूरत अब कोई आँख मिचोली

Thursday, October 9, 2008

6th october closing poem

दोस्त नया हो या पुराना याद तो रहता हैं
दिल के किसी कोने में अहसास बनके तो रहता हैं
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
(पूछते हैं कभी ऐसा यार ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ वो कहाँ चला गया मेरे पास friends नही हैं मैं बहुत अकेला हूँ )
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
या तुझे भी अब मेरे मिलने के बाद कुछ याद नही रहता हैं
जिंदगी के मोड़ पर कुछ नाज़ुक रिश्ते हैं बनते
कुछ सड़क के मोड़ पर हैं बिछडते
कुछ जाने अनजाने साथ हैं चलते
जो जान bujh कर बिछड़ जाते वो रिश्ते बड़े कमज़ोर हैं कहलाते
जान बुझ के जब कोई चला गया आपसे दूर तो
वो रिश्ते बड़े कमज़ोर कहलाते
जो मुश्किल परिस्थितियों में आपके साथ चलते
वही मुझे अपनों से ज्यादा प्यारे नज़र हैं आते
तू न मिल मुझसे मुझे कोई गम नही
बस उदास न रहा कर
न उदास रह कर मुझे उदास किया कर
तेरी हँसी से ही तो मेरी साँसे चलती हैं
तू उदास रह कर क्यों दिल का ये हाल करती हैं

6th ocotober opening poem

नही मिलता अब वो मुझे बीती यादो में
बदल ही गया हैं वो बस चाँद मुलाकातों में
हसरत रही उसे देखने की पास आने की
कोई वजह नही नज़र आती मुझे उसके दूर जाने की
कभी मेरी किताब में उल्टे सीधे चित्र बनता था
आज मेरे बनाये चित्रों को देखता तक नही
कभी मेरे आने पर बारिश में भीगने जाने का प्रोग्राम बनाता था
पर अब बारिश आने पर वो मिलता तक नही
कभी घंटो बैठ मुझे चिठ्ठिया लिखता था
ख़त में हर बात होती थी
यहाँ ये हुआ उसने वो कहा पापा ऐसे डांटते हैं तुम कब आओगे
कभी घंटो बैठ मुझे चिठ्ठिया लिखता था
पर अब मेरी लिखी चिठ्ठिया वो कमबख्त खोलता तक नही
पर जानता हूँ करता हैं वो सब जानकर
मिल सकते नही जिंदगी में हमेशा के लिए
बस इसीलिए बदलना चाहता हैं वो ख़ुद को सबके लिए

5th october ---------- SUNDAYyyyyyyyyyyy

SUNDAYYYYYYYYYYYYYYYYYYYYyyyyyyyyyyyyyy

4th october closing poem

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4th october opening poem

कैसे इस घर की देखभाल करे
यहाँ रोज़ एक चीज़ टूट जाती हैं
मैं अब भी खिड़की पर हर शाम खड़ा होता हूँ
उम्मीद तेरे आने की फ़िर क्यों रूठ जाती हैं
मैंने अब घर लौटते पंछियों से बात करना छोड़ दिया
फ़िर भी क्यों उनकी खामोशी मेरा ध्यान तोड़ जाती हैं
फूल मेरे आँगन में अब खिलते नही
उनके खिलने की कोई वजह मुझे नज़र नही आती
और वो तितलिया वो अब मेरे मोहल्ले का पता तक भूल गई
इसीलिए शायद उनके पारो में अब तेरी खुशबु नही आती
चलो शायद यही मोहब्बत होती हैं जहा वजह न हो किसी के आने की
फ़िर भी हर बार एक वजह नज़र आती हैं

3rd october closing poem

कोई किसी की याद लिए कब तक यूँ तड़पता रहे
मेरे दिल की बात छोड़ ये तो तेरी याद से ही धड़कता हैं
कब किसी ने किसी के लिए ये जहाँ छोड़ा हैं
मेरी मिसाल बिल्कुल मत दे
मैंने तो तेरे लिए दुनिया का हर असूल तोडा हैं
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए
(बड़ी बेरुखी से जब कोई चला जाता हैं तो दिल बस यही कहता हैं कि)
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए कि कायनात में कब कहाँ किसी की कमी खलती हैं
मैं दीवाना सोचता रह गया कि
कैसे कही उससे
कि उसके होने से ही मेरी साँसे चलती हैं

Monday, October 6, 2008

3rd october opening poem

कुदरत के करिश्मे मे अगर ये रात न होती
ख्वाबो में भी फ़िर उनसे मुलाकात न होती
कुछ लम्हे ही सही हमे करार आता हैं
तेरा वो छूना मुझे रह रह कर याद आता हैं
गौर फरमाइयेगा उदयपुर
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती
(जो हम सोचते हैं life में बस वही नही होता तो बार-२ ये ख्याल आता हैं कि)
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती

तो ख्वाबो में ही सही हमारी बहोत बात होती
हर लम्हा तुझे देखता फ़िर सोने की जगह मेरी जागने की ख्वाहिश होती
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
(अब आप smile करना बंद करे तो हम कुछ कहे )
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
फ़िर उस अहसास से जुदा न कर पायेगा कोई मुझे
हर हकीक़त में या पर हकीक़त में
तेरे पास होने की एक आस हैं
सच में न सही तू उस प्यारे से ख्वाब में ही सही पर
मेरी बांहों में मेरी आँखों के एकदम पास हैं

2nd october closing poem

ये मेरी जुबां क्या कहे
मेरे दिल मे जो कैद रहता हैं
बस उसी की बात करे
शब्द जो भी इस जुबां पर आता हैं
न जाने क्यों तेरा ही नाम फरमाता हैं
मेरी आवाज़ जो तेरे कानो मे खनकती हैं
ये सीधे मेरे दिल से खनकती हैं
मैं पूछता हूँ ख़ुद से की क्यों ये जुबां
खुदा से पहले तेरा नाम लेती हैं
घर मे दस्तक हवा भी दे तो
तेरा अहसास मेरे पास होने का ये कहती हैं
नही रोक सकता मैं इस जुबां को लेने से तेरा नाम
क्यूंकि तेरे नाम से ही तो मेरी सुबह होती हैं
मेरी शाम मेरी रात होती हैं

2nd october opening poem

मैं एक बार रो लू तुझसे लिपट के
कि रोज़ मैं रोना नही
तू मुझसे दूर रहकर भी मेरी रूह मे
मैं सचमुच तुझे इक पल को खोना नही चाहता
तुझसे जुदा रहकर जिंदा रहू कभी
ख्वाबो मे एक पल भी नींद ऐसी मैं सोना नही चाहता
मेरी आंखों की नमी कभी तेरी पलकों को छुए
मैं गुनेहगार कभी ऐसा होना नही चाहता
तू चाँदनी हैं
(उसका नाम चाँदनी नही हैं )
कि तू चाँदनी हैं मेरी काली रातो की
तुझे तो मैं धुप मे भी खोना नही चाहता
मौसम चाहे कोई सा भी रहे दिल मे
मैं तेरी यादो के मौसम मे तुझसे दूर होना नही चाहता

1st october closing poem

जो मैं न रहू आंखों मे आंसू न भरना तुम
इस दिल पे रहेगा बस नाम तुम्हारा
इस बात पर यकीं रखना तुम
मैं हु तेरे साथ हूँ मैं तेरी हर बात का हमराज़
दूर होकर भी एक दूजे से कभी दूर नही हम
वो बदल दूर उड़ता हैं मगर आंखों से कभी दूर नही होता
तेरी उदासी बस जब हो मेरा दम उस पल निकल जाए
गुज़रता हर लम्हा हर लम्हा बस तेरी याद दिलाये
साँसों की ये डोर तेरी साँसों के संग जोड़ जाए
मेरे हमदम तेरा प्यार पुरी ज़िन्दगी इस दीवाने को मिले
और ये दीवाना बिना थके बस ऐसे ही बोलता जाए
खुदा क बाद करू मैं दिल की हर बात अगर किसी से
तो वो सिर्फ़ तू
तू मेरी ज़िन्दगी मेरी बंदगी बन जाए
वक्त की वो गर्मी झुलसाने लगे अगर तेरे इरादे
तो बिना सोचे तू सिर्फ़ मेरा नम्बर घुमाये
वक्त की थोडी कमी रहती हैं आजकल
पर जब जब जिस पल तू मुझे याद करना चाहे
बस उसी पल ये अंकित तेरी आंखों के सामने
तुझसे बात करने को किसी भी कोने से चला आए

1st october opening poem

मैं बंद कर दू सवाल करना गर तू जवाब देना शुरू कर दे
(पहले वो बहुत पूछती थी अब मैं बहुत पूछ्ता हूँ )
मैं बंद कर दू सवाल करना गर तू जवाब देना शुरू कर दे
सब चलते मोहब्बत के सफर मे
तू संग चल तो अपना हर सफर मैं तुझ पर नज़र कर दू
हम्म मैं सवाल करना बंद कर दू
चलन चाहते मेरे संग तो आकाश बनके चलना
मैं धरती बनके तुम को ही साथ लूँगा
जानता हूँ ये आकाश धरती मिलते नही
मगर मैं तुमको छू ही लूँगा
दूर रहकर भी होता हैं दिलो मे प्यार का सहारा
मैं लौटना चाहू तो भी लौटा न सकूँगा
पर ये न समझना कि मुझे मोहब्बत नही
बस एक इसी रिश्ते पर मैं कोई बात बर्दाश्त नही करूँगा
करूँगा पुरी दुनिया से सिर्फ़ तेरी ही बातें
और सच अपनी इस बात से कभी पीछे न हटूंगा
मैं जानता हूँ तेरी तस्वीर अपने होठ हिलती नही
पर मैं तेरी तस्वीर को टकटकी लगाये देखूंगा

30th september closing poem - on jodhpur stampede

जो भरा नही भावो से बहती

जिसमे रसधार नही

वो दिल नही पत्थर हैं

जिसमे स्वदेश का प्यार नही

जयभारत कहने से देश बड़ा बनेगा नही

सोच बदलो उन आतंकवादियों की

सच ये पैसा सब कुछ पर भगवान् नही

जान से ज्यादा किसी की कुछ भी नही

और उन लोगो को किसी की जान का कुछ भी ख्याल नही

Saturday, October 4, 2008

30th september opening poem

तुम्हे और भी हैं चाहने वाले
तुम तो हमे भूल ही जाओगे
हम तो अब सिर्फ़ तेरे नाम से जिंदा हैं
तुम चली गई तो कैसे जी पायेंगे
तुम खुशबु सी कहीं न कहीं बिखर ही जोगी
हम भला कब तक तुझे अपने दिल मे छुपायेंगे
मेरी ख्वाहिश इतनी किहर रस्म तुझसे जुड़ी मैं अच्छे ने निभाऊ
पर क्या तुम प्यार की एक छोटी सी रस्म निभा पाओगी
अब न शिकायत करेगा ये दिल तुमसे
मिलेगा रोज़ हमसे पर हम अब कुछ न कह पायेंगे
(दिल मुझे रोज़ मिलेगा पर मैं उसे कुछ कह नही पाउँगा तेरे जाने के बाद )
पूछेगा गर खुदा मुझसे
(बहोत मानाने मे लगा हैं god मुझे )
पूछेगा खुदा मुझसे
क्या बनकर धड्कू मैं तेरे सीने मे हर पल
हर धड़कन मे बस हम तेरा ही नाम चाहेंगे
यादो से न कभी मेरी दूर जाना
तू हमेशा खुश रहना
यही दुआ बस उस खुदा से हम हर पल चाहेंगे

29th september closing poem

पलकों पे आंसुओ को सजाया न जा सका
और उसको भी अपने दिल का हाल बताया न जा सका
ज़ख्मो से चूर चूर था ये दिल मेरा
पर कोई ज़ख्म उसको दिखाया न जा सका
जब तेरी याद आई तो लाख की मैंने कोशिश की तुझे याद न करू
(क्यों याद करू मैं उसे क्यों याद करू)
जब तेरी याद आई तो लाख की मैंने कोशिश की तुझे याद न करू
अपने मोबाइल फ़ोन से तुझे कोई कॉल न करू
न भेजी मैं कोई ख़त न लिखू कोई messege
पर दिल को उस पल समझाया न जा सका

आंखों मे आंसुओ को कई देर तक तो रोका
पर ज्यादा देर तक मैं थाम न सका
कुछ लोग जिंदगी मे ऐसे आए
कि एक पल के लिए भी उन्हें भुलाया न जा सका
बस इस ख्याल से कि उनको दुःख न हो
हमसे हाल ऐ गम सुनाया न जा सका
मैं ज़रूर मुस्कुरा रहा था उनके सामने
पर चेहरेका बदलता रंग भी उनसे छुपाया न जा सका
(यही होता हैं प्यार मे , आप लाख छुपाना चाहे अपनी परेशानिया सामने वाले को पता लग ही जाता हैं )

29th september opening poem

तेरा यूँ पास आना
मुस्कुराके मुझे कभी गले लगना
पल को थाम कर एक पल मे वापस चले जाना
और उस एक पल मे ही मुझे अपना दीवाना बनाना
साँसों को रोक कर तेरा बस पल दो पल के लिए चुप हो जाना
और सच उन दो पलो मे मुझसे मेरे दिल का कोई भी हाल कभी बाया ना कर पाना
सालो बाद मिलना मानो मेरे सारे ख्वाब हकीक़त कर जाना
दूरियों को नजदीकिया बताना
फ़िर भी पास ना आना
उस एक पल मे मुझे न जाने क्या मिल जाना
जैसे किसी बंद किताब के पन्नो का ऐसे ही उलटते जाना
बंधन ये प्यार का
कभी अनजाना कभी जाना पहचाना
कभी घर मे अपनो को भूल जन
कभी अपनो के बीच तुझे देखते जाना
तेरी यादो को हर पल गले से लगाना
और जब तनहा हो तब तुझसे बतियाते जाना
(ये प्यार हैं उदयपुर ये मोहब्बत हैं जो आपको एक पल के लिए भी कभी अकेला नही छोड़ती और आप अकेला होना भी चाहे तो भी आपको अकेला नही छोड़ती )

28th september - sundayyyyyyyyy

kids day
funday

27th september closing poem

सोचा नही अच्छा बुरा
देखा सुना कुछ भी नही
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नही
सोचा तुझे पूजा तुझे चाहा तुझे
मेरी खता शायद मेरी वफ़ा
जो तेरे लिए कुछ भी नही
जिस पर हमारी आँख ने आंसू बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ तुम्हे पर उसमे लिखा कुछ भी नही
एक शाम की दहलीज़ पर बैठा रहा वो देर तक
आंखों से की सारी बातें
पर मुह से कहा कुछ भी नही
अहसास की तेरे खुशबु आए
आवाज़ जुगनुओ को दी
पर तेरे घर मे तन्हाई के सिवा कुछ भी नही
दो चार साल की बात हैं
दिल ख़ाक मे मिल ही जायेगा
जब आग पर तुमने रख दिया उस ख़त को
जिसमे हमने लिखा कुछ भी नही

27th september opening poem

कहाँ मालूम था ये प्यार हमको इतना सताएगा
जो पसंद आएगा वही फ़ोन नही लगायेगा
दिन बीतेगा तेरे इंतज़ार मे
न इस दिल को रात मे करार आएगा
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
(रोज़ दिल हम पर हुक्म चलाताहैं कभी कभी हम दिल पर हुक्म चलते हैं )
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
एक बेनाम सी मोहब्बत मेरे नाम कर दो
मेरी किस्मत पर बस इतना अहसान कर दो
किसी दिन अपनी शाम मे हमे शामिल कर लो
या फ़िर मेरी एक सुबह को ही तुम शाम कर दो
मैं जानता हूँ तू हैं खुबसूरत बहुत
पर चाहने वालो का क्यों बुरा हाल करती हैं
मैं तो तेरा चाहने वाला भी नही
फ़िर क्यों आंखों आंखों मे तू इतने सवाल करती हैं
(तो फ़िर मैं कौन )
मैं तो दीवाना तेरी उस तस्वीर का हो गया
दिल मेरा था २५ सालो से अचानक ये तेरा हो गया