Monday, August 18, 2008

18th august closing poem

इतने बड़े आसमान में से कोना एक हमे दे देते
कोई नाम हम तुम्हे देते कोई नाम तुम हमे दे देते
इतने खेल खेल लेती हो
खेलती हो जब खिलिखिला के हंसती हो
उस हंसी के बाद एक खुशबु तुम सबको दे देती हो
अपनी चुडिया खनका कर मेरे मन की बात जान लेती हो
अपनी बिंदी से दीवाना बनती हो
तुमसे कुछ कहे तो कहे कैसे
कैसे कहे कहो तो यारा
था न जवाब जुबान पे
बिना कहे ही कई सवाल देती हो
न जाने क्या उन हंसी आँखों से कहती हो
और क्या नहीं कहती हो

No comments: