Friday, August 15, 2008

30th july opening poem

दिल को आता हैं जब भी ख्याल उनका
तस्वीर से पूछते हैं फिर हम हाल उनका
वो कभी हमसे पूछा करते थे जुदाई क्या हैं
आज समझ मे आया हैं ये सवाल उनका
रोज़ जब मिलती थी मुझसे
मुझसे पूछा करती थी
मुझे ख़त लिखोगे क्या
यही बोला करती थी
पर गाँव मे डाकिया नहीं आता
अब समझ मे आया ये जाल उनका
सपनो से शिकायत नहीं मुझको
पर क्यों तुम मुझे सपने दिखाते हो
तुम गैर होकर भी मुझे क्यों सपने दिखाते हो
जानता हूँ एक राह चुननी मुश्किल होगी
फिर क्यों तुम रोज़ मुझे उस चौराहे पे बुलाते हो

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