Saturday, August 30, 2008

23rd august closing poem


देखा था कल उसे मेले मे

बैठी थी वो दूर कहीं अकेले मे

सोचा किसी का इंतज़ार होगा

कोई तो उसका भी प्यार होगा

थी गुमसुम ख्यालो मे खोयी हुई

गब्राहत थी चहरे पर उसके

लगता था कि पूरी रात आँखों से रोई हुयी

नहीं जानता था मैं उसे

ना मिला था उससे पहले कभी

कुछ पल हुए थे देखते उसे

लगा सदिया बीत गयी अभी अभी

उसकी बैचैनी देखकर मैं भी बैचैन होने लगा था

अपनी सी लगने लगी थी वो

शायद मुझे उससे प्यार होने लगा था

वो मासूमियत वो उसका भोलापन

कुछ नहीं कहकर भी उसका वो अपनाpan

aankhon me bas gayi surat usaki

dil usake khyalo me kho gaya

jaanta nahi kaun thi vo

mela khatam hua aur vo chehara bheed me kahin kho gaya

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