Friday, August 15, 2008

1st august closing poem

याद हैं तेरा वो हँसाना तेरा वो मुस्कुराना
बिना बात के रूठना तेरा
तेरा बस यूँही मान जाना
वो रंग बिरंगी परिंदों सी तु जब चहकती हैं
मत पूछ मेरी जान मेरे दिल पर क्या बीतती हैं
फिजा मे आवाज़ तेरी गूंजती ऐसे
सौ साज़ बजते हो कहीं दूर जैसे
कोई दिल अपना रोके कैसे
जब तरन्नुम हवाओ से बहती जाती हैं
ए खुबसूरत तु जब रूठ जाती हैं
तो और भी खुबसूरत नज़र आती हैं
तेरी आँखों की हर नज़र तूफानी सी लगती हैं
कशिश तेरे दिल की इस दिल को हर बार दस्ती हैं
जुबां से भले ही खामोश रहे तु
पर तेरी वो नज़ारे हमसे हर बात कहती हैं
तेरे आते ही रोशनी चली आती हैं
बस दिल के अँधेरे को यूँही जगमगाती हैं

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