Saturday, August 30, 2008

29th august opening

कितने इत्मीनान से ठुकरा गया मुझे
आंसू बनाकर आँख से टपका गया मुझे
ये कैसा खेल था ये कैसा फरेब था
मंजिल दिख कर मेरी राह से भटका गया मुझे
खामोश निगाहों से कहानी सुना गया मुझे
लाब्जो के हेर फेर मे अटका गया मुझे
मुझसे भी बचपन का एक मजाक किया उसने
एक मजाक कर छोटी सी हंसी मे अपनी उडा गया मुझे
दो दिन मे उसके दिल से मोहब्बर उतर गयी
और दो दिन मे ही अपनी यादो से मिटा गया मुझे
ना जाने कितने इत्मीनान से ठुकरा गया मुझे

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