Saturday, August 30, 2008

28th august closing poem

कभी तुम इधर से गुज़र के तो देखो
मेरी आँखों से मेरे दिल मे उतर के तो देखो
यहाँ तुमको अपनी मोहब्बत मिलेगी
कभी इन आँखों मे अपनी आँखें दाल कर तो देखो
बहुत गम दिए थे हमे ज़िन्दगी ने
खिलोनो से बहलाकर बहुत रुलाया किसी ने
मगर तुमने आकर मेरे जख्म भरे सारे
निगाहों मे बसा कर कहा अंकित तुम सब से प्यारे
दिए जल रहे थे सितारे बसे थे
मेरे आंसुओ को किसी ने ना देखा
कभी क्या तुम मेरे पास से गुज़रे थे
क्यों रोते रोते मैं चुप सा हो गया
तुने एक बार मुझे प्यार से देखा
और ये अंकित सिर्फ तेरा हो गया
लाख बार मना किया कि इन बिखरे बालो को बाँध के रखा कर
इन पलकों को ज़रा ऐसे ना ढका कर
कभी तुम इधर से गुज़र कर तो देखो
अब इस बात पर भी smile करते हुए ज़रा पास आकर तो देखो

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