8th august 8:00 pm poem
वो साथ था तो ज़माना था हमसफ़र मेरा
कभी मिले वो तुम्हे यूँही राहो मे तो उसे कह देना
वो साथ था तो ज़माना था हमसफ़र मेरा
मगर अब कोई नहीं मेरे पास उसे कह देना
उसे कहना कि बिन उसके दिन नहीं एक पल को कटता
सिसकिया लेलेके कोई याद मे ना जाने कहाँ से आ अटका
उसे पुकारू तो सोचु खुद पहुँच जाऊ उसके पास
क्यूंकि अब नहीं रहे मेरे पहले से हालत
अगर वो फिर भी ना लोटे तो मेरी मोहब्बत कि किस्मत
मेरी क्या हालत हैं उसके बिना उसे कहना
हर जीत तो शहर के नाम कर दूंगा मैं अपनी
पर मोहब्बत मे तेरी अपना दिल हारा
अगर मिलो उससे तो उसे कह देना
9th अगस्त opening of big chai
भूलना मुझे बहुत आसन हैं
मगर किसी से ज्यादा याद रखना मुमकिन नहीं
जैसे पतझड़ मे सब पत्ते इस पेड़ का साथ छोड़ जाते हैं
क्यों होते हैं वो झुग्नु जो सर्द रात मे भी टिमटिमाते हैं
जब कोई ग़ज़ल तुम्हे सुनाएगा
जब देगा कोई प्यार से तुम्हे आवाज़
सच कहता हूँ तुम्हे बस एक ही नाम याद आएगा
देखो हथेलियों को जब भी तुम
होगी आँख ज़रूर नम जब नहीं मिलेगा वहा मेरा नाम
जब देगा ना कोई साथ तुम्हारा
और लगेगा दुश्मन ये ज़माना
खुद को तनहा कुछ पल को पाओगे
सच कहू उदयपुर हमे साथ पाओगे
हमने तो कर दी ज़िन्दगी आपके नाम
पर आप भी कुछ पल हमारे नाम कर देना
९थ अगस्त
जाना तुम्हे हैं कहाँ जाना मुझे हैं कहाँ
रास्ते कितने अलग हैं और ये रूकावटे भी अलग
फूल जो रास्ते मे बिखरे हैं इनके रंग और महक भी अलग
मेरा सफ़र कट रहा रुक रुक कर और
तुम तूफान की तरह पास से गुज़र गए
मैं तुम्हे दूर जाता देखता रहा
और अपनी आँखें सेकता रहा
और तुम ना पलट के देखा
बस उस मोड़ से ऐसे गुज़र गए
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