Saturday, August 30, 2008

20th august closing poem

न भूलेगी वो शाम हमको
जब देखा था तुमने हमको
आंखों मे झांकना तो बहुत आता था
पर किसी के दिल मे झांकना सिखाया तुमने हमको
दिन मे जागना तो बहुत आता था
पर रातो मे जागना सिखाया तुमने हमको
....................................
पर इस पुरी दुनिया से लड़ना सिखाया तुमने हमको
वफ़ा से वफ़ा करना भी खूब आता था
पर बेवफाई से ...................
मेरे और ग़ालिब के नाम पढ़ना तो खूब आता था हमको
पर मेरी कलम को प्यार से आगे बढ़ना सिखाया तुमने हमको

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