Friday, August 15, 2008

4th august closing poem

वो घटाए वो फुहारे वो छनक भूल गए
कुछ बच्चे आजकल बारिश मे नहाने की ललक भूल गए
ओस कुछ इस कदर पड़ी घर के गार्डन मे
कि लोन के फूल भी अपनी महक भूल गए
इस कदर ये दिखावटीपना हावी हुआ हैं हर घर मे
कान तरस गए हम बरसो से बस चुडियो की खनक भूल गए
जबसे हवा चली हैं तबसे बस ये पंछी बस चहकना भूल गए
हम ना जाने क्या क्या भूल गए
हमको तो एक रोज़ बस गाँव जाना था
ज़िन्दगी की भाग दौड़ मे हम ना जाने क्या क्या भूल गए
अब तो हम चाँद सितारों को देखकर
उसे याद करते हैं
चाँद सितारों से बस अब बात करना भूल गए

No comments: