Saturday, August 30, 2008

27 th august closing poem

दिल उदास हैं बहुत कोई पैगाम ही लिख दो
तुम अपना नाम ना लिखो गुमनाम ही लिख दो
मेरी किस्मत मे इंतज़ार हैं लेकिन
पूरी उम्र ना लिखो एक शाम ही लिख दो
ज़रूरी नहीं कि मिल जाए सुकून हर किसी को
बैचैनियो की एक किताब मेरे नाम भी लिख दो
जानता हूँ तेरे जाने के बाद मुझे तनहा ही रहना हैं
पूरा दिन ना सही पल दो पल मेरे नाम भी लिख दो
चलो हम मानते हैं कि सजा के काबिल हैं हम
कोई इनाम ना सही इल्जाम ही लिख दो
रात चाँद तेरे दीदार को छत पर टहलता हैं
उसकी चाँदनी के नाम बस एक बात ही लिख दो
मैं तो लिखना चाहू पूरी किताब तुम पर
हँसता हैं ये ज़माना मुझ पर
लिखना तो शायरों का काम हैं
तुम इस दीवाने के नाम बस अपनी एक मुस्कराहट ही लिख दो

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