Friday, August 15, 2008

29th july opening poem

दिल हैं कि भूलता ही नहीं यूँ तेरा मुझसे खफा हो जाना
दिल की वफाओ का सिला कुछ इस तरह दिया उसने
कि जख्म भी पाए जख्मो को .........
यूँ तो कई बार देखा हैं ख्वाबो का बिचादना हमने bhi
मगर इस तरह से हवाओ से टकराकर ना देखा हमने किसी का टूट जाना
मैं भी चलो सजा लेता हूँ पलकों पर खून की बुँदे
जाओ तुम भी किसी के साथ गिरफ्तार हो जाना
मैं चुप रहा हूँ चुप ही रहूँगा
फिक्र ज़रा ना करना
जब बारिशो मे हो पथ्थरो की बारिश बस तुम ज़रा सा मुझसे दूर ही रहना
मैंने किसी पत्थर को माना था खुदा अपना पर
वो पत्थर निकला बेगाना

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