तुम्हारी पलकों मे बसा हुआ ख्वाब हूँ मैं
रात अंधेरे मे जो साफ़ नज़र आता हूँ
वो ख्वाब से भी गहरा ख्याल हूँ मैं
तेरी यादें अब मुझे ऐसे तडपाती हैं
जैसे मछली पानी से गरम रेत पर आती हैं
तु तो चाँद पलो के लिए आती हैं
पर तेरे जाने के बाद नज़ारे बस उसी मोड़ पर टिक जाती हैं
रात सोने का ख्याल तो मैं अब छोड़ चूका हूँ
आँख बंद होने पर भी नींद किस कमबख्त को आती हैं
तु करवट बदल कर जब तकिये पे हाथ रखती हैं
जलन हमे तेरे तकिये से होती जाती हैं
तेरी बिखरी जुल्फे वो बड़ी बड़ी आँखें
ना पूछ क्या कहर ढाती हैं
आवाज़ आती हैं दिल से
पर होठो तक आकर रुक जाती हैं
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