Saturday, August 30, 2008

22nd august closing

तुम्हारी पलकों मे बसा हुआ ख्वाब हूँ मैं
रात अंधेरे मे जो साफ़ नज़र आता हूँ
वो ख्वाब से भी गहरा ख्याल हूँ मैं
तेरी यादें अब मुझे ऐसे तडपाती हैं
जैसे मछली पानी से गरम रेत पर आती हैं
तु तो चाँद पलो के लिए आती हैं
पर तेरे जाने के बाद नज़ारे बस उसी मोड़ पर टिक जाती हैं
रात सोने का ख्याल तो मैं अब छोड़ चूका हूँ
आँख बंद होने पर भी नींद किस कमबख्त को आती हैं
तु करवट बदल कर जब तकिये पे हाथ रखती हैं
जलन हमे तेरे तकिये से होती जाती हैं
तेरी बिखरी जुल्फे वो बड़ी बड़ी आँखें
ना पूछ क्या कहर ढाती हैं
आवाज़ आती हैं दिल से
पर होठो तक आकर रुक जाती हैं

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