Friday, August 15, 2008

30th july closing poem

ज़िन्दगी हैं छोटी हर पल मे खुश रहो
तुम ऑफिस मे खुश रहो तुम घर मे खुश रहो
आज पनीर की सब्जी नहीं टीफिन मे
तो दाल की सब्जी मे ही खुश रहो
आज जिम जाने का वक़्त नहीं
तो दो कदम चल कर ही खुश रहो
आज दोस्तों का साथ नहीं तो T.V. देखकर खुश रहो
घर जा नहीं सकते तो फ़ोन पे बात करके खुश रहो
आज कोई नाराज़ हैं तुमसे उसके इसी अंदाज़ मे खुश रहो
जो कभी देखा नहीं तो भाई उसकी आवाज़ से ही खुश रहो
जिसे पा नहीं सकते ज़िन्दगी मे कभी उसकी यादो से ही खुश रहो
MBA करने का सोचा था entrance clear नहीं हुआ
अरे उसके लिए मेहनत तो की ये सोच के खुश रहो
laptop ना मिला तो क्या ऑफिस के desktop मे खुश रहो
बीता हुआ कल जा चूका हैं उसकी मीठी यादो मे खुश रहो
आने वाले पल का पता नहीं कौन कब किधर चला जायेगा
जब तक तुम्हारे साथ हैं उस साथ के बारे मे सोचकर खुश रहो
हंसते हंसते ये पल बीतेंगे अपने आज मे भी खुश रहो
अपने कल मे भी खुश रहो
ज़िन्दगी हैं छोटी छोटे छोटे इन पालो मे भी खुश रहो

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