Saturday, October 4, 2008

30th september opening poem

तुम्हे और भी हैं चाहने वाले
तुम तो हमे भूल ही जाओगे
हम तो अब सिर्फ़ तेरे नाम से जिंदा हैं
तुम चली गई तो कैसे जी पायेंगे
तुम खुशबु सी कहीं न कहीं बिखर ही जोगी
हम भला कब तक तुझे अपने दिल मे छुपायेंगे
मेरी ख्वाहिश इतनी किहर रस्म तुझसे जुड़ी मैं अच्छे ने निभाऊ
पर क्या तुम प्यार की एक छोटी सी रस्म निभा पाओगी
अब न शिकायत करेगा ये दिल तुमसे
मिलेगा रोज़ हमसे पर हम अब कुछ न कह पायेंगे
(दिल मुझे रोज़ मिलेगा पर मैं उसे कुछ कह नही पाउँगा तेरे जाने के बाद )
पूछेगा गर खुदा मुझसे
(बहोत मानाने मे लगा हैं god मुझे )
पूछेगा खुदा मुझसे
क्या बनकर धड्कू मैं तेरे सीने मे हर पल
हर धड़कन मे बस हम तेरा ही नाम चाहेंगे
यादो से न कभी मेरी दूर जाना
तू हमेशा खुश रहना
यही दुआ बस उस खुदा से हम हर पल चाहेंगे

1 comment:

Anonymous said...

yaar ......... dont ever thnk k tumhe koi chhod k chala jayega ........... i know u hav loads to talk bt pata nhi tumhe kaun si cheez rokti hai bolne se ........ i tried many times tat u might tell ...bt tumhari poems compelete hote hue bhi adhuri si lagti hai smthing misses in ur poem ........bt still they r bst ....