Thursday, October 9, 2008

3rd october closing poem

कोई किसी की याद लिए कब तक यूँ तड़पता रहे
मेरे दिल की बात छोड़ ये तो तेरी याद से ही धड़कता हैं
कब किसी ने किसी के लिए ये जहाँ छोड़ा हैं
मेरी मिसाल बिल्कुल मत दे
मैंने तो तेरे लिए दुनिया का हर असूल तोडा हैं
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए
(बड़ी बेरुखी से जब कोई चला जाता हैं तो दिल बस यही कहता हैं कि)
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए कि कायनात में कब कहाँ किसी की कमी खलती हैं
मैं दीवाना सोचता रह गया कि
कैसे कही उससे
कि उसके होने से ही मेरी साँसे चलती हैं

1 comment:

Unknown said...

awsome yaar...u r a fabilous writer..maan gaye yaar..its really a heart touching poem superb..hmm..nd vaise bhi udaipur jaisi sunder jagah per rehkar to har koi shayer ho jaye...keep going..best wishes..