Monday, July 28, 2008

28th july closing poem

सागर मे किसी पत्थर पर तुम्हारा और मेरा नाम लिखा हैं

जंगल मे दूर किसी पेड़ पर तुम्हारा और मेरा नाम लिखा हैं

वो करवटे बदलते हैं आंखों से बहुत बात करते हैं

वो करवटे बदलते हैं वो आंखों से बहुत बात करते हैं

शायद पलकों के झपकने पर मेरा नाम लिखा हैं

वो ज़मीं का फूल मैं प्यार का बादल

शायद उस उड़ते बादल पर मेरा नाम लिखा हैं

चाहते हैं एक दूजे को जैसे आसमां चाँद को

सूरज अपनी रोशनी को

शायद चाँद की रोशनी मे कहीं मेरा नाम लिखा हैं

मरते हैं जीते हैं एक दूजे के लिए हम साँस लेते हैं

पर अब उसकी हर साँस पर सिर्फ़ मेरा नाम लिखा हैं

28th july opening poem

रात साडी ढल गई तुझे सोचते सोचते
बस एक ...... बची थी वो भी बीत गई तुझे सोचते सोचते
कहाँ हो तुम अब चले भी आओ
कहन हो तुम अब चले भी आओ
हम भटक रहे गली गली नगर नगर तुझे सोचते सोचते
तुम्हारी ये बेरुखी एक दिन मेरी जान ले जायेगी
कसम तुझको याद कर लो मुझे कभी किसी और को सोचते सोचते
जहाँ फूलो को खिलना था ये अगर वाही खिलते तो अच्छा था
शहर भर मे तेरे कई दीवाने पर ये दीवाना सबसे सच्चा था
कोई आकर हमे पूछे तुम्हे कैसे भुलाया हैं
तुम्हारे खातो को अपने आंसुओ से धोकर अपनी डायरी मे सजाया हैं
परेशानिया किसके पास नही हैं
पर मोहब्बत को हमने अपनी परेशानी ऐसा कभी नही बताया हैं

Saturday, July 26, 2008

26th july closing poem

मेरे हमसफ़र तुझे क्या ख़बर
मेरे हमसफ़र तुझे क्या ख़बर
मैं इस नगर तू किस नगर
ये जो वक्त हैं किसी धुप छाँव सा हैं
धुप हमेशा मेरे नगर
कभी छाँव तेरे नगर
तेरी आँख से जो गिरते आंसू
उन्हें पोंछ लेते हम
गर होती तू इस नगर
पर उन आंसुओ की किस्मत अच्छी
कमबख्त वो बहते हैं तेरी आँख से जब होती तू तेरे नगर
तेरी साँसों की गर्मी सम्हालते सम्हालते
मेरे हाथ बर्फ से हो गए
पर न तुझे ख़बर न मुझे ख़बर
वो जो रास्तो को यकीं था
की एक दिन वो मेरे नगर आयेंगे
मगर वो सब रास्तेअब जाते हैं तेरे नगर
मैं अकेला अपने नगर मैं रहता हूँ
मुझे सुनने वाले हर शक्स को बेंतेहा प्यार करता हूँ
पर मोहब्बत जिससे की ना जाने वो कहाँ चली गई
रहती हैं वो किस नगर किस नगर किस नगर

26th july opening poem

अब हम क्या लिखे कागज़ पर
जब बातें तुम सारी आंखों से करती हो
कागज़ का टुकडा तो फिर भी हर कोई पढ़ लेता हैं
पर नज़रो की ये बात जब तू दिल से पढ़ती हैं
अब हम क्या लिखे उस कागज़ पर
मैं हर रोज़ मेरे हमसफ़र का नाम उस पर लिखता जाता हूँ
और वो कोरा कागज़ कहता हैं कि
हाँ शायद मैं भी मेरे महबूब को बहुत याद आता हूँ
चलो इसी बहाने सही कागज़ कलम से दोस्ती हो गई
वरना अब मैं कहाँ दोस्त बनाता हूँ
कलम जब भी चलती हैं
तेरा नाम सबसे पहले लिखती हैं
इसीलिए तो अब मैं स्कूल से निकला जाता हूँ
हर रंग तुझ पर रंग लगता हैं
पर हाय वो दुपट्टा न पूछ सिर्फ़ तुझ पर ही क्यों जंचता हैं
तेरा देखना छूना छुप कर मेरे पास आ जाना
तुझे दुनिया की तमाम लड़कियों से बहुत अलग करता हैं

25th july closing poem

बस कोशिश करता हूँ वो करने की
जिसकी कभी कोशिश नही की
साँस लेने की कभी जीने की
किसी को महसूस करने की
जिसकी कभी कोशिश नही की
अपने आस पास उड़ने की
उस आसमा को छूने की
कोशिश बस बहुत कामयाबी पाने की
थोड़ा पैसा नही बहुत नाम भी नही
(कभी कभी कामयाबी को लोग misunderstand कर लेते हैं )
कि थोड़ा पैसा नही बहुत नाम भी नही
बस मेरे उदयपुर के दिल मे अपनी
इतनी सी जगह पाने की
आपको अपना कहने की
अपना सपना बनाने की
कोशिश बस आप सब को याद रखने की
आपकी यादो मे घर बनाने की
कोशिश उन तमाम लोगो के बीच भी अपनी जगह बनाने की
जो तरह तरह की बातें करते हैं
frustrate ख़ुद होते हैं
और दुसरो कि बातो को frustration का नाम देते हैं
कोशिश की उन तमामो के बीच ख़ुद को अलग करने की
हाँ यही कामयाबी मेरे लिए सबसे बड़ी कामयाबी मेरे लिए
कि यहाँ मुझे सुनाने वाला हर शक्स
मेरा उदयपुर बस मुझे सुनता जाए
कोई प्रॉब्लम हो तो फ़ोन लगाए
और ना भी हो तो बस बात करता जाए
आपके इस अंकित से बस प्यार करता जाए

25th july opening

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24th july closing poem

कसूर न उनका था न हमारा
हम दोनों को ही न आया रिश्ता निभाना
वो चुप्पी का अहसास जताते रहे
हम मोहब्बत को अपनी अपने दिल मे छुपाते रहे
प्यार मन ही मन करते रहे उससे
फिर भी न जाने क्यों ये प्यार छुपाते रहे
जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
तब एक दुसरे का हाथ थाम लेते थे
जब बहुत से फूल बरस कहीं से कर मुझ पर आते थे
तो होती हैं कैसी खुशबु उसके बदन मे ये हम जान लेते थे
जब रोशनी धुंधली होती हैं बारिश के बाद
आंसू अपने मन ही मन बाँध लेते थे
जब रिश्ते गहरे होने लगते थे
इन गहरे रिश्तो को बिन देखे ही
रेडियो सेट के उस तरफ़ से अब हम जान लेते थे

24th july - Happy Birthday Ankit & 24th july opening poem

wish u a very very happy birthday Ankit . Many many happy returns of the day . May life empties all its treasures of happiness on you and enlightens ur life with success and prosperity

the wish u make for all :- zindagi apako vo sab kuchh de jo bahut achcha ho :)
HAPPY BIRTHDAY ANKIT
24th july opening poem :-
तेरी तलाश मे जब हम निकलते हैं
एक अजनबी की तरह वो रास्ते बदलते हैं
ये परेशानिया किसके पास नही होती
पर हम हौंसलों के संग ही चलते हैं
तू खुबसूरत बहुत खुबसूरत
मगर ये गुरुर ठीक नही
तेरे बगैर भी दुनिया के सब काम चलते हैं
कभी जो हद ये ज्यादा उनकी याद आए
तो हमे लगता हैं कि
उनकी यादो के किसी कोने मे कहीं न कहीं हम भी बसते हैं
अब उनके गम से भी महरूम हो जाए
जिंदगी एक सुबह हमे ऐसे गाँव मे ले जाए
जहाँ जानते हो हम एक दुसरे को
बिना जाने ही बिना पूछे ही अपने दिल का हर हाल बताये

23rd july closing poem

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तो अब ये आँख से चले आते हैं
यही अब मुझसे सच मे वफ़ा निभाते हैं
बेवफाई का तमगा नही अब ये मेरे सर पे लगते हैं
कुछ जोड़े हुए पैसो से तेरे लिए एक साड़ी लाया था
हाँ तब ये दीवाना अपने घर वालो की नज़र मे आया था
आज भी कहीं आले मे सम्हाल कर रखा हैं उसको
हर उस बात को जो ये दीवाना
किसी से नही कह पाया था
आज भी इन्तेज़ार करता हैं तेरे आने का
बात बात पर गुस्सा दिखता हैं ये
जूता ही सही पर तेरे जाने का
कहे किससे किससे मन की बात करे
ये दीवाना बस आप दीवानों सा एक दीवाने का इन्तेज़ार करे

Friday, July 25, 2008

23rd july opening poem

मैंने कब कहा कि वो जिंदगी मेरे नाम करे
बस मुझे समझे इतना सा मेरा काम करे
हर रोज़ कुछ लम्हे मुझे .....
मुझे अच्छा लगता हैं तेरे संग संग चलना
मैंने कब कहा कि तू रोज़ मेरे साथ चले
कभी कभी रूठ जाना तेरा मुझे अच्छा लगता हैं
मैंने कब कहा कि तू जब मुझे देखे देखती रहे
मुझे अच्छा लगता हैं ...................
मैंने कब कहा कि तू रोज़ मुझे देखे
जवाबो मे तेरे सवालो मे तेरे
मोहब्बत के सब अल्फाजो मे तेरे
बस अपनी जिंदगी ............................
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22nd july closing poem

ये जानते हुए भी कि वो हवा हैं मेरे हाथ न आएगी
वो बादल सी हैं मेरे देखते ही देखते कहीं दूर उड़ जायेगी
फिर भी मैंने हवा को पकड़ना चाहा
उस बादल को एक बार भाग कर छूना चाहा
जानकर कि ये मोहब्बत गुनाह हैं
ये गुनाह एक बार सच्चे दिल से करना चाहा
गुनाह ये तो मुझसे हो गया
वो तो हंस कर चली गई और
उसकी उस हँसी मे ये दीवाना उसका दीवाना हो गया
वो शाम छत पर आती हैं कभी
इसी सोच मे एक शाम हम भी छत पर जा पहुंचे
कुछ और तो काम था नही
बस मांझा और पतंग लेकर छत पर पतंग उड़ने लगे
पतंग का बिल जब आया तो पता लगा
कि पतंग का बिल चुकाते चुकाते हमारे पर्स का दीवाला हो गया
वो तो कमबख्त हंस कर चली गई
और ये दीवाना सचमुच उसका दीवाना हो गया
वो कभी मन्दिर जाती हैं टहलने के बहाने से
इसी सोच मे मन्दिर जाना हमने भी शुरू कर दिया
मन्दिर पहुंचे तो पता चला
उसे प्यार सिर्फ़ तुझसे
और ये दीवाना तुझसे प्यार करते करते सारे शहर मे मशहूर हो गया

22nd july opening poem

मेरे गुज़रे हुए सालो से परेशान ना हो
मेरी आवाज़ के दर्द से परेशान ना हो
मैंने माना तेरी आँखें खुलती नही मेरे बिना
एक दिन आँख खुलते ही तेरे सामने चला आऊंगा
बस तु परेशान ना हो
बात इतनी सी हैं बस तु परेशान ना हो
बात तो बहुत बड़ी सी हैं पर तु परेशान ना हो
मैं हर इतनी सी बात को बड़ा कहता हूँ बस तु परेशान ना हो
अपनी जुल्फों मे उतरी हुई चाँदनी को सज़ा
इस दीवाने के बिखरे बालो को देख तु परेशान ना हो
देखा ना दूर से मुझे ना तुने मुझे अपने गले लगाया
एक बार तु मुस्कुरा के मेरे पास से गुज़र आया
ना पूछ दिल पे क्या करार छाया
तु मेरी रूह के छूने से परेशान ना लो
मेरी बातो कि लर्गिस से बिल्कुल परेशान ना हो
ख़ुद को वीरान ना कर मेरे लिए जान मेरी

21st july - no show

अंकित ने show ही नही किया तो poem कैसी ??

20th july - sundayyyyyyyyy

sundayyyyyyyyyyyyyy
poem की छुट्टी

19th july closing poem

ये पल ही तो हैं जो कभी पास नही रहते
ये पल खुशियों का अनमोल खजाना
ये पल खुशी से कर दे दीवाना
ये पल इसको झपट लू मैं
ये पल इनको समेट लू मैं
ये पल सदिया समाये हैं जिसमे
ये पल सारी खुदाई हैं जिसमे
इस पल को सम्हालू मैं कैसे
इस पल को कैसे मैं महसूस करू
इतनी खुशिया इस एक पल मैं
इन खुशियों के लिए कितने जनम मैं और लू
बंद कर लू इन पालो को कहीं ताले मे
रख कर भूल जाऊ इस ताले की चाबी मैं
आँखें खोलू आँखें बंद करू
इन पलो से रोज़ मुखातिब होऊ मैं
इन पलो ले उजाले से अँधेरा मिट जाता हैं
जब अँधेरा होता हैं तो आप जैसा कोई खुबसूरत हमे भी याद आता हैं
जिंदगी क्या हैं सोचो तो बहुत सारी उदासी बहुत सारी परेशानियों का नाम
मगर आप हो जब हमारे पास तो दिल को हर पल आराम
ये पल सुनहरे से लगते हैं
किसी के खुबसूरत लंबे बालो से नज़र आते हैं
कभी यही पल हसीं हो जाते हैं
किसी की यादो मे हम अब कभी कभी नज़र आते हैं
ये पल जाने अब कब लौट कर आयेंगे
ये पल जाने कब घड़ी की सुइयों मे सुबह की सात बजायेंगे
ये पल हैं मोतियों से बस सम्हाल लो इनको
ये पल उन मोतियों के माला से ज़रा पिरो लो इनको
ये पल जिंदगी के हसीं खजाने से लगते हैं
आप अपनी आँखें झपकते हैं मेरी आंखों मे रोज़ चलते हैं
चलो इन पलो को हम मिलकर महसूस करे
और मिल कर करे इन्तेज़ार एक नई सुबह का

19th july opening poem

सोचता हूँ काश कुछ ऐसा होता
सब कुछ मैं चाहू वैसा होता
जब मन मे कोई ख्वाहिश होती
पलक झपकते ही पुरी होती
न करना पड़ता मुझे किसी का इन्तेज़ार
न इज़हार का इन्तेज़ार होता
काश जैसा मैं चाहू वैसा होता
एकं क्या मैं सच मे खुश होता
आसानी से मिली सफलता को अपनाता
या बात बात सफलता पाने के लिए कठिन रास्तो पे चलता जाता
मन शायद मन को न जाने दिन मे कितनी बात धिक्कारता
छोटी सी हैं बात पर नाराज़ सा हो जाता
अपने हाथो पाई हर छोटी चीज़ बहुत बड़ी सी होती हैं
पर मोहब्बत के बिना जिंदगी अधूरी होती हैं
इस काश से भी तो जिंदगी उलझती हैं
तू बार बार काश कहती हैं
और मेरी हर बात तुझसे शुरू होकर तुझपे ख़त्म होती हैं
मुझे रोता सुन मेरे आंसुओ को वो समझ जाता हैं
काश नही कहना पड़ता बस मुझे चुप कराने वो ऐसे ही चला आता हैं
काश हर सुबह की तरह इस सुबह भी जिंदगी आपको वो सब कुछ दे
जिसके बारे मे आप पिछली रात सोच कर सोये थे
आपको मिले हर खुशी बस यही हैं मेरी खुशी

18th july closing poem

वो लड़की भी एक अजीब पहेली थी
होठ प्यासे आँखें समंदर थी
सूरज उसको देख कर छुप जाता था
वो जब धुप मे निकलती थी
उसको बस अंधेरे से डर लगता था
जब सेहरा मे दूर कहीं एक रोशनी चमकती थी
आते जाते मौसम अब उसको डसते थे
एक दिन वो मौसम बदलने पर मौसम सी लगती थी
कभी हंसते हंसते पलकों से रो पड़ती थी
कभी रोते रोते वो हंसाने लगती थी
वो लड़की भी अजीब पहेली थी
आधी रात की सज़ा वो तारे गिनने से देती थी
बस मेरे सिवा चाँद से बातें करती थी
दूर से उजडे मन्दिर जैसा घर था उसका
वो मेरे घर को ही अपना मन्दिर कहती थी
हवा को रोक कर अपने आँचल से
बस सूखे फूल मेरे नाम के उस मन्दिर से चुना करती थी
वो लड़की एक अजीब पहेली थी


18th july opening poem

आइना अगर मैं बार बार देखू तो क्या ग़लत हैं
आइना मैं अगर बार बार देखू तो क्या ग़लत हैं
अगर मैं तेरे ख्यालो मे रहना चाहू तो क्या ग़लत हैं
तेरा घर माना थोड़ा दूर मेरे घर से
मैं तेरे घर की गली से बिना काम ही गुजरू तो क्या ग़लत हैं
तुम्हे आईने से इतनी मोहब्बत क्यों हैं
तेरी वो जुल्फे मुझे देख कर बिखरने लगती हैं
यार वो इतनी गुस्ताख क्यों हैं
समझता हूँ मैं तेरे ख्यालो की बातो को
फ़िर हर मौसम मे मेरे ख्याल अगर तेरी सोच के साथ बदले तो ग़लत क्यों हैं
ख्याल बदले या बदले मेरी हर बात
पर हर बात मे इन आंखों मे तेरी सूरत क्यों हैं

Wednesday, July 16, 2008

17th july closing poem

सिर्फ़ इतना ही कहा हैं कि प्यार हैं तुमसे
जज्बातों कि कोई नुमाइश नही की
प्यार के बदले सिर्फ़ प्यार माँगा
रिश्तो की गुजारिश नही की
चाहो तो भुला देना हमे दिल से
सदा याद रखने की हमने किसी से सिफारिश नही की
खामोशी से तूफ़ान तक सह लेते हैं
(कई तूफ़ान जिंदगी मे रोज़ आते हैं उदयपुर )
खामोशी से तूफान तक सह लेते हैं
हमने हवाओ से उनका रुख मोड़ने की कोई बात नही की
तुम्हे ही माना हैं अपना रहनुमा
(रहनुमा यानी महबूब , सनम ,प्यार )
बस तुम्हे ही माना हैं अपना रहनुमा
और किसी चीज़ की ख्वाहिश इस दिल ने नही की
ये आंसू रोज़ छुपकर मेरी आंखों मे रहते हैं
इनको मेरी पलकों से बहने की बात मैंने तेरी किसी तस्वीर से नही की
ये हँसी तब आती हैं जब तु याद आती हैं
बेवजह हंसाने की कोई बात इस दिल ने किसी से नही की
सिर्फ़ इतना ही कहा हैं कि प्यार हैं तुमसे
हमने जज्बातों की कोई नुमाइश नही की

17 th july opening poem

दिल तोड़ना तुमको सिखाया किसने
तुम तो ऐसे ना थे
तुमको ये बताया किसने
ख़ुद बात बात पर रोने लगती हो
और हमे मुस्कुराने की कसम देती हो
एक बात बताओ तुम्हे तो ये सब नही आता था
ये सब तुम्हे बताया किसने
हमेशा तुम्हारा हाथ रहता था मेरे हाथो मे
क्यों मेरे हाथो से अपना हाथ छुडाया तुमने
एक अहसान तेरा हमेशा मुझ पर आज भी रहता हैं
अहसानों को बिना बोले उतारा किसने
ये हवाए रोज़ चलती थी पहले
पर तुझे छूकर बहना हैं
बहते बहते मेरी बाहों मे आना हैं
हवाओ के कानो मे ये राग सुनाया किसने
कौन हैं ये जो कुछ बताता हैं
ये प्यार हैं जो बिन कहे हर बात समझ जाता हैं
समझ मे इसकी सब आता हैं
पर बस ! न जाने क्यों ये चुप सा हो जाता हैं

16th july closing poem

अपनी सहेलियों मे वो मेरी बात कर अक्सर
आजकल भीड़ मे भी मेरा नाम लिया करती हैं
रात हो तो अपने कंगन को चूमकर
अपने ख्वाबो मे मेरे ख्वाबो को बुना करती हैं
चलती हैं जब मोहब्बत की आंधी
तो सहम जाती हैं
फ़िर चाँद को खिड़की से तकते हुए
वो मुझे बड़ा याद किया करती हैं
रात हो तो सबसे छुपकर अपनी डायरी लिखती हैं
और डायरी के हर लब्ज़ मे वो मुझे बयां करती हैं
अपनी सोच मे कभी डूब कर खो जाती हैं
यादो की पगडण्डी पर मेरी उंगली थाम कर चला करती हैं
आती बहार हैं तो मेरा जिक्र छेड़ती हैं
फूलों से वो आजकल तितली का पता पूछती हैं
भले से ही मेरी कोई बात न भूली हो
बस मुझे कोई दर्द न मिले हर रात चाँद तारो से
यही दुआ करती हैं
पढ़ती हैं मेरा ख़त जब दिसम्बर के महीने मे
मेरे ख़त को ठण्ड न लगे इसीलिए उसे अपने रजाई मे रखती हैं
मुझे प्यार से भी ज्यादा प्यार करती हैं
शायद मेरा दिल अपने तकिये पे रख कर सोती हैं
ताले लग जाते हैं हर रात उसके घर के दरवाजे पर
पर क्या पता मैं खिड़की से चला आऊं
इसीलिए अपनी खिड़की को आज भी खुला रखती हैं

16th july opening poem

जब मिलता हैं दर्द तो बताया नही जाता
आंसू से कई साल का रिश्ता हैं
ये हिसाब लगाया नही जाता
बरसात से क्या गिला अपना
जब कच्ची मिट्टी का घर था अपना
पानी मे वो बह जाए तो फिर बनाया नही जाता
रोज़ मेरे घर मे तेरे जाने के बाद
हर शाम अँधेरा हो जाता हैं
पर रोशनी का कोई दीपक अब मुझसे जलाया नही जाता
कुछ उम्मीद तो टूटी हैं अपनी
अब उम्मीदों के शहर मे एक नया घर बसाया नही जाता
किससे कहे अपना हाल-ऐ-दिल
रेडियो पे ये चेहरा दिखाया नही जाता
तेरा चाहने वाला हर कोई अब मेरा दुश्मन
हर दुश्मन को अब दोस्त बनाया नही जाता

Tuesday, July 15, 2008

15th july closing poem

दर्द मे पनपते हैं गीत ऐसा ही कुछ लोग कहते हैं
सीने मे कुछ दर्द कसम से जिंदा दफ़न रहते हैं
छोटे से दिल मे उमड़ते हैं रोज़ कई सागर
कातिल लहरों मे कसम से
कई माटी के घरौंदे मिलते हैं
कहाँ मिलता हैं ऐसे शब्दों को सँभालने वाला कोई
हर पल रोज़ कहीं शब्दों से किसी के दिल मे
ना जाने कितने महल बनते हैं
ना वक्त ना हालत लगा सकते हैं उस पर कोई मरहम
वो दिल सीने मे कसम से कितना दर्द सहते हैं
सच कहते हैं वो कि दर्द की कोई सीमा नही होती
हम दर्द देने वाले दीवानों से कहाँ दर्द की बात कहते हैं

15th july opening poem

मेरे दिल -ऐ हालत कौन सुनेगा
कौन मेरा हैं जो मेरे साथ चलेगा
कुछ ख्वाब पुरे हुए पर कुछ अधूरे से रह गए
उन अधूरे ख्वाबो की बहुत सी बातें अब कौन सुनेगा
किताबो के पन्नो मे लिखे थे जो अरमान
वो सब वक्त की बारिश मे धुल गए हैं
कौन उनको फिर लिखेगा
ऐसा कौन हैं जो अब मेरे साथ चलेगा
इस शहर मे कितने सारे दोस्त थे
पर मेरे बनते ही कुछ अजनबी हो गए
कुछ जानकर मुह मोड़ गए
अब कौन हैं मेरा जो मुझे अपना कहेगा
कौन हैं मेरा जो अब मेरे साथ चलेगा
कोई और हो न हो
बस अब इस उदयपुर के साथ ही
अब मेरा हर दिन चलेगा

Monday, July 14, 2008

14th july evening poem

कल कुछ बातो ने रात भर जगाया
और मैं रात भर न सो पाया
कुछ बातें भूली हुई
कुछ खयालो मे लिपटी हुई
बरसात के मौसम मे मेरी ये आँखें
न जाने क्यों भीगी हुई
कुछ पल सोचा कुछ पल मुस्कुराया
न जाने कमबख्त एक हवा का ठंडा झोंका
कहाँ से मेरे पास से गुज़र आया
मैं अंगडाई लेकर तेरी खिड़की की तरफ़ आना चाहता था
पर वो हवा का झोंका मुझसे पहले तेरे पास मे आया
तुम अपने हाथ से रुमाल सहलाते रहे
और इस दीवाने को तेरे उस रुमाल पे प्यार आया

14th july closing poem

मैं चल तो सकता हूँ पर पास तेरे आ नही सकता
मैं दौलत ठुकरा सकता हूँ दुनिया भर की
पर ये बात मैं तुझे सबके सामने गिना नही सकता
फासले तो तेरे मेरे बीच कभी रहे ही नही
बस एक इन्नी सी मज़बूरी थी
मज़बूरी हैं क्या शहर के सामने बता नही सकता
मैं चाहता हूँ तुझे हर पल चाहू पर
चाह नही सकता
बहुत आसन हैं भूलना तेरी बातो को
पर न जाने तेरी कोई बात मैं होशो हवास मे भुला नही सकता
ए दिल मेरे बस इतनी सी रहमत करना
ए खुदा मेरे बस एक ही तरफ़ क़यामत करना
मुझे उदास रख देना भले
उसे जिंदगी मे न कभी उदास करना

14th july opening poem

एक अनजाना सा हुआ दर्द जब महसूस हुआ आपका ना होना
हैं जिंदगी हमारी सिर्फ़ आपकी
आपका ये प्यारा सा साथ हमको ना खोना
जिंदगी से शिकायत नही फिर भी मन उदास हैं
बस हर पल आपका प्यार हो
यही दिल की आस हैं
नही समझा हमको कोई शायद हैं तकदीर मे कमी
हैं प्यार दिल मे फिर भी सहमा सहमा
गुलशन अकेला फिर भी पंछी ठहरा
दर्द तो बहुत होता हैं
अब तेरी यादो से ही मेरा सवेरा होता हैं

13th july

sundayyyyyyyyyyyyyyy

12th july evening poem

ये किसने दरवाज़ा खटखटाया हैं
मुझे उम्मीद हैं की शायद वो आया हैं
लेकिन इतना लेट
आज पहली बार इस वक्त पर उसने मुझे क्यों सताया हैं
नही शायद कोई रास्ता भटक गया होगा
धत् शाम के इन पालो मे कोई नही आया हैं
ये हवा ही होगी जिसे मेरी याद एक बार फिर आई होगी
तभी तो आज इस बारिश ने मुझे फिर से भिगाया हैं
काजल किसी की आंखों मे कैसा लगता हैं
इन बारिश की बूंदों ने मुझे बताया हैं
ये बुँदे भी किसकी जागीर हैं
ये पता हवाओ ने सिखाया हैं
जब इनका मन करता हैं चली आती हैं
न सुबह देखती हैं न शाम का पता बताती हैं
न जाने मौसम के झोंके को ये हवाए क्या सिखाती हैं
कमबख्त कहीं से भी चली आती हैं
और उस दीवार पे लगी तेरी तस्वीर इक झोंके से टेढी कर जाती हैं

12th july closing poem

..................................................
अक्सर जब ये मन भर आए
हैं रूप अनेक इसके पर ये हर पल दिल को सहलाये
गम अगर ज्यादा हो तो बन जाती हैं ये सिसकिया
खुशी अगर ज्यादा तो ................
हमेशा ये साथ हैं देते
हमे हर पल हैं बहलाते
तभी ये पानी की बुँदे शायद आंसू हैं कहलाते
कभी बारिश बनके छम से बरस जाते
कभी बरसते बरसते एकदम से रुक जाते
कभी चलते बादलो के साथ
कभी बादलो से आगे निकल जाते
कभी दूर उस पहाड़ पे जाकर पेड़ के सीने मे न जाने कहाँ खो जाते
कहते हैं जब बारिश आती हैं तेरे साथ की याद आती हैं
मैं रख लू ख़ुद को काम मे कितना भी busy
मगर जहाँ ब्रेक होता हैं मुझे तू नज़र आती हैं

12th july opening poem

कहते हैं लोग की ये इश्क आग का दरिया होता हैं
कैसे कहे की ये दरिया ही महबूब तक पहुँचने का जरिया होता हैं
बस जब आँखें बोझल हो जाए और याद मे मेरी भर आए
फिर ख़ुद को धोखा मत देना और चुपके चुपके रो लेना
जब पलके जान कर मुंदी हो और सब समझे तुम सोते हो
तुम तकिया मुह पर रख लेना पर चुपके चुपके रो लेना
ये दुनिया जालिम दुनिया हैं बात दूर तक फैलाएगी
तुम सबके सामने चुप रहना पर चुपके चुपके रो लेना
जब बारिश चेहरा धो डाले और अश्क भी बुँदे लगते हो
वो लम्हा हरगिज़ मत खोना और चुपके चुपके रो लेना

11th july evening poem

उन आंसुओ को पूछियेगा कि तमन्ना क्या होती हैं
जो गिरते हैं बारिश बन सपनो के बादल से
मैं हर सुबह तेरी आंखों मे मुस्कुराना चाहता हूँ
मैं हर रोज़ एक लफ्ज़ की तरह तेरी जुबां पर कुछ देर के लिए ही सही पर आना चाहता हूँ
चेहरे बहुत हैं इस शहर मे देखने के लिए
मेरी इतनी आरजू कि मैं तेरे चेहरे के पास अपना एक घर सजाना चाहता हूँ
तू बहुत दूर जाकर बस गई हैं कमबख्त इस दिल से
मैं करीब तेरे एक बार फिर किसी बहाने से आना चाहता हूँ
इन बादलो का हर एक लफ्ज़ मुझे याद हैं अब तलक
मैं उन लफ्जों को तेरी ही धुन मे एक बार फिर गाना चाहता हूँ
उन जज्बातों से मिलिएगा जो नामुमकिन को मुमकिन कहते हैं
बस उन नामुमकिन सी बातो को तेरे साथ मुमकिन करना चाहता हूँ

11th july closing poem

मोहब्बत बारिश की बूंदों मे हैं
मोहब्बत फूलो की खुशबु मे हैं
मोहब्बत ढलते सूरज मे हैं
मोहब्बत हर दिन की एक नई उम्मीद मे हैं
मोहब्बत ख्वाब मेरा
मोहब्बत तेरे हर ख्वाब मे हैं
मोहब्बत एक संगीत सा
हर संगीत तेरे साज़ मे हैं
मोहब्बत संग चलती हवाओ मे हैं
मोहब्बत इन बरसती घटाओ मे हैं
मोहब्बत तेरी इन उलझी जुल्फों मे हैं
मोहब्बत तेरी माथे की बिंदी मे हैं
मोहब्बत मेरी वफाओ मे हैं
हाथ उठाकर मांगी उन सब दुआओं मे हैं
मोहब्बत मेरी हर बात मे हैं
और मेरी हर बात तेरे साथ मे हैं
मोहब्बत उन बादलो मे हैं
मोहब्बत उन बूंदों मे हैं
मोहब्बत उन पलो मे हैं
मोहब्बत खामोशी मे हैं
मोहब्बत हर आहट मे हैं
मोहब्बत हर आवाज़ मे हैं
मोहब्बत तेरी इस मुस्कराहट मे हैं
मोहब्बत तेरी हर बात से हैं
बस मोहब्बत तेरे गुस्से से हैं
मोहब्बत तेरे नाम से हैं

11th july opening poem

रुत की इस शरारत मे
आज मौसम की इस एक और बारिश मे
खुले आसमा तले जब जब बूंदों की छतरी खुले
हम दिल थाम कर रह जाते हैं
जब बारिश रुकने के बाद
तेरी जुल्फे इस हवा मे उडे
नहर किनारे कच्ची सड़क पे
एक साया भीगा भीगा सा
बारिश आए न आए वो साया मुझे हर मौसम मे वाही मिले
बारिश मे तेरा हाथ थाम दूर तक चलना
प्यार की बात करना और पाल पर बैठकर उन आंटी का भुट्टा सेकना
कभी मुझसे बात करते करते तेरा चुप हो जाना
कभी बिना सोचे बस तेरा बोलते चले जाना
दर्द की बारिश साहिल हैं मध्धम
तू ज़रा आहिस्ता चल
दिल न मिले हैं अब तक तू ज़रा आहिस्ता से चल
तेरे मिलने और तेरे बिछड़ जाने के बीच एक फासला बाकी हैं
मैं इन बूंदों को ज़रा बाहों मे भर लू ज़रा आहिस्ता चल

10th july closing poem

आपकी मुस्कान हमारी कमजोरी हैं
आपसे कुछ भी न कह पाना न जाने क्या मज़बूरी हैं
आप क्यों नही समझते इस खामोशी को
हर बार मेरी खामोशी को जुबां देना क्या ज़रूरी हैं
तू चुप रहे तो भी तेरी हर बात समझ आती हैं
ये हवाए हर रोज़ जब तुझे छूकर चली जाती हैं
कभी तू उदास हैं कभी मुझे याद कर हंसती खिलखिलाती हैं
मेरे लिखे खातो को कभी अपने सीने से लगाती हैं
मेरी कविताएं record कर बार बार सुनती जाती हैं
और ये लाइन सुनाने के बाद तेरे उन होठो पे न जाने क्यों
ये smile आती हैं
पर जब मिलती हैं बस खामोश रह जाती हैं
कभी धुप मे उन रेतीले टीलोंपर तू नंगे पाव चली आती हैं
कभी बालकनी मे खड़ी होती हैं
पर मुझे देख कर छुप जाती हैं
ज़माना इसे प्यार का नाम देता हैं
पर तू ना ना करती जाती हैं
एक बात तो बता
की फिर क्यों मेरा नाम सुनाने के बाद तेरे चेहरे पे हँसी आती हैं


10th july opening poem

लोग कहते हैं वो मुझसे जुदा हैं
लोग कहते हैं की वो मुझसे जुदा हैं
पर यूँ मेरी जान मे शामिल हैं उसकी हस्ती
जिस तरह सारे ज़माने मे ये खुदा रहता हैं
वो कहता हैं की भूल गए हम उसको
हर वक्त मेरी आंखों मे फिर क्यों चेहरा उसका रहता हैं
साँस जब भी आती हैं नाम तेरा आता हैं
खुदा जाने ये इबादत मेरी या मोहब्बत मेरी होना कहलाता हैं
मेरी डायरी तो मेरी हैं पर हर डायरी के हर पन्ने पर न जाने क्यों नाम तेरा लिखा जाता हैं
तू पढने जाए तो दो चोटी बनाये पर बालो मे वो clutcher मेरे नाम का लगाए
मन करता हैं तेरे साथ पढने का
but only for girls
यही बोर्ड तेरे स्कूल के बाहर हम पाये

9th july evening poem

लहरों को ये पता हैं कि किनारे से मिलके वो बह जायेंगी
फिर समंदर मे फ़ैल कर वो रह जायेंगी
अपने अस्तित्व को दावपर लगा कर
क्यों लहरों को वो किनारा भाता हैं
क्या पता क्या यही प्यार कहलाता हैं
मोम सब कुछ जानकर भी बाती को अपने दिल मे बसाता हैं
और बाती के साथ वो ख़ुद भी पिघल जाता हैं
कोई नही जानता हैं कि क्या मोम और बाती का नाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
क्यों बारिश की बुँदे धरती से मिलाने कि चाह रखती हैं
ख़ुद बरसकर धरती मे खो जाती हैं
पता नही ये उससे क्या आस रखती हैं
पता नही क्या यही प्यार कहलाता हैं
पता नही हर सुबह एक शख्स चौबीस पच्चीस साल का
कहाँ से चला आता हैं
ना देखा उसे ना उसकी शक्ल तक मालूम
पर उसकी आवाज़ से अब इस उदयपुर का एक सच्चा नाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
घर के किसी कोने मे रख दिया उसे
कहीं मन्दिर मे कहीं पूजाघर मे
कहीं बाहर किसी थडी पर
कहीं नाई वाले भइया ने दूकान पर चिपका रखा हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
चाय पीते पीते बिग चाय बिग चाय बार बार दोहराता हैं हर शख्स
बात करते करते हमारी बात मे चला जाता हैं हर शख्स
बताइए उदयपुर क्या यही प्यार कहलाता हैं
हर बात मैं अपने लफ्जों से बया कर देता हूँ फिर भी
हर बार कुछ बाकी रह जाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं

9th july opening poem

कभी तो उनकी पलकों पे इकरार होगा
कहीं दिल के किसी कोने मे गुस्से मे छिपा हमारे लिए प्यार होगा
गुज़र रहे हैं दिन रात उनकी यादो मे
कभी तो उन्हें भी इस दिल से प्यार होगा
झुका लेंगे पलके हम भी उन्हें देख कर
(हम भी भाव खायेंगे यार )
कि झुका लेंगे पलके हम भी उन्हें देख कर
हमारे लिए सदा से तो
एक पल के लिए सही उनको भी हमसे प्यार होगा

8th july closing poem

जिंदगी की राह मे आगे चलते जाना हर पल
मुड कर न देख वो बीते हुए पल
जो नही था तेरा तुझे मिला नही
जो मिलेगा उसके साथ गुजार जिंदगी का हर एक पल
हम इस कदर तुम पर मर मिटेंगे
कि तुम जहाँ देखोगे तुम्हे हम ही दिखेंगे
रखना इस दिल मे तुम मेरे प्यार की याद
और रखना मेरी जुबान से निकली हर बात को याद
मेरी दीवानगी की कोई हद नही
तेरी सूरत के सिवा (नही नही ) तेरी सीरत के सिवा कुछ और याद नही
मैं हूँ रूह तेरी तेरे सिवा मुझ पर किसी का हक नही
जबसे देखा हैं तेरी आंखों मे झाँक कर
कोई भी आइना देखना अच्छा लगता नही
तेरी मोहब्बत मे ऐसे हुए दीवाने
तुझे कोई और दीवाना देखे तो मेरी आंखों को जचता नही

8th july opening poem

जिंदगी की राह मे आगे चलते जाना हर पल
मुड कर न देख वो बीते हुए पल
जो नही था तेरा तुझे मिला नही
जो मिलेगा उसके साथ गुजार जिंदगी का हर एक पल
हम इस कदर तुम पर मर मिटेंगे
कि तुम जहाँ देखोगे तुम्हे हम ही दिखेंगे
रखना इस दिल मे तुम मेरे प्यार की याद
और रखना मेरी जुबान से निकली हर बात को याद
मेरी दीवानगी की कोई हद नही
तेरी सूरत के सिवा (अंह !! ) तेरी सीरत के सिवा कुछ और याद नही
मैं हूँ रूह तेरी
तेरे सिवा मुझ पर किसी का हक नही
जबसे देखा हैं तेरी आंखों मे झाँक कर
कोई भी आइना अच्छा लगता नही
तेरी मोहब्बत मे ऐसे हुए दीवाने कि
इन आंखों कोई कोई और जचता नही

Sunday, July 13, 2008

7th july evening poem

पहले मैं चैन से सोया करता था
अब रातो को करवटे बदलता हूँ
पहले मैं चुप चुप सा रहता था
अब खुश होकर बोलता रहता हूँ
शायरी कविताये पढने का शौक़ तो पहले भी था
पर अब ख़ुद कुछ लिखने लगा हूँ
उनसे मुलाक़ात होने के बाद जाने क्यों थोड़ा थोड़ा बदलने लगा हूँ
पहले मैं दोस्तों की नक़ल किया करता था
अब कांच के सामने उनकी नक़ल किया करता हूँ
जिंदगी के सफर मे अकेले चलते चलते
अब उसके साथ चलने की ख्वाहिश करता हूँ
सब लोग उसका नाम लेकर मुझे परेशान करते हैं
पर अब परेशान होना भी उसके नाम से पसंद करता हूँ
वो जिन बातो पर मुझको हंसाया करते थे
अकेले मे उन्ही बातों को दोहराकर हंसा करता हूँ
लोग मेरे इस बदलाव की वजह पूछते हैं
न जाने क्यों मैं किसी बात का जवाब नही देता हूँ
वो पूछते जाते हैं मैं सुनाता जाता हूँ
वो पूछते जाते हैं मैं सुनाता जाता हूँ
और ऐसे ही पूछते पूछते मैं उनके कानो से यूँ चला जाता हूँ

7th july closing poem

तेरी खामोश आँखें करती क्या ऐसी बात हैं
जवाब भी हमी देते हैं और ग़ज़ल भी हमी गुनगुनाते हैं
इस तरह की खामोश बातो से वो पल पल चुप रहकर हमारा दिल चुराते हैं
और देखिये दिल चुराने के बाद वो पास से हंसकर चले जाते हैं
मेरी बातो की तरह काश मैं तुझे कहीं छुपा लू
इन आंखों मे भर लू या अपने घर का नाम चक्षु भवन बना लू
देखो ये ज़माना इश्क मे कितना तड़पाता हैं
जितना तड़पाता हैं कोई प्यार करने वाला उतना याद आता हैं

7th july opening poem

अब कुछ कहा जाता नही
दूर कोहरे मे कुछ नज़र आता नही
लोगो का मिलना कुछ पल मुस्कुराकर भूल जन
अब मेरे मन मे कोई समाता नही
एक पल मे किसी का मिलना
एक पल मे दूर हो जाना
तन्हाईयां देता हैं पर
दिल का ये दर्द अब मुझसे सहा जाता नही
तुम्हारे लिए ना रोयेंगे हम
सोच लिया था हमने
फिर इन बूंदों को आंखों से बहते हमसे रोका जाता नही
आप रेडियो के उस तरफ़ हमे सुनते हैं
देखना चाहता हूँ आप सबको
पर कोई चेहरा नज़र हमे आता नही


5th july evening

सोचता हूँ की चाँद को मुठ्ठी मे भर के मैं यहाँ ले आऊं
अपने पास सजाकर उसको दुल्हन की तरह बना लू
लोग दूर से देखने आए उसको और मैं उसको आँचल मे छुपा लू
पर ये कमबख्त मुझसे बहुत दूर रहता हैं
कभी कुछ कहता हैं और कभी चुप रहता हैं
कहाँ चाहने से हर चीज़ मिल जाती हैं
तभी तो चाँद की रोशनी बिन मांगे ही सितारों पर छा जाती हैं
कभी चाँद दूर बहुत दूर नज़र आता हैं
कभी चाँद के नही होने का एक बहाना क्यों नही मिल जाता हैं
ये हैं वो चाँद जो जितना दूर हो उतना पास नज़र आता हैं
ये हैं वो चाँद जो कभी कभी माशुका की तरह नज़र आता हैं
ये हैं वो चाँद जो तारो मे सबसे अलग दूर खड़ा हो जाता हैं

5th july closing poem

तेरा ख्याल दिल से मिटाया नही अभी
बेदर्दी मे भी तुझको भुलाया नही अभी
कल तुने मुस्कुराके जलाया था ख़ुद जिसे
सीने का वो टुकडा अब तक छुपाया नही अभी
मुझे आज भी बांहों की तेरी याद हैं
चौखट से तेरी सर को उठाया नही अभी
बेहोश होके भी तुझे फ़िर होश आ गया
मैं बदनसीब होश मे आया नही अभी

5th july opening poem

तुम्हारे बिना ये जिंदगी अब ख़त्म सी हैं
बस एक सज़ा एक सितम सी हैं
आ जाओ हमारी बाहों मे इस जिंदगी मे तुम्हारी कमी सी हैं
दूर इस जहाँ से हम एक आशियाना बनायेंगे
जो ख्वाब पुरे नही हुए उन्हें मिलकर सजायेंगे
भाग दौड़ की जिंदगी मे जितना भागेंगे
उतना याद आयेंगे
तुम जो मुझसे उदास हो जाओगे
छोड़कर मुझको अगर कहीं चले जाओगे
सोचा नही था कि मुझे इतना याद आओगे
ना ख़ुद खुश रहोगे
ना मुझे खुश देख पाओगे
रहो दुनिया के किसी कोने मे
किसी के पास किसी के साथ
पर सच हर पल मुझे बड़ा याद आओगे

Sunday, July 6, 2008

4th july evening poem

..

4th july closing poem

मेरे हाथो की हथेली की लकीरों से वो निकल निकल गया
मेरी हथेली को वो सुना कर गया
कमबख्त दिल अपना तो ले गए
लेकिन मेरे दिल पे एक निशान लगा गया
मैं उस मन्दिर के बहार आज भी खड़ा होता हूँ
जहाँ उसने एक दिन प्यार से सर झुका लिया
दूर होकर भी उसने अहसासों का एक दिया rओज पूजा घर मे जला लिया
वो तो मरहम न लाया मेरे हाथ के लिए
मैंने माचिस जलाते जलाते अपना हाथ जला लिया
लोग आज भी मुझे देख कर यही कहते हैं कि
शहर को दीवाना बनता हैं ये
इस दीवाने को किसी ने अपना दीवाना बना दिया

4th july opening poem

अब छुप के रोना हमने छोड़ दिया
आंसुओ से दोस्ताना हमने तोड़ दिया
वो हमेशा हमेशा रहते थे हमारे दिल मे
आज शायद उन्होंने भी ये ठिकाना छोड़ दिया
कुछ रही हैं आस तेरे आने की
ये देना दिलासा दिल को हमने छोड़ दिया
रुक गए हैं कदम उस मोड़ पे आकर
कदम ने भी न जाने क्यों पाँव बढ़ाना छोड़ दिया
दिल मेरे अब तो संभाल लो ख़ुद को
कि लोगो ने भी देना अब सहारा छोड़ दिया
दिल मे बस धड़कन हैं तेरी
शायद तेरे जाने के बाद उन्होंने भी धडकना छोड़ दिया
तू आजा कहीं से भी दिल के पास
देखो मैंने देर रात तक अब घर के बाहर रहना छोड़ दिया

3rd july evening poem

रोशनी के फूल सजाये हमने तुम्हारी मोहब्बत मे
तुम्हारे चेहरे को चाँद समझ के देखा हमने हर रात मे
तन्हाई से हम अपनी जिंदगी मे बहुत लड़े हैं
पर अब जिंदगी गुज़रना मुश्किल हैं तू अगर न हो साथ मे
चला तो जाता हूँ रोज़ मैं यहाँ से
चला जाता हूँ मैं स्टूडियो से दूर कुछ देर के लिए
पर जाता नही क्यों तू मेरी यादों से
हर तस्वीर क्यों तुझ सी बन जाती हैं
नज़र कोई आता नही
पता नही तू नज़र क्यों आती हैं

Friday, July 4, 2008

3rd july closing poem

जो देखा न था दिखाया तेरे प्यार ने
जो पाया न था दिया तेरे प्यार ने
रोज़ बादलो मे धुंधला सा एक अक्स नज़र आया
कुछ इस कदर सताया उस बादल ने तेरे प्यार मे
माचिस जलाई रात अंधेरे मे तेरा घर ढूढने को
ये दाग हाथ पर लगाया तेरे प्यार ने
सपने तेरे सिमटे न मेरी आँख मे
न जाने कितने शहरो मे घुमाया तेरे प्यार ने
न जाम याद न अंजाम
एक चाय का प्याला क्या पिलाया तुने तेरे प्यार मे
दीवाने को न कपडे पहनने का ढंग था
न आती थी जीने की अदा
उसे साँस लेना सिखाया जीना सिखाया अपना बनाया तेरे प्यार ने

3rd july opening poem

मेरी मोहब्बत का अहसास कर गर कर सके
तू भी मुझसे प्यार कर गर कर सके
आदत बदलती हैं फितरत बदलती नही
आदत बदलती हैं फितरत बदलती नही
जैसा हूँ ऐसे ही यार गर प्यार कर सके तो कर
जानता हूँ बहुत कमी हैं मुझमे अच्छाई की
जानता हूँ बहुत कमी हैं मुझमे अच्छाई की
मेरी बुराइयों को प्यार गर सके तो कर
किसी और का ख्याल भी न आने पाये कभी
इतनी मोहब्बत का इज़हार गर कर सके तो कर
मैं तो खाक हूँ और कुछ भी नही
मैं तो ख़ाक हूँ और कुछ भी नही
अपने प्यार से मुझे नायब गर कर सके तो कर
बस तमन्ना हैं हुक्म नही तुझ पर
बस तमन्ना हैं हुक्म नही तुझ पर
मुझपे सच्ची चाहत का इज़हार गर सके तो कर
दो कदम का वादा नही चाहता तुमसे
दो कदम का वादा नही चाहता तुमसे
उम्र भर साथ देने का वादा गर कर सके तो कर

2nd july evening poem

यादें किसी कि
बड़ी कमाल होती हैं ये यादें
न कोई मौसम होता हैं
न कोई शक्ल होती हैं
न कोई नाम होता हैं
बस ये यादें तो यादें होती हैं
कभी बदल पर बैठकर चली आती हैं
तो कभी बारिश कि बूंदों मे किसी का चेहरा बना जाती हैं
कभी ओस सी धुंधली नही होती
कभी धुए सी नज़र आती हैं
मगर ये यादें कमाल कि यादें होती हैं
मन करता हैं किएक दिन तितली के पंख पे बैठकर
किसी की सतरंगी यादों मे खो जाऊ
वो तितली जितनी दूर उड़ती जाए
उस तितली के साथ इन्द्रधनुष तक चला जाऊ
कैसे वो सात रंग एक लगते हैं
जब बारिश होती हैं तो कैसे ये आसमा मे साफ़ साफ़ खिलते हैं
पुरे साल धुप मे दिखता नही वो इन्द्रधनुष
मगर इन्तेज़ार करवाता हैं बारिश की कुछ बूंदों को एक साथ बरसने के लिए
पुरे साल वो बादल के टुकडेन जाने कहाँ मारे मारे फिरते हैं
मगर जब दीवाना बुलाता हैं
तो कहीं से भी होते हुए दीवाने के शहर मे आ जाते हैं
आकर किसी के पास किसीकी यादों मे बरस जाते हैं
नाम किसी का भी लुयाद मे
याद मे मेरी बस वो चले आते हैं

Wednesday, July 2, 2008

2nd july closing poem

हर बूंद मे तेरा चेहरा हर चेहरेमे तेरी छवि
(गौर फरमाइयेगा उदयपुर )
हर बूंद मे तेरा चेहरा हर चेहरेमे तेरी छवि
हर छवि मे तेरी याद
हर याद मे तेरा अहसास
(ऐसा होता होगा न उदयपुर )
कि हर चेहरे मे तेरी छवि और हर याद मे तेरा अहसास
हर आहट मे तेरी उम्मीद
हर उम्मीद मे तेरा इन्तेज़ार
हर इन्तेज़ार मे तेरी प्यास
हर प्यास मे बस तेरे होने की आस
आस तुझे पाने की
मेरा हाथ थाम तेरे साथ दूर तलक जाने की
जाए किसी ऐसी दुनिया मे जहाँ किसी की आवाज़ न आए
थामे तू सिर्फ़ मेरा हाथ
और तेरे काँधे पे पर सर रख कर अंकित कुछ देर के लिए सो जाए

2nd july opening poem

हर अपना आजकल मुझसे खफा हैं
सबकी ज़ुबां पे बस मेरी खता का सिलसिला हैं
शायद नही था मैं तेरे काबिल
(गौर फरमाईयेगा उदयपुर )
शायद नही था मैं तेरे काबिल
फ़िर कैसे कह दू कि तू बेवफा हैं
वफ़ा बेवफा मोहब्बत मे छोटी सी बात होती हैं
तू नही बेवफा तभी तो रोज़ तेरे ख्यालो से मुलाक़ात होती हैं
बेवफा कभी वफ़ा नही करते
मोहब्बत करने वाले किसी से दगा नही करते
खुबसुरतो की तो आदत होती हैं दिल लुटने की
कि खुबसुरतो की तो आदत होती हैं दिल लुटने की
ये कभी दीवानों पे रहम नही करते
काश ! काश वो तड़प तुझे भी हुई होती
मेरी प्यास तुझे भी हुई होती
कि काश वो तड़प तुझे भी हुई होती
मेरी प्यास तुझे भी हुई होती
लौट आती तु भी मेरी बाहों मे
अगर मेरी साँसों की महक तेरी साँसों मे होती

Tuesday, July 1, 2008

1st july evening poem

कसूर न उनका था न हमारा
हम दोनों को ही न आया रिश्तो को निभाना
वो चुप्पी का अहसास जताते रहे
हम मोहब्बत को मन ही मन छुपाते रहे
प्यार मन ही मन करते रहे
(ऐसा आप भी करते होंगे न उदयपुर )
कि प्यार मन ही मन करते रहे
पर फिर भी प्यार को सबसे छुपाते रहे
जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
तब एक दुसरे का हाथ थाम लेते थे
जब रोशनी धुंधली होती थी बारिश के बाद
आंसू अपने मन ही मन बाँध लेते थे
हमे आया ही नही उसे मानना
उसे आया ही नही रोते रोते मुझे रोक पाना
जिसे जाना था वो हाथ छुडा कर चला गया
और जो अपना हैं अपना था
वो प्यार सिखाते सिखाते पास आ गया

1st july closing poem

कल हलकी हलकी बारिश थी
कल सर्द हवा का रक्स भी था
(रक्स यानि अहसास )
कल हलकी हलकी बारिश थी
कल सर्द हवा का रक्स भी था

कल फूल भी निखरे निखरे थे
कल उन पर आपका अक्स भी था
कल बादल गहरे गहरे थे
(कल था न ऐसा )
कि कल बादल काले गहरे थे
कल चाँद पर लाखो पहरे थे
कुछ टुकडे आपकी याद के बड़ी देर से मेरे दिल मे ठहरे थे
कुछ टुकडे आपकी याद के बड़ी देर से मेरे दिल मे ठहरे थे
कल यादें उलझी उलझी थी
पर ये कब कहाँ किसी से सुलझी थी
कल याद बहुत आए तुम
कल याद बहुत आए तुम
कुछ लब्ज़ होठो तक आए
पर जुबां से बाहर न आ पाये
उस बारिश को देखकर जब रात तारो को देखा तो
उन सितारों मे बस तुम्ही झिलमिलाये
बारिश हलकी हलकी थी
कहीं मिट्टी की खिश्बू थी
कहीं तेरी यादों का बसेरा था
दूर पानी पे एक बुलबुला चलता देखा था
कल बारिश हलकी हलकी थी
पर तेरी यादों कि सोच बड़ी गहरी थी

1st july opening poem

जो हैं हमारी बातों मे ख्वाबो मे रातो मे
झिलमिलाते प्यार वाले सितारों मे
जो हैं हमारी बातों मे ख्वाबो मे रातो मे
झिलमिलाते प्यार वाले सितारों मे
बस अब शामिल नही मैं उसके जज्बातों मे
समझा जिसे मंजिल उसी ने तोडा होगा
कभी आपका भी दिल
कभी रोते रोते हंसाया होगा
कभी हंसते हँसते उसने रुलाया होगा
सच कोई बारिश मे तुम्हे भी याद आया होगा
जुर्म हैं मेरा कि उसको उससे भी ज्यादा प्यार किया
जुर्म हैं मेरा कि मैंने उसको उससे भी ज्यादा प्यार किया
पर कातिल नही मैं उसका
ये खुदा ने उसको बताया होगा
जब आयेगा तूफान साहिल से न होगी ये नाव पार
तब हम कहेंगे साहिल नही हूँ मैं जो बीच मे तेरा हाथ छोड़ दे
हम वो हैं जो तेरी नाव अपने कंधे पे लेके इस किनारे से उस किनारे पे छोड़ दे
मैं हूँ वो अहसास जो तुझे कभी अकेला न होने देगा
बात कुछ हो बात किसी की हो
तेरे जैसी बात अब किसी से नही होने देगा