Wednesday, July 16, 2008

16th july closing poem

अपनी सहेलियों मे वो मेरी बात कर अक्सर
आजकल भीड़ मे भी मेरा नाम लिया करती हैं
रात हो तो अपने कंगन को चूमकर
अपने ख्वाबो मे मेरे ख्वाबो को बुना करती हैं
चलती हैं जब मोहब्बत की आंधी
तो सहम जाती हैं
फ़िर चाँद को खिड़की से तकते हुए
वो मुझे बड़ा याद किया करती हैं
रात हो तो सबसे छुपकर अपनी डायरी लिखती हैं
और डायरी के हर लब्ज़ मे वो मुझे बयां करती हैं
अपनी सोच मे कभी डूब कर खो जाती हैं
यादो की पगडण्डी पर मेरी उंगली थाम कर चला करती हैं
आती बहार हैं तो मेरा जिक्र छेड़ती हैं
फूलों से वो आजकल तितली का पता पूछती हैं
भले से ही मेरी कोई बात न भूली हो
बस मुझे कोई दर्द न मिले हर रात चाँद तारो से
यही दुआ करती हैं
पढ़ती हैं मेरा ख़त जब दिसम्बर के महीने मे
मेरे ख़त को ठण्ड न लगे इसीलिए उसे अपने रजाई मे रखती हैं
मुझे प्यार से भी ज्यादा प्यार करती हैं
शायद मेरा दिल अपने तकिये पे रख कर सोती हैं
ताले लग जाते हैं हर रात उसके घर के दरवाजे पर
पर क्या पता मैं खिड़की से चला आऊं
इसीलिए अपनी खिड़की को आज भी खुला रखती हैं

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