Wednesday, July 16, 2008

16th july opening poem

जब मिलता हैं दर्द तो बताया नही जाता
आंसू से कई साल का रिश्ता हैं
ये हिसाब लगाया नही जाता
बरसात से क्या गिला अपना
जब कच्ची मिट्टी का घर था अपना
पानी मे वो बह जाए तो फिर बनाया नही जाता
रोज़ मेरे घर मे तेरे जाने के बाद
हर शाम अँधेरा हो जाता हैं
पर रोशनी का कोई दीपक अब मुझसे जलाया नही जाता
कुछ उम्मीद तो टूटी हैं अपनी
अब उम्मीदों के शहर मे एक नया घर बसाया नही जाता
किससे कहे अपना हाल-ऐ-दिल
रेडियो पे ये चेहरा दिखाया नही जाता
तेरा चाहने वाला हर कोई अब मेरा दुश्मन
हर दुश्मन को अब दोस्त बनाया नही जाता

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