Saturday, July 26, 2008

24th july closing poem

कसूर न उनका था न हमारा
हम दोनों को ही न आया रिश्ता निभाना
वो चुप्पी का अहसास जताते रहे
हम मोहब्बत को अपनी अपने दिल मे छुपाते रहे
प्यार मन ही मन करते रहे उससे
फिर भी न जाने क्यों ये प्यार छुपाते रहे
जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
तब एक दुसरे का हाथ थाम लेते थे
जब बहुत से फूल बरस कहीं से कर मुझ पर आते थे
तो होती हैं कैसी खुशबु उसके बदन मे ये हम जान लेते थे
जब रोशनी धुंधली होती हैं बारिश के बाद
आंसू अपने मन ही मन बाँध लेते थे
जब रिश्ते गहरे होने लगते थे
इन गहरे रिश्तो को बिन देखे ही
रेडियो सेट के उस तरफ़ से अब हम जान लेते थे

No comments: