Sunday, July 13, 2008

5th july evening

सोचता हूँ की चाँद को मुठ्ठी मे भर के मैं यहाँ ले आऊं
अपने पास सजाकर उसको दुल्हन की तरह बना लू
लोग दूर से देखने आए उसको और मैं उसको आँचल मे छुपा लू
पर ये कमबख्त मुझसे बहुत दूर रहता हैं
कभी कुछ कहता हैं और कभी चुप रहता हैं
कहाँ चाहने से हर चीज़ मिल जाती हैं
तभी तो चाँद की रोशनी बिन मांगे ही सितारों पर छा जाती हैं
कभी चाँद दूर बहुत दूर नज़र आता हैं
कभी चाँद के नही होने का एक बहाना क्यों नही मिल जाता हैं
ये हैं वो चाँद जो जितना दूर हो उतना पास नज़र आता हैं
ये हैं वो चाँद जो कभी कभी माशुका की तरह नज़र आता हैं
ये हैं वो चाँद जो तारो मे सबसे अलग दूर खड़ा हो जाता हैं

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