Monday, July 14, 2008

12th july evening poem

ये किसने दरवाज़ा खटखटाया हैं
मुझे उम्मीद हैं की शायद वो आया हैं
लेकिन इतना लेट
आज पहली बार इस वक्त पर उसने मुझे क्यों सताया हैं
नही शायद कोई रास्ता भटक गया होगा
धत् शाम के इन पालो मे कोई नही आया हैं
ये हवा ही होगी जिसे मेरी याद एक बार फिर आई होगी
तभी तो आज इस बारिश ने मुझे फिर से भिगाया हैं
काजल किसी की आंखों मे कैसा लगता हैं
इन बारिश की बूंदों ने मुझे बताया हैं
ये बुँदे भी किसकी जागीर हैं
ये पता हवाओ ने सिखाया हैं
जब इनका मन करता हैं चली आती हैं
न सुबह देखती हैं न शाम का पता बताती हैं
न जाने मौसम के झोंके को ये हवाए क्या सिखाती हैं
कमबख्त कहीं से भी चली आती हैं
और उस दीवार पे लगी तेरी तस्वीर इक झोंके से टेढी कर जाती हैं

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