लहरों को ये पता हैं कि किनारे से मिलके वो बह जायेंगी
फिर समंदर मे फ़ैल कर वो रह जायेंगी
अपने अस्तित्व को दावपर लगा कर
क्यों लहरों को वो किनारा भाता हैं
क्या पता क्या यही प्यार कहलाता हैं
मोम सब कुछ जानकर भी बाती को अपने दिल मे बसाता हैं
और बाती के साथ वो ख़ुद भी पिघल जाता हैं
कोई नही जानता हैं कि क्या मोम और बाती का नाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
क्यों बारिश की बुँदे धरती से मिलाने कि चाह रखती हैं
ख़ुद बरसकर धरती मे खो जाती हैं
पता नही ये उससे क्या आस रखती हैं
पता नही क्या यही प्यार कहलाता हैं
पता नही हर सुबह एक शख्स चौबीस पच्चीस साल का
कहाँ से चला आता हैं
ना देखा उसे ना उसकी शक्ल तक मालूम
पर उसकी आवाज़ से अब इस उदयपुर का एक सच्चा नाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
घर के किसी कोने मे रख दिया उसे
कहीं मन्दिर मे कहीं पूजाघर मे
कहीं बाहर किसी थडी पर
कहीं नाई वाले भइया ने दूकान पर चिपका रखा हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
चाय पीते पीते बिग चाय बिग चाय बार बार दोहराता हैं हर शख्स
बात करते करते हमारी बात मे चला जाता हैं हर शख्स
बताइए उदयपुर क्या यही प्यार कहलाता हैं
हर बात मैं अपने लफ्जों से बया कर देता हूँ फिर भी
हर बार कुछ बाकी रह जाता हैं
क्या यही प्यार कहलाता हैं
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