Saturday, July 26, 2008

23rd july closing poem

...........................................
तो अब ये आँख से चले आते हैं
यही अब मुझसे सच मे वफ़ा निभाते हैं
बेवफाई का तमगा नही अब ये मेरे सर पे लगते हैं
कुछ जोड़े हुए पैसो से तेरे लिए एक साड़ी लाया था
हाँ तब ये दीवाना अपने घर वालो की नज़र मे आया था
आज भी कहीं आले मे सम्हाल कर रखा हैं उसको
हर उस बात को जो ये दीवाना
किसी से नही कह पाया था
आज भी इन्तेज़ार करता हैं तेरे आने का
बात बात पर गुस्सा दिखता हैं ये
जूता ही सही पर तेरे जाने का
कहे किससे किससे मन की बात करे
ये दीवाना बस आप दीवानों सा एक दीवाने का इन्तेज़ार करे

No comments: