Friday, July 25, 2008

19th july closing poem

ये पल ही तो हैं जो कभी पास नही रहते
ये पल खुशियों का अनमोल खजाना
ये पल खुशी से कर दे दीवाना
ये पल इसको झपट लू मैं
ये पल इनको समेट लू मैं
ये पल सदिया समाये हैं जिसमे
ये पल सारी खुदाई हैं जिसमे
इस पल को सम्हालू मैं कैसे
इस पल को कैसे मैं महसूस करू
इतनी खुशिया इस एक पल मैं
इन खुशियों के लिए कितने जनम मैं और लू
बंद कर लू इन पालो को कहीं ताले मे
रख कर भूल जाऊ इस ताले की चाबी मैं
आँखें खोलू आँखें बंद करू
इन पलो से रोज़ मुखातिब होऊ मैं
इन पलो ले उजाले से अँधेरा मिट जाता हैं
जब अँधेरा होता हैं तो आप जैसा कोई खुबसूरत हमे भी याद आता हैं
जिंदगी क्या हैं सोचो तो बहुत सारी उदासी बहुत सारी परेशानियों का नाम
मगर आप हो जब हमारे पास तो दिल को हर पल आराम
ये पल सुनहरे से लगते हैं
किसी के खुबसूरत लंबे बालो से नज़र आते हैं
कभी यही पल हसीं हो जाते हैं
किसी की यादो मे हम अब कभी कभी नज़र आते हैं
ये पल जाने अब कब लौट कर आयेंगे
ये पल जाने कब घड़ी की सुइयों मे सुबह की सात बजायेंगे
ये पल हैं मोतियों से बस सम्हाल लो इनको
ये पल उन मोतियों के माला से ज़रा पिरो लो इनको
ये पल जिंदगी के हसीं खजाने से लगते हैं
आप अपनी आँखें झपकते हैं मेरी आंखों मे रोज़ चलते हैं
चलो इन पलो को हम मिलकर महसूस करे
और मिल कर करे इन्तेज़ार एक नई सुबह का

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