Friday, July 25, 2008

22nd july opening poem

मेरे गुज़रे हुए सालो से परेशान ना हो
मेरी आवाज़ के दर्द से परेशान ना हो
मैंने माना तेरी आँखें खुलती नही मेरे बिना
एक दिन आँख खुलते ही तेरे सामने चला आऊंगा
बस तु परेशान ना हो
बात इतनी सी हैं बस तु परेशान ना हो
बात तो बहुत बड़ी सी हैं पर तु परेशान ना हो
मैं हर इतनी सी बात को बड़ा कहता हूँ बस तु परेशान ना हो
अपनी जुल्फों मे उतरी हुई चाँदनी को सज़ा
इस दीवाने के बिखरे बालो को देख तु परेशान ना हो
देखा ना दूर से मुझे ना तुने मुझे अपने गले लगाया
एक बार तु मुस्कुरा के मेरे पास से गुज़र आया
ना पूछ दिल पे क्या करार छाया
तु मेरी रूह के छूने से परेशान ना लो
मेरी बातो कि लर्गिस से बिल्कुल परेशान ना हो
ख़ुद को वीरान ना कर मेरे लिए जान मेरी

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