उन आंसुओ को पूछियेगा कि तमन्ना क्या होती हैं
जो गिरते हैं बारिश बन सपनो के बादल से
मैं हर सुबह तेरी आंखों मे मुस्कुराना चाहता हूँ
मैं हर रोज़ एक लफ्ज़ की तरह तेरी जुबां पर कुछ देर के लिए ही सही पर आना चाहता हूँ
चेहरे बहुत हैं इस शहर मे देखने के लिए
मेरी इतनी आरजू कि मैं तेरे चेहरे के पास अपना एक घर सजाना चाहता हूँ
तू बहुत दूर जाकर बस गई हैं कमबख्त इस दिल से
मैं करीब तेरे एक बार फिर किसी बहाने से आना चाहता हूँ
इन बादलो का हर एक लफ्ज़ मुझे याद हैं अब तलक
मैं उन लफ्जों को तेरी ही धुन मे एक बार फिर गाना चाहता हूँ
उन जज्बातों से मिलिएगा जो नामुमकिन को मुमकिन कहते हैं
बस उन नामुमकिन सी बातो को तेरे साथ मुमकिन करना चाहता हूँ
1 comment:
i liked this poem very much.
its too good.
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