Monday, July 14, 2008

11th july evening poem

उन आंसुओ को पूछियेगा कि तमन्ना क्या होती हैं
जो गिरते हैं बारिश बन सपनो के बादल से
मैं हर सुबह तेरी आंखों मे मुस्कुराना चाहता हूँ
मैं हर रोज़ एक लफ्ज़ की तरह तेरी जुबां पर कुछ देर के लिए ही सही पर आना चाहता हूँ
चेहरे बहुत हैं इस शहर मे देखने के लिए
मेरी इतनी आरजू कि मैं तेरे चेहरे के पास अपना एक घर सजाना चाहता हूँ
तू बहुत दूर जाकर बस गई हैं कमबख्त इस दिल से
मैं करीब तेरे एक बार फिर किसी बहाने से आना चाहता हूँ
इन बादलो का हर एक लफ्ज़ मुझे याद हैं अब तलक
मैं उन लफ्जों को तेरी ही धुन मे एक बार फिर गाना चाहता हूँ
उन जज्बातों से मिलिएगा जो नामुमकिन को मुमकिन कहते हैं
बस उन नामुमकिन सी बातो को तेरे साथ मुमकिन करना चाहता हूँ

1 comment:

Ridhi said...

i liked this poem very much.
its too good.