Monday, July 28, 2008

28th july opening poem

रात साडी ढल गई तुझे सोचते सोचते
बस एक ...... बची थी वो भी बीत गई तुझे सोचते सोचते
कहाँ हो तुम अब चले भी आओ
कहन हो तुम अब चले भी आओ
हम भटक रहे गली गली नगर नगर तुझे सोचते सोचते
तुम्हारी ये बेरुखी एक दिन मेरी जान ले जायेगी
कसम तुझको याद कर लो मुझे कभी किसी और को सोचते सोचते
जहाँ फूलो को खिलना था ये अगर वाही खिलते तो अच्छा था
शहर भर मे तेरे कई दीवाने पर ये दीवाना सबसे सच्चा था
कोई आकर हमे पूछे तुम्हे कैसे भुलाया हैं
तुम्हारे खातो को अपने आंसुओ से धोकर अपनी डायरी मे सजाया हैं
परेशानिया किसके पास नही हैं
पर मोहब्बत को हमने अपनी परेशानी ऐसा कभी नही बताया हैं

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