Sunday, July 6, 2008

4th july opening poem

अब छुप के रोना हमने छोड़ दिया
आंसुओ से दोस्ताना हमने तोड़ दिया
वो हमेशा हमेशा रहते थे हमारे दिल मे
आज शायद उन्होंने भी ये ठिकाना छोड़ दिया
कुछ रही हैं आस तेरे आने की
ये देना दिलासा दिल को हमने छोड़ दिया
रुक गए हैं कदम उस मोड़ पे आकर
कदम ने भी न जाने क्यों पाँव बढ़ाना छोड़ दिया
दिल मेरे अब तो संभाल लो ख़ुद को
कि लोगो ने भी देना अब सहारा छोड़ दिया
दिल मे बस धड़कन हैं तेरी
शायद तेरे जाने के बाद उन्होंने भी धडकना छोड़ दिया
तू आजा कहीं से भी दिल के पास
देखो मैंने देर रात तक अब घर के बाहर रहना छोड़ दिया

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