Friday, July 4, 2008

2nd july evening poem

यादें किसी कि
बड़ी कमाल होती हैं ये यादें
न कोई मौसम होता हैं
न कोई शक्ल होती हैं
न कोई नाम होता हैं
बस ये यादें तो यादें होती हैं
कभी बदल पर बैठकर चली आती हैं
तो कभी बारिश कि बूंदों मे किसी का चेहरा बना जाती हैं
कभी ओस सी धुंधली नही होती
कभी धुए सी नज़र आती हैं
मगर ये यादें कमाल कि यादें होती हैं
मन करता हैं किएक दिन तितली के पंख पे बैठकर
किसी की सतरंगी यादों मे खो जाऊ
वो तितली जितनी दूर उड़ती जाए
उस तितली के साथ इन्द्रधनुष तक चला जाऊ
कैसे वो सात रंग एक लगते हैं
जब बारिश होती हैं तो कैसे ये आसमा मे साफ़ साफ़ खिलते हैं
पुरे साल धुप मे दिखता नही वो इन्द्रधनुष
मगर इन्तेज़ार करवाता हैं बारिश की कुछ बूंदों को एक साथ बरसने के लिए
पुरे साल वो बादल के टुकडेन जाने कहाँ मारे मारे फिरते हैं
मगर जब दीवाना बुलाता हैं
तो कहीं से भी होते हुए दीवाने के शहर मे आ जाते हैं
आकर किसी के पास किसीकी यादों मे बरस जाते हैं
नाम किसी का भी लुयाद मे
याद मे मेरी बस वो चले आते हैं

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