Monday, July 14, 2008

12th july opening poem

कहते हैं लोग की ये इश्क आग का दरिया होता हैं
कैसे कहे की ये दरिया ही महबूब तक पहुँचने का जरिया होता हैं
बस जब आँखें बोझल हो जाए और याद मे मेरी भर आए
फिर ख़ुद को धोखा मत देना और चुपके चुपके रो लेना
जब पलके जान कर मुंदी हो और सब समझे तुम सोते हो
तुम तकिया मुह पर रख लेना पर चुपके चुपके रो लेना
ये दुनिया जालिम दुनिया हैं बात दूर तक फैलाएगी
तुम सबके सामने चुप रहना पर चुपके चुपके रो लेना
जब बारिश चेहरा धो डाले और अश्क भी बुँदे लगते हो
वो लम्हा हरगिज़ मत खोना और चुपके चुपके रो लेना

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