Friday, July 4, 2008

3rd july opening poem

मेरी मोहब्बत का अहसास कर गर कर सके
तू भी मुझसे प्यार कर गर कर सके
आदत बदलती हैं फितरत बदलती नही
आदत बदलती हैं फितरत बदलती नही
जैसा हूँ ऐसे ही यार गर प्यार कर सके तो कर
जानता हूँ बहुत कमी हैं मुझमे अच्छाई की
जानता हूँ बहुत कमी हैं मुझमे अच्छाई की
मेरी बुराइयों को प्यार गर सके तो कर
किसी और का ख्याल भी न आने पाये कभी
इतनी मोहब्बत का इज़हार गर कर सके तो कर
मैं तो खाक हूँ और कुछ भी नही
मैं तो ख़ाक हूँ और कुछ भी नही
अपने प्यार से मुझे नायब गर कर सके तो कर
बस तमन्ना हैं हुक्म नही तुझ पर
बस तमन्ना हैं हुक्म नही तुझ पर
मुझपे सच्ची चाहत का इज़हार गर सके तो कर
दो कदम का वादा नही चाहता तुमसे
दो कदम का वादा नही चाहता तुमसे
उम्र भर साथ देने का वादा गर कर सके तो कर

1 comment:

Ridhi said...

very sensitive poem.....
beautiful