दर्द मे पनपते हैं गीत ऐसा ही कुछ लोग कहते हैं
सीने मे कुछ दर्द कसम से जिंदा दफ़न रहते हैं
छोटे से दिल मे उमड़ते हैं रोज़ कई सागर
कातिल लहरों मे कसम से
कई माटी के घरौंदे मिलते हैं
कहाँ मिलता हैं ऐसे शब्दों को सँभालने वाला कोई
हर पल रोज़ कहीं शब्दों से किसी के दिल मे
ना जाने कितने महल बनते हैं
ना वक्त ना हालत लगा सकते हैं उस पर कोई मरहम
वो दिल सीने मे कसम से कितना दर्द सहते हैं
सच कहते हैं वो कि दर्द की कोई सीमा नही होती
हम दर्द देने वाले दीवानों से कहाँ दर्द की बात कहते हैं
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