Tuesday, July 1, 2008

1st july closing poem

कल हलकी हलकी बारिश थी
कल सर्द हवा का रक्स भी था
(रक्स यानि अहसास )
कल हलकी हलकी बारिश थी
कल सर्द हवा का रक्स भी था

कल फूल भी निखरे निखरे थे
कल उन पर आपका अक्स भी था
कल बादल गहरे गहरे थे
(कल था न ऐसा )
कि कल बादल काले गहरे थे
कल चाँद पर लाखो पहरे थे
कुछ टुकडे आपकी याद के बड़ी देर से मेरे दिल मे ठहरे थे
कुछ टुकडे आपकी याद के बड़ी देर से मेरे दिल मे ठहरे थे
कल यादें उलझी उलझी थी
पर ये कब कहाँ किसी से सुलझी थी
कल याद बहुत आए तुम
कल याद बहुत आए तुम
कुछ लब्ज़ होठो तक आए
पर जुबां से बाहर न आ पाये
उस बारिश को देखकर जब रात तारो को देखा तो
उन सितारों मे बस तुम्ही झिलमिलाये
बारिश हलकी हलकी थी
कहीं मिट्टी की खिश्बू थी
कहीं तेरी यादों का बसेरा था
दूर पानी पे एक बुलबुला चलता देखा था
कल बारिश हलकी हलकी थी
पर तेरी यादों कि सोच बड़ी गहरी थी

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