Monday, July 14, 2008

10th july closing poem

आपकी मुस्कान हमारी कमजोरी हैं
आपसे कुछ भी न कह पाना न जाने क्या मज़बूरी हैं
आप क्यों नही समझते इस खामोशी को
हर बार मेरी खामोशी को जुबां देना क्या ज़रूरी हैं
तू चुप रहे तो भी तेरी हर बात समझ आती हैं
ये हवाए हर रोज़ जब तुझे छूकर चली जाती हैं
कभी तू उदास हैं कभी मुझे याद कर हंसती खिलखिलाती हैं
मेरे लिखे खातो को कभी अपने सीने से लगाती हैं
मेरी कविताएं record कर बार बार सुनती जाती हैं
और ये लाइन सुनाने के बाद तेरे उन होठो पे न जाने क्यों
ये smile आती हैं
पर जब मिलती हैं बस खामोश रह जाती हैं
कभी धुप मे उन रेतीले टीलोंपर तू नंगे पाव चली आती हैं
कभी बालकनी मे खड़ी होती हैं
पर मुझे देख कर छुप जाती हैं
ज़माना इसे प्यार का नाम देता हैं
पर तू ना ना करती जाती हैं
एक बात तो बता
की फिर क्यों मेरा नाम सुनाने के बाद तेरे चेहरे पे हँसी आती हैं


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